जब वह 5 साल की थीं तो उनकी मां शोभना समर्थ ने उन्हें अपने होम प्रोडक्शन की फिल्म 'हमारी बेटी' में युवा नूतन का किरदार निभाने के लिए कहा जिससे उनकी बड़ी बहन नूतन की बॉलीवुड में शुरुआत हुई। लेकिन तनुजा की पहली फिल्म से ही यह साफ हो गया था कि वह न तो अपनी मां की तरह थीं और न ही अपनी बहन जैसी। उनका अपना मिजाज था। उन्होंने हल्की-फुल्की भूमिकाएं कीं और फिर मेम-दीदी और भूत बंगला जैसी फिल्मों तक आ गईं। फिर उन्होंने अनुभव, बहारें फिर भी आएंगी और निश्चित रूप से ज्वेल थीफ जैसी फिल्मों में काम करना शुरू कर दिया। ज्वेल थीफ के लिए तनुजा को फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
एक ऐसे व्यक्ति के लिए जो कभी अभिनेता नहीं बनना चाहता था उसने मुख्यधारा सिनेमा में 15 वर्षों तक शानदार अभिनय किया। फिल्म एक बार मुस्कुरा दो (राम मुखर्जी द्वारा निर्देशित, जॉय मुखर्जी और देब मुखर्जी द्वारा अभिनीत) के निर्माण के दौरान उनकी मुलाकात शोमू मुखर्जी से हुई और प्यार हो गया। शोमू और तनुजा ने शादी कर ली। उनकी दो बेटियां हुईं- काजोल और तनीषा।
लेकिन वह शादी टिकने वाली नहीं थी। अभिनेत्री ने जल्द ही खुद को मुश्किल हालात में पाया। दुर्भाग्य से कुछ वर्षों तक वह दूर रहीं। समय पहले ही बदल चुका था। जब वह महज 30 साल की थीं लेकिन अचानक उन्हें उन सह-कलाकारों के लिए 'भाभी' बनना पड़ा जिनके साथ वह कभी रोमांस किया करती थीं। जल्द ही उन्हें उन अभिनेत्रियों की मां की भूमिका निभाने के लिए कहा जाने लगा जो उनसे सिर्फ 5-7 साल छोटी थीं। लेकिन उन्होंने वह सब सहजता से लिया क्योंकि अभिनय हमेशा उनके लिए आजीविका का एक साधन था। इससे ज्यादा कुछ नहीं।
इसके बारे में बात करते हुए एक बार उन्होंने कहा था कि मेरा मानना है कि जब मैं सिनेमा में लौटी तो मैं कहीं अधिक परिपक्व महिला थी। मैं उसी एक व्यक्ति के पास वापस नहीं लौटी थी इसलिए मैं विभिन्न प्रकार की भूमिकाएं करने के लिए तैयार थी। मगर झटका तब लगा जब मुझे अपने बालों को सफेद रंगना पड़ा। आज की माओं को हर समय ऐसा दिखने की ज़रूरत नहीं है कि वे 80 वर्ष की हैं। महिलाओं को एक मां के रूप में स्वीकार किया जाता है और स्क्रीन पर अभी भी उनकी एक निश्चित शैली होती है।
खैर, वह एक अलग दौर था। मैं करीब 30 साल की थी और मैंने नसीहत में शबाना आजमी की मां का किरदार निभाया था। जबकि कुछ साल पहले ही हमारी जोड़ी एक ही हीरो के साथ बनी थी। तनुजा फिल्म निर्माताओं द्वारा सिनेमा को लेकर अपनाए गए मनगढ़ंत तरीके पर हंसती थीं, लेकिन यह नहीं सोचती थीं कि उनमें उस दीवार से टकराने की ताकत है।
तनुजा कहती हैं कि मुझे वास्तव में इसकी परवाह नहीं थी कि मैं कैमरे के सामने कैसी दिख रही हूं, मुझे उन कपड़ों की भी परवाह नहीं थी जो उन्होंने मुझे दिए थे। मैं हमेशा सबके साथ मिल-जुलकर रहती हूं। मुझे याद नहीं है कि कभी किसी के साथ ऊंचे-नीचे शब्दों का आदान-प्रदान हुआ हो या किसी तरह की कोई गलतफहमी हुई हो। मैं भाषाई अध्ययन में थी इसलिए मैं फ्रेंच, जर्मन बोलती थी। इसीलिए विविध भाषाओं में फिल्में कीं। वह मेरी मजबूरी भी थी और शायद संतोष का सबब भी। इससे ज्यादा की चाहत मैंने की भी नहीं थी।
खैर तनुजा को कोई खेद नहीं है और न पछतावे का कोई विचार है। यह मालूम है कि उन्होंने अपना सर्वश्रेष्ठ किया। उनकी दोनों बेटियां जीवन में अपने तरीके से अपना काम कर रही हैं इसलिए उन पर ज्यादा जिम्मेदारियां भी नहीं हैं। शायद यही वजह है कि आज भी उनके चेहरे पर नूर है।
अब तनुजा 81 साल की हैं। आप अक्सर उन्हें दुर्गा पूजा मंडपों में देखते हैं। यही उनकी वार्षिक सार्वजनिक उपस्थिति है। वहां आज भी आप उन्हें अपनी बेटियों को स्कूली शिक्षा देते हुए पा सकते हैं, जब वे किसी बहस में पड़ जाती हैं। उनको इसकी परवाह नहीं है कि उनमें से एक सुपरस्टार है और दूसरी भी एक सार्वजनिक हस्ती है। वह उन्हें किसी भी अन्य पारंपरिक मां की तरह चुप करा देती हैं। वह अपने पोते-पोतियों से बहुत प्यार करती है। उनके साथ समय बिताना पसंद करती हैं।
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