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सूरत के रामभक्त ने लिख दी सोने की स्याही से रामायण, और कई खूबियों से भरा है ये ग्रंथ

राजेशभाई का कहना है कि उनके दादा स्वर्गीय रामभाई गोकलभाई राम के भक्त थे, इसलिए उन्होंने वर्ष 1981 में इस रामायण की रचना की। हीरे और अन्य कीमती पत्थरों से जड़ी सोने की इस रामायण को साल में केवल एक बार रामनवमी के अवसर पर जनता के सामने लाया जाता है और फिर वापस बैंक में रखा जाता है।

19 किलो वजनी और 530 पन्ने की इस किताब में 222 तोला सोना, 10 किलो चांदी, चार हजार हीरा के साथ माणिक और पन्ना जैसे रत्नों का प्रयोग किया गया है। / Lopa darbar

जब आप अयोध्या जाते हैं तो श्रीराम जन्मभूमि मंदिर में रामलला के साथ ही एक अनोखी रामायण के भी दर्शन करते हैं। ये अनोखी रामायण पूरी तरह से सोने से बनाई गई है। इस रामायण को पूरे विधि विधान के साथ मंगलवार को रामलला की प्रतिमा के साथ गर्भगृह में स्थापित किया गया है। वहीं, आपको जानकर आश्चर्य होगा कि एक और रामायण है जो पूरी तरह से सोने की स्याही से लिखी गई है। गुजरात के सूरत में एक रामभक्त द्वारा लिखी गई इस रामायण में सोने के अलावा हीरे, चांदी और बेशकीमती पत्थरों का इस्तेमाल किया गया है।

इस रामायण को 1981 में सूरत के रामभक्त रामभाई गोकलभाई ने लिखी थी। 19 किलो वजनी और 530 पन्ने की इस किताब में 222 तोला सोना, 10 किलो चांदी, चार हजार हीरा के साथ माणिक और पन्ना जैसे रत्नों का प्रयोग किया गया है। किताब की जिल्द पांच-पांच किलो चांदी की बनाई गई है। भगवान श्रीराम का जीवन काल स्वर्ण काल के समान है। इसी को प्रदर्शित करने के लिए सूरत के राम भक्त ने सोने की स्याही से यह रामायण लिखी है।

इस स्वर्ण रामायण के कुल 530 पन्ने प्रभु राम के जीवन चरित्र का वर्णन करते हैं। इन पन्नों पर पिघले सोने के अक्षरों को अंकित किया गया है। इस पूरी किताब में प्रभु श्री राम का नाम 5 करोड़ बार लिखा गया है। इसकी खासियत यह है कि 1981 में पुष्य नक्षत्र में यह रामायण लिखी गई थी। हर महीने के पुष्य नक्षत्र में ही इसे लिखा जाता था। इस तरह कुल 9 महीने और 9 घंटे में यह पूरी रामायण तैयार की गई। इसे 40 लोगों ने मिलकर तैयार किया था।

हीरे का प्रयोग अक्षरों को शाइनिंग देने के लिए किया गया है। यह पहली रामायण है जिसमें पूर्ण रूप से हीरे, माणिक, पन्ना और नीलम का प्रयोग किया गया है। इस किताब की कीमत करोड़ों रुपये है। इसमें 20 तोला राम की मूर्ति के साथ 10 किलो चांदी, चार हजार हीरे, माणिक और पन्ना का इस्तेमाल किया गया है। रामायण के मुख्य पृष्ठ पर एक तोले चांदी की शिव प्रतिमा, आधा तोले की हनुमान और आधे तोले की गणेश प्रतिमा जड़ी गई है।

राजेशभाई का कहना है कि उनके दादा स्वर्गीय रामभाई गोकलभाई राम के भक्त थे, इसलिए उन्होंने वर्ष 1981 में इस रामायण की रचना की। हीरे और अन्य कीमती पत्थरों से जड़ी सोने की इस रामायण को साल में केवल एक बार रामनवमी के अवसर पर जनता के सामने लाया जाता है और फिर वापस बैंक में रखा जाता है।

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