गाजा में जो कुछ चल रहा है उसे लेकर दक्षिण अफ्रीका ने अंतरराष्ट्रीय अदालत (इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस यानी ICJ) का दरवाजा खटखटाया है। उसके बाद से जो भी कानूनी प्रपंच सामने आ रहे हैं उससे इजराइल की बेंजामिन नेतन्याहू सरकार न तो इनकार कर सकती और न उनकी आड़ ले सकती। सबसे पहले तो अंतरराष्ट्रीय अदालत ने इस धारणा को सिरे से खारिज कर दिया कि यह मामला उसके दायरे से बाहर है।
युद्धविराम का उल्लेख करने के अलावा अंतरराष्ट्रीय अदालत ने दक्षिण अफ्रीका द्वारा उठाए गए कई बिंदुओं पर ध्यान दिया है और यहूदी राज्य को नरसंहार के लिए प्रत्यक्ष और सार्वजनिक उकसावे को रोकने और दंडित करने के लिए अपनी शक्ति के भीतर सभी उपाय करने का आदेश दिया है। इस मुद्दे पर कि क्या इजराइल ने गाजा में नरसंहार किया है विश्व न्यायालय द्वारा अभी फैसला नहीं सुनाया है। शायद इसमें कई साल लग सकते हैं लेकिन न्यायाधीशों ने गाजा में फलस्तीनियों के लिए 'खतरे' का हर संकेत दिया है।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि गाजा में एक वास्तविक और आसन्न जोखिम है। तेल अवीव को एक कड़ी चेतावनी के रूप में न्यायालय ने कहा है कि यहूदी सरकार के वरिष्ठ अधिकारियों द्वारा दिए गए कुछ बयानों पर भी उसने तवज्जो दी है। खासकर उस बयान पर जिसमें कहा गया था कि 'हम सब कुछ खत्म कर देंगे' इत्यादि। इससे उस दावे को बल मिलता है कि वहां नरसंहार कराया गया लिहाजा फलस्तीनियों को ऐसे माहौल में सुरक्षा की जरूरत है।
लेकिन नरसंहार पर फैसला एक लंबी चलने वाली प्रक्रिया है। उदाहरण के लिए ICJ ने 2019 में हेग में लाए गए एक मामले में म्यांमार और रोहिंग्याओं पर अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है। ऐसा नहीं है कि पूरी दुनिया 7 अक्टूबर को हमास द्वारा किए गए भयानक आतंकी हमले को भूल गई है या किसी भी तरह से आतंकवादी ठगों के प्रति सहानुभूति रख रही है लेकिन इसके बाद वहां जो कुछ हुआ वह अविश्वसनीय है।
करीब 26,000 फलस्तीनी मारे गए हैं। हजारों मलबे के नीचे हैं। कई या अधिकांश पीड़ित महिलाएं और छोटे बच्चे हैं। लगभग 80 प्रतिशत गाजा भोजन, पानी और चिकित्सा सुविधाओं से वंचित है। यही नहीं निर्दोष लोगों को बंधक बनाने वाले आतंकवादियों की तलाश में प्रमुख चिकित्सा सुविधाओं को निशाना बनाया जा रहा है।
ICJ के पास कोई प्रवर्तन तंत्र नहीं है और नेतन्याहू ऐसे राजनीतिक व्यक्ति भी नहीं हैं जिनसे बहस की जाए। दक्षिण अफ़्रीका या कोई भी देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में दस्तक दे सकता है और यहां तेल अवीव केवल अपने एकमात्र 'स्थायी' सहयोगी यानी अमेरिका पर ही भरोसा कर सकता है। लेकिन बाइडन प्रशासन पहले से ही गाजा मसले के लिए घरेलू स्तर पर आलोचना का सामना कर रहा है।
ऐसे में अमेरिका युद्धविराम संबंधी प्रस्ताव को पारित करने की अनुमति तो दे सकता है लेकिन निश्चित रूप से व्यापार और हथियार प्रतिबंध की मांग वाली किसी भी कार्रवाई को वीटो कर देगा। आम तौर पर दो राज्यों के फार्मूले को इस समस्या से बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता माना जाता है। लेकिन इसे राजनीतिक रूप से आगे बढ़ाने के लिए एक अनुकूल माहौल बनाना होगा।
बेशक, वह तभी हो सकता है जब गाजा में युद्धविराम हो। युद्ध पहले ही गाजा से आगे बढ़ चुका है। इसमें लेबनान में हिजबुल्लाह और विस्तार के साथ ईरान के माध्यम से लाल सागर में हूती विद्रोहियों की एंट्री हो चुकी है। अब समय आ गया है कि समस्या को फलस्तीनी नजर से देखा जाए न कि क्षेत्रीय और वैश्विक हिसाब-किताब चुकता करने के लिए गाजा का इस्तेमाल करने की मंशा से।
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