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ढोल ताशे की धुन पर अमेरिका मस्त, बोस्टन-बाल्टीमोर से आगे भी गूंज रही देसी धुन

अमेरिका में महाराष्ट्र की पारंपरिक कला ढोल ताशे की लोकप्रियता में लगातार इजाफा हो रहा है। इसका श्रेय उन समर्पित समूहों को जाता है जो इस पारंपरिक कला को अमेरिका में जीवंत बनाए हुए हैं।

ये ग्रुप ढोल ताशे की पारंपरिक बीट्स में अन्य भारतीय धुनों और नए जमाने की ताल के साथ नए प्रयोग कर रहे हैं। / Image provided

ढोल ताशा की बीट्स ने हाल के वर्षों में भारत से दूर अमेरिका के भी कई शहरों को अपनी गूंज से गुंजायमान कर दिया है। बोस्टन से लेकर बाल्टीमोर तक और उससे भी आगे, महाराष्ट्र की इस पारंपरिक कला की लोकप्रियता में लगातार वृद्धि हो रही है। इसका श्रेय उन समर्पित समूहों को जाता है जो इस पारंपरिक कला की ऊर्जा को अमेरिकी जीवन में उतारने में जुटे हैं।

न्यू इंग्लैंड में, इंडिया सोसाइटी ऑफ वॉर्सेस्टर (आईएसडब्ल्यू) का सिम्फनी ढोल ताशा लेजिम ग्रुप अपने इलाके में भारतीय सांस्कृतिक कार्यक्रमों का स्थायी अंग बन चुका है। आईएसडब्ल्यू के स्वयंसेवकों ने तीन साल पहले इसकी शुरुआत की थी। इस इस ग्रुप में 65 से अधिक मेंबर हो गए हैं, जो भारत के विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ये ग्रुप बोस्टन के फैनुइल मार्केट प्लेस, हैच मेमोरियल शेल और वॉर्सेस्टर आर्ट म्यूजियम समेत तमाम जगहों पर 25 से अधिक प्रस्तुतियां दे चुका है। 

बोस्टन के फैनुइल मार्केट प्लेस में प्रस्तुति के बाद आईएसडब्ल्यू सिम्फनी के कलाकार। / Image provided

आईएसडब्ल्यू सिम्फनी समूह को जो चीज अलग करती है, वह है उनका नजरिया। वे ढोल ताशे की पारंपरिक बीट्स का सम्मान करते हैं, साथ ही भारत के अन्य हिस्सों की धुनों को भी इसमें शामिल करते हैं जैसे कि पंजाब और गुजरात के पैटर्न। यह मिश्रण ग्रुप के सदस्यों की विविध सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को दर्शाता है।

आईएसडब्ल्यू सिम्फनी ग्रुप के संस्थापक सदस्यों में से एक अरविंद किन्हिकर कलाकारों के जुनून की डोर "एकच नशा, ढोल ताशा!" (केवल एक जुनून: ढोल ताशा!) को थामकर आगे बढ़ते हैं। यह सरल लेकिन शक्तिशाली भावना पूरे ग्रुप के उत्साह और समर्पण को रेखांकित करती है और उन्हें लगातार प्रयास के लिए प्रेरित करती है।

आईएसडब्ल्यू के वॉलंटियर रंजीत मुले का संगीत से व्यक्तिगत नाता है। वह कहते हैं कि जब मैं अपना ढोल बजाता हूं, ताशे की थाप पर ट्यूनिंग करता हूं तो मुझे ऐसा लगता है कि मैं वापस अपने बचपन में पहुंचकर मुंबई में भव्य गणेश उत्सव समारोह में भाग ले रहा हूं। उस पल मैं पूरी तरह से उस अनुभव में डूब जाता हूं। उस पल में खुद को पूरी तरह से समर्पित करके आनंद लेता हूं।
 

ढोल की धुनों से फैनुइल मार्केट प्लेस को गुंजाते आईएसडब्ल्यू सिम्फनी लेजिम के नौजवान। / Image provided

ISW सिम्फनी ढोल ताशा लेज़िम ग्रुप सिर्फ परफॉर्मेंस का नाम नहीं है, यह सामुदायिक निर्माण का जरिया है। वे नियमित रूप से कला के अन्य रूपों से भी संबंध बनाते हैं। इनमें केरल का चेंदा मेलम ग्रुप और आईएसडब्ल्यू वोकल एनसेंबल ग्रुप शामिल है। इनका सांस्कृतिक संयोजन अकेले ढोल ताशा से परे है। वे कला सीखने वालों के लिए वर्कशॉप आयोजित करते हैं। समुदाय को एकजुट करने और ढोल, ताशा और लेज़िम की खुशियों को दूर दूर तक फैलाने के लिए नए लोगों का स्वागत करते हैं।

साउथ के मैरीलैंड में देखें तो आवर्तन ढोल ताशा बरची ध्वज पाठक ग्रुप भी खासी तरक्की कर रहा है। बाल्टीमोर मराठी मंडल समुदाय के सदस्यों द्वारा 2021 में स्थापित आवर्तन आठ लोगों के छोटे से ग्रुप से अब 40 सदस्यों का एक मजबूत समूह बन चुका है। पुणे की संगीतमय विरासत में निहित पारंपरिक ढोल ताशा पैटर्न के लिए मशहूर आवर्तन परंपरा और नवीनता के मिश्रण से लोगों के दिलों में जगह बना रहा है।

आवर्तन को हाला ही में न्यूयॉर्क शहर में आयोजित इंडिया डे परेड में परफॉर्मेंस के लिए आमंत्रित किया गया था। / Image provided

आवर्तन की वॉलंटियर रुद्धि वडाडेकर भावुकता के साथ कहती हैं कि मैरीलैंड में अवरतन की ढोल ताशा की परफॉर्मेंस मेरे स्कूल ज्ञान प्रबोधिनी के दिनों की यादें ताजा कर देती है। यहां अमेरिका में उन पुरानी यादों को फिर से जीवंत करना बहुत खास है।

आवर्तन को हाला ही में न्यूयॉर्क शहर में आयोजित इंडिया डे परेड में परफॉर्मेंस के लिए आमंत्रित किया गया था, जहां उन्होंने अपनी अनूठी बीट्स और उत्साही प्रदर्शन से समां बांध दिया था। अब ग्रुप आगामी गणेश उत्सव के दौरान तीन प्रमुख कार्यक्रमों में अपनी कला का प्रदर्शन करेगा और इलाके के लोगों में हिंदुस्तानी धुन छेड़ने को तैयार है।

ढोल ताशा की लोकप्रियता सिर्फ बोस्टन और बाल्टीमोर तक सीमित नहीं है। अमेरिका में ऐसे कई ग्रुप फल-फूल रहे हैं जो ढोल ताशा की सांस्कृतिक परंपरा को नए और रोमांचक तरीकों से आगे बढ़ाते हुए महाराष्ट्रियन आवाज़ को नए इलाकों तक पहुंचा रहे हैं। हरेक समूह कला में अपनी विविधता का रंग घोल रहा है, लेकिन ढोल ताशा के गहरे जुनून और संगीत के प्रति प्रेम का धागा इन सभी को एक सूत्र में बांधे हुए है। 

आईएसडब्ल्यू ग्रुप के आयोजकों में से एक राजेश खरे कहते हैं कि ढोल ताशा लोगों को एक साथ लाने का एक अनूठा तरीका है। चाहे आप खुद इसमें शामिल हों या बस सुन रहे हों, ये बीट्स हमारे अंदर की गहराई तक प्रतिध्वनित होती हैं, एक साझा तरंग पैदा करती हैं जो हमें एक समुदाय के रूप में एकजुट करती है।

पूरे अमेरिका में ढोल ताशा ग्रुप इस वक्त उत्साह में है क्योंकि गणपति उत्सव आने वाला है। शोभायात्राओं में सबसे आगे रहकर "गणपति बप्पा मोरया!" की गूंज के साथ अपने प्रदर्शन से भीड़ में जोश जगाने के लिए तैयार है।

ढोल ताशा अब अमेरिका का हिस्सा बन गया है और समय के साथ इसकी धुन ज्यादा से ज्यादा दिलों की गहराइयों को छू रही है। 

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