आधिकारिक बयानों और सार्वजनिक टिप्पणियों में भले ही कुछ कहा जा रहा हो, लेकिन भारत और अमेरिका के बीच व्यापार से जुड़े मामलों में सबकुछ अच्छा-अच्छा नहीं है। यह बात विदेशी व्यापार में बाधाओं पर हाल ही में जारी अमेरिकी सरकार की नेशनल ट्रे़ड एस्टिमेट रिपोर्ट 2024 से जाहिर है।
इस रिपोर्ट के हवाले से आई खबरों में भारत में कस्टम ड्यूटी के टैरिफ की जटिलता और उसके निर्धारण में प्रशासनिक हस्तक्षेप को लेकर कई अहम बातें कही गई हैं। इसके मुताबिक, भारत के आम बजट में घोषित टैरिफ की दरों में समय समय पर नोटिफिकेशन जारी करके बदलाव कर दिया जाता है। ये दरें तमाम तरह की छूट के अधीन होती हैं, जो उत्पाद, उसके प्रयोग और एक्सपोर्ट प्रमोशन प्रोग्राम आदि के मुताबिक अलग अलग होती हैं। इनका निर्धारण करना प्रशासनिक अधिकारियों के विवेक पर निर्भर करता है। इससे देश का कस्टम ड्यूटी सिस्टम बेहद जटिल हो जाता है।
रिपोर्ट के अनुसार, अमेरिकी कंपनियों को खासकर कंप्यूटर उपकरण आयात करते समय कई तरह की गहन वैल्यूएशन प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। उनके माल की गहरी छानबीन होती है, जब्ती भी हो जाती है। इससे कस्टम क्लियरेंस की प्रक्रिया में काफी समय लग जाता है।
रिपोर्ट में सरकार के विभिन्न मंत्रालयों के बीच तालमेल के अभाव पर भी सवाल उठाया गया है। कहा गया है कि भारत में समग्र सरकारी खरीद नीति नहीं है। इसकी वजह से सरकारी खरीद को लेकर केंद्र सरकार के विभिन्न मंत्रालयों अलग अलग प्रक्रिया अपनाते हैं। रक्षा खरीद की बात करें तो 'ऑफ़सेट प्रोग्राम' उच्च तकनीक वाले उपकरणों के निर्माताओं के लिए चुनौती बन गया है। कंपनियों के लिए बदलते नियमों और सीमित अवसरों को पूरा करना आसान नहीं होता।
भारत में पेटेंट कानूनों को लेकर अमेरिकी पक्षकारों की धारणा भी सकारात्मक नहीं है। इसकी प्रमुख वजह पेटेंट प्रदान करने की लंबी प्रक्रिया और अत्यधिक कागजी कानूनी कार्रवाई है। गोपनीय संवेदनशील व्यापारिक सूचनाओं की सुरक्षा को लेकर भारतीय अधिकारियों का रवैया भी एक चुनौती है।
सैटलाइट आधारित सेवाओं को लेकर रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में ओपन स्काई नीति का अभाव कई चुनौतियां खड़ी करता है। हर विदेशी सैटलाइट फीड पर कमीशन लेने की भारतीय नीति से लागत बढ़ जाती है। ग्राहकों को लचीलापन भी नहीं मिलता। रिपोर्ट में कई अन्य मामलों को लेकर भी चिंता जताई गई है।
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