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अमेरिका और शेष दुनिया पर गहरा असर डालने वाले हैं चुनाव नतीजे

ट्रम्प और बाइडन में कुछ समानताएं हैं। दोनों को आम तौर पर अमेरिकी राजनीति में नापसंद किया जाता है। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि लोग डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों ही ओर से किसी और के लिए टिकट चाहते हैं।

डोनाल्ड ट्रम्प और जो बाइडन / Image : NIA

अगर अमेरिका में प्राइमरी सीजन के 'सुपर ट्यूसडे' का नतीजा कुछ और निकला होता तो यकीनन वह एक खबर होती। असली खबर। मगर उम्मीदों के मुताबिक पूर्व रिपब्लिकन राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ग्रैंड ओल्ड पार्टी में अपने एकमात्र प्रतिद्वंद्वी को 15 में से 14 राज्यों में शिकस्त देकर खुद को सिंहासन के और करीब ले आए हैं। 45वें राष्ट्रपति को अब कुछ और दिनों तक इंतजार करना होगा जब प्रतिनिधियों का गणित उन्हें 12 या 19 मार्च को 1215 अंक देगा।

हालांकि निकी हेली एक भारतीय-अमेरिकी के रूप में ट्रम्प को शुरुआत में ठीकठाक चुनौती दे रही थीं मगर उनका खेल कुछ समय पहले ही खत्म हो गया। निकी ने आसानी से झुकने से भी इनकार कर दिया था। उनके द्वारा पहले दिए गए संकेतों के अनुरूप 5 मार्च का सुपर मंगलवार उनकी उम्मीदों के अनुरूप नहीं था। आखिरकार निकी को राष्ट्रपति पद की दावेदारी से बाहर निकलना जाना ही पड़ा। लेकिन दौड़ से विराम लेते हुए उन्होंने एक बार फिर साफ कर दिया कि वह ट्रम्प का समर्थन नहीं कर रही थीं। जाहिर तौर पर दूसरे उम्मीदवारों ने रिपब्लिकन पार्टी की भविष्य की दिशाओं को अच्छी तरह से जानते हुए वह (समर्थन) किया। बेशक, अभी यह तय नहीं कि पूर्व राष्ट्रपति 5 नवंबर को निर्वाचित होते हैं या नहीं।

दूसरी ओर, राष्ट्रपति जो बाइडन के लिए कहानी एकदम अलग है। उन्हे डेमोक्रेट्स से कोई वास्तविक खतरा नहीं रहा। उन्होंने साथ दिया लेकिन हर कदम पर यह याद दिलाते हुए कि असल समस्याएं आगे आने वाली हैं। उम्र और याददाश्त बाइडन की सबसे बड़ी बाधाएं हैं। कई सर्वेक्षणों ने भी बाइडन की इन बाधाओं को रेखांकित किया है। यदि केंद्र के वामपंथी और पार्टी में प्रगतिवादी नरमपंथियों से दूर जा रहे हैं तो बाइडन अभियान के सामने अब एक नई चिंता 'अप्रतिबद्ध' मतदाता हैं जो मिशिगन और मिनेसोटा में बड़ी संख्या में शासन की कथित विफलता का विरोध करने के लिए आए थे। बेंजामिन नेतन्याहू की ओर से व्हाइट हाउस की लगातार अवमानना ने कांग्रेस के पीछे जाने वाले और इजराइल की सैन्य सहायता में कमियां ढूंढने वाले प्रशासन की झुंझलाहट को और बढ़ा दिया है।

5 नवंबर के लिए अपनी रणनीति बनाते समय ट्रम्प और बाइडन में कुछ समानताएं हैं। दोनों को आम तौर पर अमेरिकी राजनीति में नापसंद किया जाता है। सर्वेक्षणों से पता चलता है कि लोग डेमोक्रेटिक और रिपब्लिकन दोनों ही ओर से किसी और के लिए टिकट चाहते हैं। बेशक, बाइडन को कमजोर याददाश्त वाले एक अच्छे और बूढ़े व्यक्ति के रूप में देखा जाता है मगर ट्रम्प को एक डरावनी मानसिकता वाले 77 वर्षीय व्यक्ति के रूप में देखा जाता है। ट्रम्प खेमा निस्संदेह स्मृति फलक पर खेल कर रहा है। कभी-कभी राष्ट्रपति का यह कहकर मजाक उड़ाया जाता है जैसे कि उन्हें यह भी पता नहीं होगा कि आज कौन सा दिन है। लेकिन बाइडन की टीम एक सरल सा सवाल रखेगी कि क्या उम्र से संबंधित स्मृति समस्या बड़ी बात है या खतरनाक मानसिकता वाला व्यक्ति?

बहरहाल, 5 नवंबर को क्या होना है इसका फैसला अमेरिकियों को करना है। लेकिन इसमें अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था भी एक पेंच है। हाल के वर्षों और महीनों में दुनिया ने बाइडन प्रशासन के अफगानिस्तान से निपटने के अनाड़ीपन को निराशा के साथ देखा है और गाजा में जो कुछ भी हो रहा है उस पर हालिया क्रूर चुप्पी एक ऐसे देश के लिए अहम बिंदू है जिसे अंतरराष्ट्रीय मामलों में वैश्विक भूमिका निभानी चाहिए। दिख तो यही रहा है कि ट्रम्प का विकल्प वास्तव में कई लोगों की रातों की नींद उड़ा चुका है। 

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