पिछले 25 वर्षों में अमेरिका-भारत संबंधों में ऐसी प्रगति देखी गई है जो कुछ दशक पहले तक अकल्पनीय मानी जाती थी। 60 के दशक के मध्य से लेकर 90 के दशक के अंत तक, हमारा इतिहास सहयोगात्मक नहीं था। लेकिन जैसा कि प्रधानमंत्री मोदी ने ठीक ही कहा है, हमने अब इतिहास की उस झिझक को काबू कर लिया है। यह कैसे संभव हुआ?
संबंधों में आए इस सुधार का श्रेय दोनों देशों की नीतियों में आए बदलाव को दिया जा सकता है जिसने ऊर्जा, सुरक्षा और व्यापार जैसे प्रमुख क्षेत्रों में वास्तविक नेतृत्व और रचनात्मकता को जन्म दिया। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद व्यवस्था बनाने के लिए हमें सामूहिक खतरों का सामना करना पड़ा था जिसने हमारी सोच को बदला और नए सिरे से सहयोग के लिए प्रेरित किया।
इसके मूल में लाखों लोगों की कड़ी मेहनत थी जिन्होंने हमारे देशों को एक साथ खींचा। इनमें वे लोग भी शामिल थे जो एक से दूसरे देश गए और जीवन को फिर से शुरू करने के लिए महत्वपूर्ण जोखिम उठाया। इस माध्यम को तैयार करने में 45 लाख से अधिक भारतीय मूल के अमेरिकियों ने योगदान दिया। अब वे अमेरिकी समाज के हर पहलू में अपना योगदान दे रहे हैं।
हम अमेरिका-भारत संबंधों में साझा सोच यानी कन्वर्जेंस के युग में प्रवेश कर चुके हैं, खासकर पिछले साढ़े तीन वर्षों में। हम एक साथ कैसे काम करते हैं, हमारे देश साझा वैश्विक खतरों और अवसरों का आकलन कैसे करते हैं और हमारे लोग एक साथ कैसे रहते हैं और कैसे काम करते हैं, इन सभी पहलुओं का मेल।
हो सकता है कि हम हर बात पर सहमत न हों, लेकिन हम साथ मिलकर और भी बहुत कुछ कर सकते हैं। यह एक ऐसा युग है जिसकी नींव अब ठोस रूप ले चुकी है और आगे का रास्ता भी उज्ज्वल नजर आ रहा है।
उभरते विज्ञान व प्रौद्योगिकी क्षेत्र में हमारा सहयोग देखें। लोग अक्सर मुझसे पूछते हैं कि हमारे आधुनिकीकरण के एजेंडे के तहत विदेश विभाग के पास में नया साइबर ब्यूरो, एक नया वैश्विक स्वास्थ्य ब्यूरो और एक नया व दूरगामी असर वाली जलवायु कूटनीति, खनिज सुरक्षा व आपूर्ति श्रृंखला विश्वसनीयता क्यों हैं? इसका कारण सरल है। हमारी दुनिया तेजी से बदल रही है। तकनीक में नाटकीय तरक्की ने इंसानी प्रगति को अविश्वसनीय लाभ पहुंचना शुरू किया है, और हां महत्वपूर्ण जोखिम भी।
हमें स्वच्छ ऊर्जा को बढ़ाना देना है। वैक्सीन विकास और महत्वपूर्ण खनिज आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करने के लिए एक साथ काम करने की आवश्यकता है। कूटनीति महत्वपूर्ण है, साथ ही सहयोगियों और भागीदारों के साथ काम करना भी, खासकर भारत के साथ मिलकर काम करना। अमेरिका और भारत इस क्षेत्र और दुनिया के लोगों को अधिक शांति व समृद्धि प्रदान करने के लिए भारत-प्रशांत और बहुपक्षीय संस्थानों की संरचना को विकसित करना जारी रखेंगे।
इंडो-पैसिफिक पर हमारा फोकस समझा जा सकता है। आने वाले दशक में दुनिया की दो-तिहाई आबादी और भविष्य का आर्थिक उत्पादन भारत से ऑस्ट्रेलिया और बीच में हर जगह पर होगा। इस इलाके में अविश्वसनीय युवा हैं। 2030 तक भारत कई प्रमुख श्रेणियों में दुनिया में अग्रणी होगा जैसे कि सबसे बड़ा मध्यम वर्ग और कॉलेज स्नातक वहीं पर होंगे।
इसके बावजूद नियम आधारित व्यवस्था और लोकतंत्र के लिए कई वास्तविक खतरे भी हैं। हमें पिछले दशकों में हासिल फायदों की रक्षा के लिए अपने सभी साधनों का उपयोग करना चाहिए। इसमें क्वाड जैसी संस्थाओं का समर्थन भी शामिल है, लेकिन आसियान, एपेक और संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय संस्थानों का विस्तार भी करना होगा। यही कारण है कि हाल ही में संयुक्त राष्ट्र में अमेरिकी राजदूत लिंडा थॉमस ग्रीनफील्ड ने भारत को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट देने का फिर से आह्वान किया था।
रक्षा और व्यापार पर बढ़ता सहयोग निस्संदेह साझेदारी का एक प्रमुख पहलू बना रहेगा। दोनों अपनी अपनी जगह मजबूत हैं, लेकिन हमारे पास मिलकर काम करने के लिए और भी कई वजहें हैं। निर्यात नियंत्रण में निरंतर सुधार, अधिक रक्षा एकीकरण और सह-उत्पादन, इंटेलिजेंस शेयरिंग और समुद्र व अंतरिक्ष में सहयोग बढ़ाना, ये सभी आने वाले वर्षों में सुरक्षा बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। आज हम उसी रास्ते पर चल रहे हैं।
इकनोमिक्स और कमर्शल फायदों के साथ साथ हमें पारदर्शी, निष्पक्ष और खुली नियामक प्रक्रियाएं तैयार करने की दिशा में काम करना चाहिए। ऐसी प्रक्रियाएं जहां सभी के बिजनेस को बराबरी का मौका मिले, रोजगार पैदा हों और ऐसे मुद्दों को हल किया जा सके जो दोनों देशों के लोगों के लिए महत्वपूर्ण हैं।
आखिर में सबसे महत्वपूर्ण बात। यह सरकार के रणनीतिक उद्देश्यों के बारे में कम और लोगों को सपोर्ट करने की जरूरत के बारे में अधिक है। आखिरकार लोग इस रिश्ते को दिल से चाहते हैं। लोगों के आपसी संबंधों ने इस संबंध को आगे बढ़ाया है और हमें उन्हें ऊपर उठाना जारी रखना चाहिए।
यही कारण है कि अमेरिका भारत में नए वाणिज्य दूतावास खोल रहा है। यही कारण है कि हमने वीजा बैकलॉग और प्रतीक्षा समय को कम करने के लिए इतनी मेहनत की है।
यही कारण है कि हमने कला, खेल, संस्कृति, महिला सशक्तिकरण और अन्य क्षेत्रों में अपने सहयोग को दोगुना कर दिया है।
यही कारण है कि अमेरिका में पढ़ रहे भारतीय छात्रों का अनुभव हमारे लिए महत्वपूर्ण है और हम हर साल इसे बेहतर व आसान बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
और यही कारण है कि आप्रवासियों का अनुभव इस संबंध का इतना शक्तिशाली हिस्सा है, जो हमारी दोनों आबादियों के साझा मूल्यों से बनना है।
कुछ लोग कह सकते हैं कि मैंने हमारे साझा कार्यों और आगे की राह की बहुत गुलाबी तस्वीर पेश की है। मैं उन चुनौतियों के बारे में भी स्पष्ट हूं जिनका हम सामना करते हैं और ये चुनौतियां एक नहीं, कई हैं।
मैं रूस-चीन के बीच बढ़ते सहयोग को लेकर चिंतित हूं, खासकर सुरक्षा के लिहाज से। दोनों की यह साझेदारी रूस को यूक्रेन के खिलाफ उसके गैरकानूनी युद्ध में सहायता पहुंचा सकती है।
मैं चीन को रूस द्वारा दी जा रही मदद से चिंतित हूं, जो उसे नई क्षमताएं प्रदान करती हैं और सीधे भारत-प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा को चुनौती देती हैं।
मैं नागरिक समाजों के सामूहिक समर्थन की आवश्यकता को लेकर भी सचेत हूं। ऐसा समाज जिसमें हर व्यक्ति की आवाज सुनी जाए और उसे बोलने की स्वतंत्रता हो।
ये हमारे साझा मूल्य और समावेशी, बहुलवादी, लोकतंत्रों के प्रति प्रतिबद्धता है जो हमें एक साथ बांधती है। जब तक हम आत्मसंतुष्ट नहीं होते हैं और पिछली एक चौथाई सदी के हालिया लाभों को हल्के में नहीं लेते हैं, तब तक हमारे आने वाले वर्ष और भी बेहतर, मजबूत और अधिक प्रभावशाली हो सकते हैं।
राष्ट्रपति जो बाइडेन, उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, सेक्रेटरी एंटनी ब्लिंकन और अन्य तमाम लोग इसी दिशा में काम कर रहे हैं। साझा सोच का यह युग जारी रहना चाहिए और इसे जारी रहना ही होगा।
(लेखक रिचर्ड आर. वर्मा अमेरिका के अमेरिकी विदेश विभाग के उप मंत्री (मैनेजमेंट एंड रिसोर्सेज हैं।)
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