पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड जे. ट्रम्प ने अपने कार्यकाल में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की स्थिति को लेकर लंबे समय तक झूठ बोला है। उन्होंने बार-बार कहा है कि उनके कार्यकाल के दौरान अमेरिका की 'हमारे देश के इतिहास में सबसे अच्छी अर्थव्यवस्था' थी। आर्थिक उपलब्धि के व्यापक माप और औसत वार्षिक वास्तविक जीडीपी वृद्धि के आधार पर रूढ़िवादी हडसन इंस्टीट्यूट ने अमेरिकी वाणिज्य विभाग के आंकड़ों के आधार पर द्वितीय विश्व युद्ध के बाद के आठ राष्ट्रपतियों की एक सूची तैयार की है जिनकी जीडीपी वृद्धि ट्रम्प से बेहतर थी। जॉनसन, कैनेडी, क्लिंटन और रीगन सूची में शीर्ष पर थे।
अपने कार्यकाल के दौरान अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में झूठ के साथ ट्रम्प ने बाइडेन-हैरिस प्रशासन के तहत अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में भी झूठ बोला है। उन्होंने कहा है कि बाइडेन-हैरिस ने 'अर्थव्यवस्था को चौपट कर दिया' है। उन्होंने फिर से ब्यूरो ऑफ इकोनॉमिक एनालिसिस के आंकड़ों का उपयोग करते हुए 2022-2024 के गैर-कोविड वर्षों के लिए बाइडेन-हैरिस के तहत औसत वार्षिक वास्तविक जीडीपी वृद्धि 2.9% बताई थी, जबकि गैर-कोविड वर्षों के लिए ट्रम्प के तहत वार्षिक औसत वार्षिक वास्तविक जीडीपी 2.3% थी। कोविड वर्षों में कोविड संकट से निपटने में ट्रम्प के नेतृत्व की कमी ने 2020 के विनाशकारी आर्थिक प्रदर्शन ने योगदान दिया जिससे बाइडेन-हैरिस ने 2021 में अमेरिका को बाहर निकालने में मदद की।
विदेशियों के शोषण के कारण 'नष्ट' अर्थव्यवस्था का झूठा आख्यान तैयार करने के बाद ट्रम्प ने एक व्यापार नीति नुस्खा पेश किया जो ट्रम्प के ऐसे विदेशी-विरोधी शब्द-बाणों की बौछार को दोगुना कर देता है जैसे कि आप्रवासी 'हमारे देश के खून में जहर घोल रहे हैं', विशेष रूप से एशियाई आप्रवासी। नष्ट हुई अर्थव्यवस्था की झूठी छवि को तेजी से बढ़ती ट्रम्प अर्थव्यवस्था की समान रूप से झूठी छवि में बदलने के लिए मूल व्यापार नीति अमेरिकी अर्थव्यवस्था को 10 से 20% टैरिफ द्वारा बंद करना है। यह टैरिफ भारत जैसे मित्रों के साथ-साथ रूस जैसे विरोधियों पर भी लागू होगा। यह ट्रम्प की अवधारणा के साथ अच्छी तरह से फिट बैठता है कि विदेशी देशों ने संयुक्त राज्य अमेरिका का फायदा उठाया है और विदेशियों से निपटने के खुलेपन के कारण देश अब 'महान' नहीं है।
अंतरराष्ट्रीय व्यापार में टैरिफ बाधा का उपयोग करके 'अमेरिकी किले' के निर्माण का प्रयास देश के लिए विनाशकारी परिणामों के साथ पहले भी किया जा चुका है। 1929 में शेयर बाजार में गिरावट और महामंदी की शुरुआत के जवाब में राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर ने 1930 के स्मूट-हॉले टैरिफ कानून पर हस्ताक्षर किए जिसने औसत शुल्क को लगभग 16% तक बढ़ा दिया, हालांकि कुछ वस्तुओं पर टैरिफ 60% तक बढ़ा दिए गए थे। अमेरिकी सीनेट के ऐतिहासिक ब्लॉग के शब्दों में टैरिफ 'एक आपदा साबित हुआ'। अन्य देशों ने जवाबी कार्रवाई की और अंतरराष्ट्रीय व्यापार काफी कम हो गया।
लिहाजा, कोई गलती न करें। ट्रम्प के प्रस्तावित टैरिफ का बोझ औसत अमेरिकियों को ही झेलना पड़ेगा जिसमें भारतीय अमेरिकी भी शामिल हैं। उन्हे ट्रम्प टैरिफ के कारण वस्तुओं की बढ़ी हुई लागत के लिए भुगतान करना होगा। ट्रम्प फिर झूठ बोलते हैं जब वे कहते हैं कि विदेशी टैरिफ की लागत वहन करेंगे। कानून के अनुसार यह आयातक है जो आयातित वस्तुओं पर टैरिफ का भुगतान करता है, विदेशी निर्यातक नहीं। अर्थशास्त्री इस बात पर सहमत हैं कि ज्यादातर मामलों में यह टैरिफ पूरी तरह या आंशिक रूप से उपभोक्ता को दिया जाता है। अनुमान अलग-अलग हैं लेकिन वस्तुतः कोई भी अर्थशास्त्री यह नहीं कहता कि टैरिफ का औसत अमेरिकियों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा। पीटरसन इंस्टीट्यूट मुद्रास्फीति में 2% की वृद्धि के साथ औसत अमेरिकी परिवार पर प्रति वर्ष 2,600 डॉलर का बोझ डालता है। जबकि अन्य अनुमान बहुत अधिक हैं।
ट्रम्प पहले ही भारत को 'टैरिफ का बहुत बड़ा दुरुपयोगकर्ता' कह चुके हैं। लिहाजा यह संभावना बहुत कम है कि ट्रम्प द्वारा लगाए गए स्टील और एल्युमीनियम टैरिफ पर वे भारत को कोई राहत देंगे, जैसी कि बाइडेन-हैरिस ने दी थी। इसके बजाय, अधिकांश अन्य देशों की तरह भारत भी इसे एक राजनीतिक मामला मानकर जवाबी कार्रवाई करने के लिए मजबूर हो जाएगा। व्यापक प्रतिशोध का यह पैटर्न दुनिया को 1930 के स्मूट-हॉले टैरिफ के समान व्यापार--गर्त में भेज देगा। भारत पर ट्रम्प संरक्षणवाद के प्रतिकूल प्रभाव टैरिफ तक नहीं रुकेंगे। ट्रम्प ने पहले भी एच1-बी वीजा के खिलाफ अभियान चलाया था और तब इसे 'बहुत खराब' और अमेरिकियों से नौकरियां छीनने वाला बताया था।
अमेरिकी अर्थव्यवस्था के सामने आने वाली चुनौतियों का सामना एक सरल टैरिफ प्रस्ताव से नहीं किया जा सकता है जो अर्थव्यवस्था के बारे में गलत आख्यानों को बढ़ावा देता है और विदेशियों को एक खतरे के रूप में देखता है। भारतीय अमेरिकियों ने भारत और बाकी दुनिया के साथ बढ़ते और जीवंत अमेरिकी आर्थिक जुड़ाव में बहुत योगदान दिया है। यह जुड़ाव अमेरिकी और भारतीय ताकत का स्रोत रहा है, कमजोरी का नहीं और भारतीय अमेरिकियों के व्यापक हित में है। ट्रम्प के टैरिफ प्रस्ताव उनके अलगाववादी आधार के लिए आकर्षक हो सकते हैं, लेकिन अमेरिका, भारतीय अमेरिकियों और भारत के लिए विनाशकारी हो सकते हैं।
(लेखक पूर्व अमेरिकी वाणिज्य, व्यापार विकास सहायक सचिव और यू.एस.-इंडिया फ्रेंडशिप काउंसिल के संस्थापक निदेशक हैं)
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