भारत में चुनाव शुरू हो गये हैं। 18वीं लोकसभा के लिए 543 सदस्यों की तलाश में एक लंबी प्रक्रिया पूरी गंभीरता से शुरू हो गई है । पहले चरण के लिए 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के मतदाताओं ने शुक्रवार, 19 अप्रैल को सवेरे से ही मतदान केंद्र पहुंचकर अपने संवैधानिक अधिकार का इस्तेमाल शुरू कर दिया था। सात चरणों में फैला चुनाव 1 जून को समाप्त होगा। पहला दौर 102 निर्वाचन क्षेत्रों को शामिल करने वाला सबसे बड़ा अभ्यास रहा। पहले चरण में सबसे अधिक तमिलनाडु की 39 सीटों के लिए वोट पड़े। दक्षिण भारत के इस राज्य में जहां मतदान हुआ वहां किसी भी हिसाब से द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (डीएमके) को स्पष्ट तौर पर लाभ की स्थिति में माना जाता है। वास्तव में द्रमुक नई लोकसभा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस के बाद तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभर सकती है।
सबसे बड़े और फिर भी विविध लोकतंत्र में चुनाव कराना कोई आसान काम नहीं है। इसके लिए चुनाव आयोग और उसके अथक कर्मचारियों की सराहना की जानी चाहिए जिन्होंने छह सप्ताह के इस विशाल अभ्यास को ऐसे अंजाम देना शुरू किया है जैसे कि यह कोई नियमित प्रक्रिया हो। यहां यह भी रेखांकित करना जरूरी है कि भारत का सर्वोच्च न्यायालय मतपत्रों के खिलाफ (वोटिंग) आया और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों पर विश्वास जताया। इस तरह मतपत्र भरने और बूथ कैप्चरिंग के डरावने दिनों को इतिहास के कूड़ेदान में डाल दिया गया है और वह भी विनम्रता के साथ
बेशक, हर राष्ट्रीय चुनाव की एक कहानी होती है। वर्तमान संदर्भ में लगभग 970 मिलियन लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे और निश्चित रूप से इस बड़े समूह के 2 प्रतिशत लोग 18 और 19 आयु वर्ग के हैं जो पहली बार मतदाता बनने को लेकर उत्साहित हैं। कई मायनों में इस देश का भविष्य इसी वर्ग पर निर्भर है। कहा जा रहा है कि अधिक महिलाएं मैदान में हैं। यानी सियासी आकांक्षा की सूची में शामिल होने वाले शिक्षित लोगों की संख्या बढ़ रही है। दुर्भाग्य से कुछ प्रतिशत ठग, बदमाश और कठोर अपराधी भी हैं जो संसद के पवित्र सदनों में प्रवेश करने के लिए दांव लगा रहे हैं। इससे वह बड़ा वर्ग नाराज हो जाता है जिसका मूल दर्शन भारत का विकास है।
बहरहाल, 4 जून गिनती का दिन है जिसमें विजेता और हारने वाले अपनी-अपनी कहानियों के साथ एक बार फिर जनता के सामने होंगे। लेकिन हर चुनाव के बाद हमेशा एक सकारात्मक विश्वास होता है कि सत्ता में आने वाले लोग बुद्धिमानी से शासन करेंगे और शासक वर्ग तथा विपक्ष के लोग यह सुनिश्चित करेंगे कि सीटों की दौड़ में अंतिम एजेंडा छूट न जाए। यानी भारत को राष्ट्रों के समूह में प्रथम श्रेणी की शक्ति बनाना है। रैंकिंग देखकर नहीं बल्कि यह देखकर कि गरीबी-अमीरी की बढ़ती खाई को पाटने के लिए और क्या किया जा सकता है। इन हालात और संदर्भों में संयुक्त राज्य अमेरिका के महान राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी की बात याद आती है जो उन्होंने एक बार कही थी- यह मत पूछो कि तुम्हारा देश तुम्हारे लिए क्या कर सकता है... यह पूछो कि तुम अपने देश के लिए क्या कर सकते हो।
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