एक हालिया अध्ययन से पता चला है कि अप्रवासी परिवारों में बच्चे भाषा संबंधी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। अध्ययन यूसी मर्सिड ने किया है। अध्ययन में अन्य चुनौतियां का भी जिक्र किया गया है। ऐसे बच्चे अक्सर विभिन्न सामाजिक परिवेशों में अपने परिवार के बड़े सदस्यों के लिए अनुवादक के रूप में कार्य करते हैं।
कैलिफोर्निया की सेंट्रल वैली के बहुसांस्कृतिक परिदृश्य में लगभग 45 प्रतिशत परिवार मुख्य रूप से अंग्रेजी नहीं बोलते। यहां अंतर-सांस्कृतिक संचार का एक कम ज्ञात पहलू भावनात्मक टूटन के रूप में सामने आ रहा है। जहां बच्चे अपने गैर-अंग्रेजी भाषी बड़ों के लिए दुभाषिया के रूप में कार्य करते हैं वहां भाषाई टूटन साफ तौर पर दिखाई दे रही है।
हालांकि भावनात्मक टूटन केवल शब्दों के अनुवाद से परे है। इसमें अपने बड़ों और सेवा प्रदाताओं के बीच संचार अंतर को पाटने के लिए शरीर की भाषा और चेहरे के भाव जैसे गैर-मौखिक संकेतों को समझना शामिल है।
यूसी मर्सिड में विकासात्मक मनोविज्ञान में स्नातक छात्र और प्रमुख शोधकर्ता सिवेनेसी सुब्रमनी ने इन सूक्ष्म अंतःक्रियाओं को समाहित करने के लिए 'इमोशन ब्रोकिंग' शब्द का इस्तेमाल किया है।
'सांस्कृतिक विविधता और जातीय अल्पसंख्यक मनोविज्ञान' में प्रकाशित उनके निष्कर्षों से चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई हैं। यूसी मर्सिड में लैटिनएक्स छात्रों के एक महत्वपूर्ण प्रतिशत ने परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत में इमोशन ब्रोकरिंग के उदाहरणों की सूचना दी। इसके अलावा इनमें से कई उदाहरणों को बच्चों की भावनात्मक भलाई पर नकारात्मक प्रभाव डालने वाला माना गया।
रिपोर्ट के सह-लेखकों में से एक प्रोफेसर दलिया मगाना का कहना है कि यह सहयोग युवा लैटिनक्स द्विभाषियों की उल्लेखनीय क्षमताओं को उजागर करता है जो सांस्कृतिक मतभेदों और भाषा अंतरालों को समझने के साथ-साथ भावनाओं की व्याख्या भी करते हैं। फिर भी हम उनके मानसिक स्वास्थ्य और कल्याण पर पड़ने वाले नकारात्म क प्रभावों को तेजी से पहचान रहे हैं।
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