यूके की येल यूनिवर्सिटी ने अपने यहां पढ़ाई करने के इच्छुक छात्रों के दाखिले के नियमों में बदलाव की घोषणा की है। इसके तहत यूनिवर्सिटी स्टैंडर्डाइज्ड टेस्ट स्कोर का सिस्टम लागू करने जा रही है। अंडरग्रैजुएट कोर्सों में दाखिला लेने वाले आवेदकों के लिए ये संशोधित नियम अगले साल 2025 से लागू होंगे।
इस सिस्टम को लागू करने वाली येल यूनिवर्सिटी आईवी लीग की दूसरी यूनिवर्सिटी है। उससे पहले डार्टमाउथ यूनिवर्सिटी भी टेस्ट ऑप्शनल सिस्टम को खत्म कर चुकी है, जो कोरोना महामारी के दौरान काफी लोकप्रिय हुआ था।
यूनिवर्सिटी ने एक बयान में कहा है कि येल को एक बार फिर से छात्रों को अपने आवेदनों के साथ स्कोर शामिल करना होगा। लेकिन पहली बार येल आवेदकों को एसीटी या सैट के बदले एडवांस प्लेसमेंट (एपी) या फिर अंतर्राष्ट्रीय बैकलौरीएट (आईबी) एग्जाम स्कोर दिखाने की छूट देगा। यूनिवर्सिटी का कहना है कि स्टैंडर्ड टेस्ट त्रुटिपूर्ण और अपूर्ण है।
यूनिवर्सिटी के मुताबिक, आवेदनों का मूल्यांकन करने के दौरान उसके शोधकर्ताओं और पाठकों को पता चला है कि जब दाखिला अधिकारी बिना स्कोर के आवेदनों की समीक्षा करते हैं तो आवेदन के अन्य हिस्सों को ज्यादा तवज्जो देते हैं। लेकिन इस बदलाव से अक्सर कमजोर सामाजिक आर्थिक बैकग्राउंड वाले आवेदकों को नुकसान होता है।
कोरोना महामारी से पहले इन टेस्ट को अनिवार्य बनाने की वजह से छात्र संगठनों में विविधता लाने की येल की कोशिशें प्रभावित नहीं होती थी। 2013 से 2019 के बीच पेल ग्रांट पाने के पात्र प्रथम वर्ष के स्नातकों की संख्या 95 प्रतिशत बढ़ गई थी। इसी तरह पहली पीढ़ी के कॉलेज छात्रों की संख्या 65 प्रतिशत बढ़ी और अल्पसंख्यक छात्रों के प्रतिनिधित्व में 52 प्रतिशत की वृद्धि हुई।
फेयर टेस्ट के मुताबिक, अमेरिका में 1900 से अधिक स्कूल और विश्वविद्यालय फिलहाल टेस्ट ऑप्शनल सिस्टम का प्रयोग करते हैं जिसका मतलब है कि वहां पर आवेदकों को अपने आवेदनों के साथ मानकीकृत टेस्ट के नतीजों को शामिल न करने की छूट मिलती है। अमेरिकी के सबसे सरकारी विश्वविद्यालयों में से कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी ने 2022 में मानकीकृत टेस्ट को अपने दाखिले की प्रक्रियाओं से हटाने का फैसला किया था।
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