अमेरिका के प्रमुख हिंदू संगठनों में से एक हिंदू पॉलिसी रिसर्च एंड एडवोकेसी कलेक्टिव (Hindu PACT) ने भारत में नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) लागू होने के बाद अमेरिकी विदेश विभाग और भारत में अमेरिकी राजदूत द्वारा की गई टिप्पणी की कड़ी निंदा की है।
अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता मैथ्यू मिलर ने सीएए के लिए नियमों की अधिसूचना पर चिंता जताई थी और कहा था कि वह सीएए के अमल पर पैनी नजर रखेगा। मिलर की टिप्पणी का भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने भी समर्थन किया।
हिंदू पैक्ट ने सीएए लाने के लिए भारत सरकार की सराहना करते हुए कहा है कि यह कानून भारत के पड़ोसी देशों में सताए गए हिंदू, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन और पारसी अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने के लिए लाया गया है। यह धार्मिक उत्पीड़न के शिकार लोगों और परिवारों की सुरक्षा के प्रति भारत के समर्पण को दिखाता है।
संगठन ने जारी बयान में कहा कि हम हैरान हैं कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय और भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी को ठीक इसी तरह के अमेरिकी कानूनों की जानकारी नहीं है। भारत का सीएए अमेरिकी ट्रेड एक्ट, 1974 में जैक्सन-वानिक संशोधन में लॉटेनबर्ग संशोधन के बाद तैयार किया गया है।
यह संशोधन खासतौर से सोवियत संघ, पूर्व सोवियत संघ, यूक्रेन, एस्टोनिया, लातविया और लिथुआनिया के यहूदी, इंजील ईसाई, यूक्रेनी कैथोलिक और यूक्रेनी ऑर्थोडॉक्स नागरिकों को अमेरिका में शरणार्थी दर्जा प्रदान करता है। इसमें इनके अलावा वियतनाम, लाओस व कंबोडिया के नागरिकों और यहूदी, ईसाई, बहाई और ईरान के अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों को भी शरण देने का प्रावधान है।
हिंदू पैक्ट का कहना है कि सीएए भारत के किसी नागरिक को प्रभावित नहीं करता है। इस कानून को गैर-धर्मनिरपेक्ष बताना निराधार है। भारत के कई पड़ोसी देशों में हिंदू अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव होता है और उन पर अत्याचार किए जाते हैं।
हिंदू पैक्ट के संस्थापक और सह-संयोजक अजय शाह ने कहा कि अमेरिकी नागरिक के तौर पर हम निराश हैं कि अमेरिकी मूल्यों और उत्पीड़न के शिकार लोगों के मानवाधिकारों की रक्षा के लिए खड़े होने के बजाय हमारी सरकार इस मानवीय प्रयास का विरोध कर रही है।
उधर अमेरिकी सिख कॉकस कमिटी ने सीएए पर एरिक गार्सेटी की टिप्पणी का समर्थन किया है। गार्सेटी ने कहा था कि अमेरिका सिद्धांतों को नहीं छोड़ सकता और लोकतंत्र की आधारशिला के रूप में धार्मिक स्वतंत्रता एवं समानता के सिद्धांतों पर जोर देता रहा है।
सिख कॉकस कमिटी ने बयान में कहा कि अमेरिका मानवाधिकारों का हमेशा समर्थन करता रहा है, चाहे वो मानवाधिकारों की वैश्विक घोषणा में पहला संशोधन हो या फिर 1998 का अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता अधिनियम। सीएए को लेकर हमारी आपत्ति आस्था की आजादी और विविधता को बढ़ावा देने की अमेरिकी सरकार की अटूट प्रतिबद्धता का प्रमाण है।
कमिटी ने सीएए को भेदभावपूर्ण बताते हुए कहा कि धार्मिक आधार पर नागरिकता के नियम बनाकर सीएए ने समानता और निष्पक्ष शासन के सिद्धांतों के किनारे रख दिया है। यह राष्ट्रवादी विचारधाराओं द्वारा तेजी से सत्तावादी बन रहे लोकतंत्रों के जोखिमों को उजागर करता है।
बता दें कि भारत सरकार द्वारा 11 मार्च को लागू संशोधित नागरिकता कानून में अफगानिस्तान, पाकिस्तान और बांग्लादेश में धार्मिक उत्पीड़न के शिकार होकर 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हिन्दू, सिख, बौद्ध, पारसी और ईसाई समुदाय के लोगों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान है।
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