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मानवता के खिलाफ अपराधों पर यूएन में अहम चर्चा, भारत ने इस बात पर जताई आपत्ति

भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने मानवता के खिलाफ अपराधों की मसौदा परिभाषा में आतंकवादी घटनाओं और परमाणु हथियारों के उपयोग का जिक्र न किए जाने पर आपत्ति जताई। यह मसौदा अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग (आईएलसी) की सिफारिश पर ऐसे अपराधों की रोकथाम और सजा के लिए तैयार किया जा रहा है। 

संयुक्त राष्ट्र की छठी समिति महासभा में कानूनी मामलों को संबोधित करने का मुख्य मंच है। / Image - the United Nations

मानवता के खिलाफ अपराधों पर चर्चा के लिए संयुक्त राष्ट्र की छठी समिति का 78वां सत्र बुलाया गया है। इस दौरान भारत ने मानवता के खिलाफ अपराधों से निपटने के लिए अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग (आईएलसी) की सिफारिश पर तैयार परिभाषा में आतंकी वारदातों और परमाणु हथियारों के इस्तेमाल को शामिल न किए जाने पर आपत्ति जताई। 

संयुक्त राष्ट्र की छठी समिति महासभा में कानूनी मामलों को संबोधित करने का मुख्य मंच है। 1 अप्रैल से शुरू हुआ इसका 78वां सत्र 5 अप्रैल तक चलेगा। उसके बाद 11 अप्रैल को भी इस पर चर्चा होगी। इस दौरान मुख्य विषय एजेंडा आइटम 80 (मानवता के खिलाफ अपराध) पर चर्चा करना है। इस सत्र के दौरान कुल 72 प्रतिनिधिमंडल अपनी बात रखेंगे। 

सत्र में हिस्सा लेते हुए भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने मानवता के खिलाफ अपराधों की मसौदा परिभाषा में आतंकवादी घटनाओं और परमाणु हथियारों के उपयोग का जिक्र न किए जाने पर आपत्ति जताई। यह मसौदा अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग (आईएलसी) की सिफारिश पर ऐसे अपराधों की रोकथाम और सजा के लिए तैयार किया जा रहा है। 

भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने कहा कि हम यह नहीं समझ पा रहे हैं कि क्यों और कैसे इस तरह के कृत्य मानवता के खिलाफ अपराध कहे जाने के योग्य नहीं हैं। यहां ध्यान देना होगा कि पिछले चार दशकों में हमने आतंकी वारदातों से हुई भारी तबाही देखी है।

भारत का मानना है कि जिस देश में अपराध होता है, उसे मानवता के खिलाफ अपराधों में कार्रवाई का जिम्मा संभालना चाहिए। इसी से पीड़ितों को न्याय और अभियुक्तों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित हो सकेगी।

भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने अंतर्राष्ट्रीय विधि आयोग द्वारा प्रस्तावित अनुच्छेदों और अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय के रोम संबंधी प्रावधानों तथा जनसंहारक अपराधों की रोकथाम एवं सजा पर कन्वेंशन के बीच समानता पर भी आपत्ति जताई। 

भारत ने कहा कि हमारा विचार है कि अन्य अंतरराष्ट्रीय समझौतों में दर्ज ऐसे कानूनी सिद्धांतों और परिभाषाओं को लागू करने का प्रयास नहीं किया जाना चाहिए जिन्हें सबकी स्वीकृति नहीं है। हमारा मानना है कि जिन सदस्य देशों ने रोम संविधि की सदस्यता नहीं ली है, उनके पास ऐसे अपराधों से निपटने के लिए राष्ट्रीय कानून मौजूद हैं।

प्रतिनिधिमंडल ने जोर दिया कि क्षेत्रीय या व्यक्तिगत क्षेत्राधिकार वाले देश मानवता के खिलाफ अपराधों पर प्रभावी ढंग से कार्रवाई करने में सबसे ज्यादा सक्षम है। यह नजरिया न्याय के अनुकूल है, यह अभियुक्तों के अधिकारों की रक्षा करता है और पीड़ितों और अन्य संबंधित पक्षों के हितों का भी ध्यान रखता है।


 

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