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न्यूयॉर्क बन रहा गैंगलैंड, खालिस्तानी गैंग पर भी रखनी होगी नजर

हाल के वर्षों में खालिस्तानियों और अपराधियों के बीच संबंध गहरा हुआ है। दोनों के बीच अंतर बताना अक्सर मुश्किल हो जाता है।

खालिस्तानी समूहों और संगठित अपराधी नेटवर्क के बीच पुराने संबंधों को अक्सर नजरअंदाज किया जाता रहा है। / image : unsplash

दुनिया भर में लगभग सभी आतंकवादी संगठन अपनी गतिविधियों को अंजाम देने और उनके लिए रकम जुटाने के लिए संगठित अपराधी नेटवर्क पर निर्भर रहते हैं। उदाहरण के लिए, अफगानिस्तान में अफीम उत्पादन पर तालिबान का नियंत्रण है। हेरोइन मार्केट की कालाबाजारी में भी वह शामिल रहता है। आयरिश रिपब्लिकन आर्मी के इतालवी माफिया के साथ संबंध भी कुछ इसी तरह के हैं। हिंसक खालिस्तान आंदोलन भी इससे अलग नहीं है।

चाहे 80 और 90 के दशक के दौरान भारत में खालिस्तानी आतंक का चरम समय हो या आज का दौर हथियार व ड्रग्स सप्लाई, डकैती, जबरन वसूली और अन्य अवैध गतिविधियों में लिप्त अंतरराष्ट्रीय अपराधी गिरोहों और खालिस्तानी समूहों के बीच सांठगांठ रही है। इन स्ट्रीट गैंग्स के पास अपनी आर्मी होती है, जो कोई भी काम करने को आसानी से उपलब्ध रहती है। इनके पास हवाला नेटवर्क जैसे तरीके सुलभ होते हैं, जिससे रकम को एक से दूसरी जगह पहुंचाना कोई बड़ी बात नहीं होती। इस रकम का अक्सर इस्तेमाल भारत में आतंकवाद फैलाने के लिए किया जाता है।

सिक्योरिटी एनालिस्ट अजय साहनी कहते हैं कि खालिस्तानी डायस्पोरा ने खतरनाक रास्ता चुना है। ये लोग आपराधिक गतिविधियों में शामिल गैंगस्टरों के साथ साझेदारी कर रहे हैं। नशीली दवाओं के तस्करों के इन गैंग के साथ मिलकर अपने मूल देश में गोलीबारी करने, लक्षित हत्याओं को अंजाम देने और जबरन वसूली नेटवर्क संचालित करने में भी शामिल हैं। कनाडा में खासतौर से पंजाबी गैंगस्टर कल्चर बड़े पैमाने पर पैर पसार चुका है। 2006 के बाद से गैंगवार या पुलिस ऑपरेशन में मारे गए गैंगस्टरों में 21 प्रतिशत पंजाबी मूल के हैं जबकि कनाडा की आबादी में पंजाबी सिर्फ 2 प्रतिशत हैं जिनमें 1.4 प्रतिशत सिख हैं। 

ऐसे में इस पर कोई आश्चर्य नहीं लगता कि 11 अगस्त को एक और खालिस्तान समर्थक चरमपंथी पर गोलीबारी की घटना हुई। सतिंदर पाल सिंह राजू को सैक्रामेंटो में हाइवे पर यात्रा करते समय निशाना बनाया गया। ऐसे आरोप हैं कि ये हमला कथित तौर पर सिख फॉर जस्टिस (एसएफजे) से संबंधित गतिविधियों की वजह से किया गया है। एसएफजे एक अंतरराष्ट्रीय कट्टरपंथी समूह है, जो अपनी आतंकी और हिंसा समर्थित हरकतों की वजह से भारत में प्रतिबंधित है। इसमें कोई हैरानी नहीं है कि इस गोलीबारी के बाद एसएफजे ने भारत सरकार पर उंगली उठाते हुए इसे प्रवासी सिखों के अंतरराष्ट्रीय दमन का हिस्सा बता दिया।

लेकिन इस तरह के दावे कोई पहली बार नहीं हैं। ऐसे आरोप लगाते समय खालिस्तानी समूहों और संगठित अपराध नेटवर्क के बीच लंबे समय से चले आ रहे संबंधों को नजरअंदाज कर दिया जाता है। 1980 के दशक से ही खालिस्तानी आंदोलन से जुड़े प्रमुख लोगों पर लक्षित हमलों खासकर कनाडा में किए गए हमलों के लिए भारत सरकार को दोषी ठहराया जाता रहा है। हालांकि सबूतों ने बार-बार साफ कर दिया है कि ये हिंसा प्रतिद्वंद्वी खालिस्तानी समूहों के बीच अंदरूनी लड़ाई का नतीजा थी और इन्हें अक्सर पंजाबी सिख आपराधिक गिरोहों ने अंजाम दिया था।

जैसा कि पत्रकार प्रवीण स्वामी ने लिखा था कि 'खालिस्तान समर्थक नेताओं और अपराधियों के बीच संबंध पंजाबी समुदाय में कोई छिपी हुई बात नहीं है।' कनाडा के जाने-माने गैंगस्टर रमिंदर 'रॉन' दोसांझ और उसके भाई जिमशेर 'जिमी' दोसांझ को ही लीजिए। ये इंटरनेशनल सिख यूथ फेडरेशन (आईएसवाईएफ) के वैंकूवर चैप्टर के नेता थे। आईएसवाईएफ और बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) को अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने वैश्विक आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है।

इसी तरह एयर इंडिया बम विस्फोट कांड का मास्टरमाइंड रिपुदमन सिंह मलिक गैंगस्टर और ड्रग डीलर रमिंदर भांडेर का करीबी था। भांडेर ने एयर इंडिया मामले में मलिक की ओर से गवाही भी दी थी। मलिक और खालिस्तान टाइगर फोर्स (केटीएफ) और एसएफजे का नेता हरदीप सिंह निज्जर आपस में प्रतिद्वंद्वी थे और दोनों गैंगवॉर में मारे गए थे।

हाल के वर्षों में खालिस्तानियों और अपराधियों के बीच संबंध गहरा हुआ है। दोनों के बीच अंतर बताना अक्सर मुश्किल हो जाता है। उदाहरण के लिए, इंटरपोल ने इस साल की शुरुआत में कनाडा स्थित गैंगस्टर सतविंदर सिंह उर्फ गोल्डी बराड़ की गिरफ्तारी के लिए रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया था। गोल्डी पर आरोप है कि वह हथियारों, ड्रग्स तस्करी के जरिए बब्बर खालसा इंटरनेशनल (बीकेआई) जैसे खालिस्तान समर्थक संगठनों की मदद करता है, लक्षित हत्याओं को भी अंजाम देता है। 

इसी तरह अर्शदीप सिंह गिल उर्फ अर्श डल्ला भी कनाडा से आपराधिक नेटवर्क संचालित करता है। उसके केटीएफ और आईएसवाईएफ से करीबी संबंध हैं। ये गिरोह अमेरिका में भी सक्रिय रहे हैं। कैलिफोर्निया के कुछ हिस्सों जैसे सेंट्रल वैली और सैक्रामेंटो इनमें प्रमुख है। इसी जगह पर एसएफजे के चरमपंथी संतिंदर सिंह को गोली मारी गई थी।

पिछले साल आपराधिक सिंडिकेट से जुड़े 17 लोगों को गिरफ्तार किया गया था। इन पर अगस्त 2022 में स्टॉकटन के गुरुद्वारे पर और मार्च 2023 में सैक्रामेंटो के गुरुद्वारे में गोलीबारी सहित कई अपराधों में शामिल होने का आरोप है। खबरें बताती हैं कि सभी गिरफ्तार लोग सिख समुदाय से थे। हालांकि यह साफ नहीं है कि इनका खालिस्तानी समूहों से कोई संबंध है या नहीं, लेकिन इनके तार जुड़ना असंभव नहीं है।

इस सबको देखते हुए एसएफजे जैसे खालिस्तानी समूहों की घटनाओं और पंजाबी सिख अपराधी गिरोहों की मिलीभगत को अलग अलग नहीं देखा जा सकता। ऐसे में स्थानीय, सरकारी और संघीय कानून प्रवर्तन एजेंसियां और नीति निर्माता यह दिखावा करने के नीति जारी नहीं रख सकते कि अमेरिका में खालिस्तानी नेटवर्क में सिर्फ आजादी के इच्छुक शांतपूर्ण कार्यकर्ता शामिल हैं। वे हिंसक अपराधी और वैचारिक चरमपंथी हैं। उन्हें यही मानते हुए सख्ती निपटा जाना चाहिए। 
 

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