अमेरिका में स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में भारतवंशी प्रोफेसर शिबानी सेठी की अगुआई में हुई एक स्टडी से कीटो (keto) डाइट को लेकर नई जानकारी सामने आई है। इस शोध से पता चला है कि कीटो डाइट का प्रयोग करने वाले मरीजों को शिजोफ्रेनिया और बाइपोलर डिजीज जैसी गंभीर मानसिक बीमारियों का मुकाबला करने में काफी मदद मिलती है।
कीटोजेनिक डाइट असल में कम कार्बोहाइड्रेट वाली भोजन व्यवस्था होती है जिसका उद्देश्य शरीर में एनर्जी पैदा करने वाले ग्लूकोज का उत्पादन कम करना होता है। जब ग्लूकोज का उत्पादन कम होता है, तब हमारा शरीर कीटोन्स को एनर्जी के लिए इस्तेमाल करता है। इसकी वजह से शरीर में जमा अतिरिक्ट फैट कम होने लगता है।
शिबानी सेठी की अगुआई में हुआ यह शोध बताता है कि दवाओं के कारण मेटाबोलिक गड़बड़ी का सामना कर रहे मरीजों में कीटो डाइट न सिर्फ मेटाबोलिक स्वास्थ्य को फिर से हासिल करने में मदद करती है बल्कि मानसिक परिस्थितियों में भी सुधार करती है।
शिबानी स्टैनफोर्ड मेडिसिन में मेटाबोलिक सायकायट्री क्लिनिक की संस्थापक निदेशक हैं। मनोचिकित्सा एवं व्यवहार विज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर शिबानी कहती हैं कि यह शोध इस मायने में बेहद अहम है कि यह बताता है कि अगर हम सामान्य से थोड़ी अलग देखभाल करें तो बीमारी की वजह से शरीर को हुए नुकसान की भरपाई की जा सकती है।
उन्होंने आगे कहा कि यह साबित हो चुका है कि कीटो डाइट मिर्गी के दौरे के इलाज में प्रभावी है क्योंकि यह ब्रेन में न्यूरोन्स की हलचल को कम कर देती है। इसी को देखते हुए हमने सोचा कि मनोचिकित्सा के क्षेत्र में मरीजों पर इसके प्रभाव का अध्ययन करना चाहिए। खुशी की बात है कि हमने एक नई चीज की खोज की है।
मेटोबोलिक सायकायट्री क्लिनिक की निदेशक होने के अलावा शिबानी सेठ एक फिजिशियन होने के नाते गंभीर मानसिक बीमारियों, मोटापे और मेटाबोलिक सिंड्रोम से जूझ रहे मरीजों का इलाज कर चुकी हैं।
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