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अरावली रेंज में आदिवासी महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने में जुटी यह संस्था

गुजरात में अरावली रेंज वनस्पतियों और वन्य जीवों से समृद्ध है। यहां मुख्य रूप से अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी निवास करती है। जो खेती और वन उत्पाद संग्रह के पारंपरिक तरीकों पर निर्भर है।

WHEELS Global Foundation (WGF) और IEEE-ISV (IEEE की इंटीग्रेटेड स्मार्ट विलेज इनिशिएटिव) NGO Magan Sangrahalaya Samiti के साथ मिलकर काम कर रहा है। / Courtesy Photo

भारत में ग्रामीण महिलाओं के लिए खेती संबंधी गतिविधियां रोजगार का मुख्य साधन हैं। 2011 की जनगणना में 36 मिलियन महिला किसान और 61 मिलियन महिला खेती मजदूर के तौर पर पहचान की गईं। हालांकि, खेती में भारी मशीनीकरण और केमिकल के व्यापक उपयोग ने इस क्षेत्र में महिलाओं के लिए उपलब्ध कार्य दिवसों की संख्या में भारी कमी कर दी है। नतीजतन, कई महिलाओं ने अपनी आजीविका खो दी हैं। ऐसे में वे अर्थव्यवस्था के हाशिये पर धकेल दी गई हैं। वैकल्पिक रोजगार साधन या कौशल के बिना उन्हें लंबे समय तक आर्थिक मंदी का सामना करना पड़ रहा है। खासकर नोटबंदी और कोविड-19 महामारी के बाद हालात और कठिन हुए हैं। ऐसे में ये महिलाएं गंभीर संकट में फंस गई हैं।

इसके जवाब में WHEELS Global Foundation (WGF) और IEEE-ISV (IEEE की इंटीग्रेटेड स्मार्ट विलेज इनिशिएटिव) NGO Magan Sangrahalaya Samiti के साथ मिलकर ग्रामीण भारतीय समाज के सबसे वंचित वर्गों, विशेष रूप से महिला-नेतृत्व वाले परिवारों को सशक्त बनाने के लिए एक संयुक्त पहल शुरू की है।

गुजरात में अरावली रेंज वनस्पतियों और वन्य जीवों से समृद्ध है। यहां मुख्य रूप से अनुसूचित जनजाति (एसटी) की आबादी निवास करती है। जो खेती और वन उत्पाद संग्रह के पारंपरिक तरीकों पर निर्भर है। यह परियोजना व्यक्तिगत प्रयासों को सामूहिक उद्यमों में बदलने और वन उत्पादों के संगठित मार्केटिंग में सहायता करने का लक्ष्य रखती है। इससे जनजातीय समुदाय की आय बढ़ेगी और बिचौलियों द्वारा शोषण कम होगा।

यह परियोजना अरावली जिले के भीलोडा ब्लॉक में सात ग्राम पंचायतों के जनजातीय समुदाय को फायदा पहुंचाएगी। इनमें शामलपुर, भवनपुर, वाघपुर, देवनी मोरी, ढंडासन, शामलाजी और ओडे शामिल है। परियोजना शुरू करने के लिए एक साल के भीतर आठ ग्रामीण उद्यम स्थापित किए जाएंगे। इससे सीधे 50 जनजातीय महिलाओं को और अप्रत्यक्ष रूप से क्षेत्र के 300 आदिवासियों को लाभ होगा। ये उद्यम स्थानीय खेत और वन-आधारित संसाधनों जैसे शहद, मोम, जैविक अदरक, हल्दी, नीम का तेल, अगरबत्ती, और हवन सामग्री जैसे उत्पादों का उपयोग करेंगे।

ग्रामीण महिलाओं को आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्त बनाने के लिए कई स्वयं सहायता समूह (SHG) बनाए जाएंगे। इनमें से प्रत्येक में 11 से 15 महिला सदस्य होंगी। प्रत्येक SHG का एक बैंक अकाउंट होगा। लोन और अन्य वित्तीय लेनदेन की सुविधा के लिए ग्रामीण बैंकों से खाते जुड़े होंगे। परियोजना के लिए चुनी गई 50 जनजातीय महिलाओं को उनकी रुचि, जुनून, प्रतिबद्धता, घरेलू समर्थन और प्रोफाइल के आधार पर उद्यम चलाने के गुरु सिखाए जाएंगे। इनमें सभी खरीद से लेकर निर्माण और मार्केटिंग तक में व्यापक प्रशिक्षण दिया जाएगा। उन्हें हिसाब-किताब रखने के लिए भी प्रशिक्षित किया जाएगा।

पर्याप्त क्षमता, संरचनाओं और प्रक्रियाओं के साथ तीन साल की अवधि में कार्यक्रम का लक्ष्य स्थानीय समुदायों के समर्थन से आत्मनिर्भर होना है। हालांकि प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण महिलाओं को सामाजिक और आर्थिक रूप से सशक्त बनाना है। लेकिन इस प्रयास के विविध सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभाव भी हैं। इनमें वनों का विस्तार, खेती और बागवानी उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार, पर्यावरणीय क्षरण को कम करने के लिए जैविक खेती का प्रचार, प्रदूषण मुक्त और खतरनाक केमिकल मुक्त उद्योगों का निर्माण शामिल है। यह पहल स्वदेशी संसाधनों को समृद्ध करती है। पर्यावरण की रक्षा करती है। कमजोर और आर्थिक रूप से कमजोर जनजातीय महिलाओं, कारीगरों और किसानों के कौशल को बढ़ाती है। इसके साथ ही एक टिकाऊ अर्थव्यवस्था का निर्माण करती है।

लेखिका WHEELS Global Foundation की मार्केटिंग और कम्युनिकेशंस मैनेजर हैं। (इस लेख में व्यक्त विचार और राय लेखिका के हैं और जरूरी नहीं कि ये न्यू इंडिया अब्रॉड की आधिकारिक नीति या स्थिति को दर्शाते हों)

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