अमेरिका की पूर्व एसोसिएट अटॉर्नी जनरल, भारतीय मूल की वनिता गुप्ता का मानना है कि अमेरिकी समाज में भारतीयों का योगदान लगातार बढ़ रहा है। फेडरल गवर्नमेंट में भी हर जगह दक्षिण एशियाई मौजूद हैं और उनकी संख्या बढ़ रही है। हालांकि कुछ चीजों पर ध्यान देने की भी जरूरत है।
इंडियन अमेरिकन इम्पैक्ट की तरफ से आयोजित Desis Decide समिट में वनिता गुप्ता ने कहा कि संघीय सरकार में दक्षिण एशियाई मौजूद हैं। हम पूरे देश में संगठन चला रहे हैं, फिल्में बना रहे हैं, संस्कृति बदल रहे हैं। यह कई मायनों में बहुत अच्छा है, लेकिन कुछ ऐसा भी है जिस पर हमें लगातार काम करना होगा कि हम अपना ध्यान वहीं लगाएं, जहां पर ज्यादा जरूरत है।
गुप्ता ने कहा कि कांग्रेस के वर्तमान सदस्यों को छोड़ दें, लेकिन मैं सचमुच नहीं जानती थी कि संगठन में मेरे जैसे दिखने वाले बहुत से लोग हैं। हमारे समुदाय के लोगों ने अमेरिका में अपनी कहानी लिखनी शुरू कर दी है। आपराधिक न्याय का क्षेत्र भी इससे अछूता नहीं है। बहुत सारे युवा लोग हैं जो सार्वजनिक हित में काम करने के लिए सार्वजनिक सेवा में जाना चाहते हैं। मैंने और मेरे जैसे कई अन्य लोगों ने उनके लिए जगह बनाई है। ऐसा इसलिए किया ताकि हम अगली पीढ़ियों के लिए मिसाल कायम कर सकें।
वनिता गुप्ता ने भारतीय अमेरिकी और दक्षिण एशियाई समुदाय के सदस्यों की तारीफ करते हुए कहा कि जब भी जरूरत पड़ती है, वो समाज से जुडे़ व्यापक मुद्दों पर साथ देने के लिए इकट्ठा हो जाते हैं। यह दिखाता है कि वे समाज के अन्य सदस्यों के लिए अच्छे सहयोगी हैं।
वनिता के उदाहरण देते हुए कहा कि मार्टिन लूथर किंग महात्मा गांधी और उनके अहिंसा के सिद्धांत से सीधे जुड़े हुए थे। उनके बीच गहरा संबंध था। इसी तरह का संबंध अब भी लोगों के बीच है। लोग जितना समझते हैं, ये संबंध उससे भी कहीं ज्यादा गहरा है।
दुनिया में बढ़ते अधिनायकवाद (authoritarianism)और लोकतंत्र के लिए बढ़ती चुनौतियों के बारे में वनिता गुप्ता ने कहा कि तथ्य यह है कि हम एक बेहद बहुलवादी देश हैं। यह लोकतंत्र की चुनौतियों को ज्यादा जटिल बनाता है लेकिन इसके अपने फायदे भी हैं। मैंने हमेशा भारत को उसी तरह देखा है, जैसा गांधी के विचारों में था। एक बहुलवादी देश के रूप में।
गुप्ता ने आगे कहा कि भारत में इस्लाम और अन्य अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ जिस तरह से चुनौतियां बढ़ रही हैं, उससे मैं बहुत चिंतित हूं। उन्होंने कहा कि ऐसे कई देश हैं जहां संस्थानों में अविश्वास के बीज बोए जा रहे हैं, लोकतांत्रिक मानदंडों व नियमों पर सवाल उठाए जा रहे हैं, विपक्ष और चुनावों की वैधता को भी कम किया जा रहा है।
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