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भारतीय हिंदू पहचान छोड़ने का दवाब था, वर्जीनिया के भारतवंशी सीनेटर का सनसनीखेज दावा

37 वर्षीय सीनेटर सुहास सुब्रमण्यम इस बार कांग्रेस की रेस में हैं। उन्होंने पिछले साल नवंबर में वर्जीनिया के 10वें कांग्रेस जिले से अपनी उम्मीदवारी का ऐलान किया था। सुब्रमण्यम ने न्यू इंडिया अब्रॉड के साथ इंटरव्यू में कई मुद्दों पर अपनी बात रखी।

सीनेटर सुब्रमण्यम फिलहाल राज्य के 32वें जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं। / Facebook @ Suhas Subramanyam

भारतीय अमेरिकी अटॉर्नी और वर्जीनिया में जनरल एसेंबली के लिए चुने गए पहले भारतीय-अमेरिकी अटॉर्नी सुहास सुब्रमण्यम ने बड़ा खुलासा किया है। उन्होंने दावा किया कि सीनेट के चुनाव में उम्मीदवारी के लिए उन्हें अपना नाम बदलने और अपनी भारतीय हिंदू पहचान पर जोर न देने के लिए कहा गया था। 

सीनेटर सुब्रमण्यम फिलहाल राज्य के 32वें जिले का प्रतिनिधित्व करते हैं। न्यू इंडिया अब्रॉड के साथ इंटरव्यू में सुब्रमण्यम ने कहा कि जब मैं चुनाव मैदान में उतरा तो लोगों ने मुझसे कहा था कि आपको अपना नाम बदल देना चाहिए क्योंकि यह नाम एक बोझ की तरह है। लेकिन मैंने इनकार कर दिया और कहा कि मैं सुहास सुब्रमण्यम के नाम के साथ ही चुनाव में हिस्सा लूंगा। लोग चाहें तो मेरा नाम बोलना सीख सकते हैं।

सुब्रमण्यम ने बताया कि नाम के अलावा लोगों ने उन्हें अपनी भारतीय हिंदू पहचान पर जोर न देने का भी सुझाव दिया था। इस पर मेरा कहना था कि मैं एक भारतीय और एक हिंदू के रूप में  चुनाव लड़ने जा रहा हूं क्योंकि मुझे इस पहचान पर गर्व है।

सुब्रमण्यम ने कहा कि हाल के वर्षों में चीजें बदली हैं और देशभर के प्रशासनिक क्षेत्रों में विविध समुदायों का प्रतिनिधित्व अब आम बात होती जा रही है। उन्होंने इलिनोइस से कांग्रेस सदस्य राजा कृष्णमूर्ति की तारीफ करते हुए कहा कि वह अपने जैसे नाम और पहचान वाले लोगों को चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित करते हैं। 

सुब्रमण्यम ने कहा कि इस पहचान के साथ कुछ लोगों को चुनाव जीतने में मदद मिलती है। जैसे कि राजा कृष्णमूर्ति। उनकी बार-बार जीत यह दिखाती है कि यह मुमकिन है। हालांकि कुछ लोगों के लिए यह हार का सबब भी बन जाता है। उन्हें अपनी मंजिल तक पहुंचने के लिए अच्छा प्रदर्शन करना पड़ता है।

बेंगलुरु में दक्षिण भारतीय परिवार में जन्मे सुब्रमण्यम ने कहा कि दक्षिण भारतीय लोग मेडिकल, इंजीनियरिंग और आईटी क्षेत्रों की तरफ आकर्षित हो रहे हैं। राजनीति में भी उनकी भागीदारी बढ़ रही है। नई पीढ़ी न सिर्फ आर्थिक रूप से संपन्न हो रही है बल्कि सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक क्षेत्र में भी अपनी पहचान बना रही है। यह सब शानदार है।

सुब्रमण्यम इस बार कांग्रेस की रेस में हैं। उन्होंने पिछले साल नवंबर में अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की थी। 37 वर्षीय सुब्रमण्यम वर्जीनिया के 10वें कांग्रेस जिले से चुनाव मैदान में हैं। वह जेनिफर वेक्सटन की जगह लेना चाहते हैं जो कैंसर की बीमारी के कारण रिटायर होने जा रही हैं। यहां पर प्राइमरी चुनाव जून में और आम चुनाव नवंबर में होने हैं।

जून प्राइमरी के चुनाव में सुब्रमण्यम का मुकाबला सात डेमोक्रेट नेताओं से होगा। ये हैं- सीनेटर जेनिफर बी बॉयस्को (डी-33), एलीन फिलर-कॉर्न (डी-41), डैनियल आई हेल्मर (डी40), डेविड रीड (डी-32), क्रिस्टल कौल, मार्क लीटन और आतिफ करनी। अगर सुब्रमण्यम उम्मीदवारी जीत जाते हैं तब उनका मुकाबला माइक क्लैंसी या ब्रुक टेलर से होगा। 

अपने अभियान के बारे में सीनेटर सुब्रमण्यम ने कहा कि प्रचार अभियान अच्छा चल रहा है क्योंकि बहुत से लोग मुझे पहले से ही जानते हैं। वे उत्साहित हैं कि मैं कांग्रेस के रेस में हूं। मैं चरमपंथियों के हाथों से सत्ता छीनकर कांग्रेस के काम करने के तरीके में बुनियादी बदलाव लाना चाहता हूं। 

उन्होंने कहा कि कांग्रेस में शिथिलता और अतिवाद आ गया है। मैं उस लायक बनना चाहता हूं कि इसका समाधान कर सकूं और नतीजे हासिल कर सकूं। सुब्रमण्यम ने कहा कि वह बंदूक हिंसा रोकने, शिक्षा और अर्थव्यवस्था से जुड़े मुद्दों पर प्रमुखता से काम करना चाहते हैं। 

भारतीय अमेरिकी ने कहा कि उनकी पहली प्राथमिकता नए नियमों को लागू करना होगा जो सुनिश्चित करेंगे कि सरकार को हर साल खुद ब खुद फंड मिलता रहे और सरकारी शटडाउन जैसी नौबत न आए। उन्होंने कहा कि अभी हमें कांग्रेस के जरिए मूलभूत समस्याओं का समाधान करने पर ध्यान देना होगा जो हमारे लोकतंत्र और देश को नुकसान पहुंचा रही है। 

उन्होंने कहा कि कांग्रेस में इस समय महत्वपूर्ण मुद्दों पर ध्यान देने की जरूरत है लेकिन हम अप्रासंगिक मुद्दों में उलझे हैं। यूक्रेन फंडिंग, इजरायल फंडिंग और इमिग्रेशन पर बहस कर रहे हैं जबकि इन तीनों ही चीजों का विदेश नीति के अलावा और किसी से कोई लेना-देना नहीं है। हमें इमिग्रेशन से संबंधित मसलों को व्यापक तरीके से हल करना चाहिए। हमें समग्र रूप से विदेश नीति को देखना चाहिए।

 

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