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अमेरिकी समाज में मुख्यधारा का त्योहार बना दिवाली

दिवाली ने अमेरिकी संस्कृति पर अपनी छाप छोड़ी है और ये छाप आने वाले वक्त में और गहरी होने वाली है।

न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर पर भी दिवाली का उत्सव धूमधाम से मनाया जाता है। / Instagram/Diwali at Times Square

हाल ही में मैं लोकल कॉस्टको सुपरमार्केट गया था। वहां ये देखकर हैरान रह गया कि दिवाली थीम वाली बहुत सी चीजें वहां मौजूद थीं। मिठाई के बड़े सजावटी डिब्बे ही नहीं मिट्टी के दीये और रंगीन प्लेटें भी काफी तादाद में मौजूद थीं।

आमतौर पर उम्मीद की जाती है कि इस तरह की वस्तुएं भारतीय स्टोरों पर ही उपलब्ध होती होंगी। लेकिन कॉस्टको जैसे बड़े रिटेल स्टोर जहां दिन में हजारों ग्राहकों आते हैं, वहां पर दिवाली थीम वाले सामान को शोकेस करके सजा हुआ देखना वाकई स्वागत योग्य कदम ही कहा जाएगा।

कॉस्टको का मेरा अनुभव कुछ अलग नहीं था। पूरे अमेरिका में इस तरह का ट्रेंड अब काफी आम हो गया है। अमेरिकन गर्ल, बार्बी डॉल से लेकर टारगेट और टीजे मैक्स तक, गुड मॉर्निंग अमेरिका से रोशन टाइम्स स्क्वायर तक, दिवाली अब मुख्यधारा के त्योहार के रूप में खुद को मजबूती से स्थापित कर रहा है।

आज, देश भर के शहरों और कस्बों में दिवाली की सजावट, उत्पाद और उत्सव मिलना आम बात हो गई है। और गैर-भारतीयों या गैर-धार्मिक धार्मिक परंपराओं के लोगों को समान उत्साह के साथ इन समारोहों में पूरी तरह से भाग लेते देखना भी इसी तरह आम है।

अन्य हिंदू त्योहारों की तरह दीवाली बहुत से अमेरिकियों को लुभाता है। यह त्योहार छुट्टी का आनंद देने के अलावा अज्ञानता पर ज्ञान की जीत, आध्यात्मिक अंधेरे पर आंतरिक प्रकाश की विजय, बुराई पर अच्छाई का संदेश और लोगों के एकदूसरे से जोड़ने का सार्वभौमिक संदेश देता है। जीवंत रंग, सकारात्मक ऊर्जा, स्वादिष्ट भोजन और शानदार उत्सव इस त्योहार के जश्न में चार चांद लगा देते हैं। 

लेकिन हमेशा से ऐसा नहीं था। दरअसल पिछले कुछ वर्षों में ही दिवाली को व्यापक मान्यता मिली है। पहले भी दिवाली मनाई जाती थी। सीमित रूप में इसका जश्न मनाते लोग नजर आते थे, लेकिन मुख्यधारा में उतनी प्रमुखता नहीं मिली थी, जितनी कि आज मिली हुई है।

अमेरिका में दिवाली के प्रति बढ़े आकर्षण को भारतीय-अमेरिकी समुदाय की तरक्की के साथ देखा जाना चाहिए। समुदाय के प्रभाव में जैसे-जैसे विस्तार हुआ है, जैसे-जैसे सार्वजनिक जीवन के सभी पहलुओं में समुदाय ने खुद को मुखर किया है, वैसे-वैसे दिवाली के प्रति लोगों की रुचि भी बढ़ी है।

कांग्रेस में प्रस्ताव के जरिए 2007 में प्रतिनिधि सभा और सीनेट में दीवाली को आधिकारिक मान्यता दिया जाना एक अनोखी घटना थी। हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन और अन्य सामुदायिक समूहों के प्रयासों से ही ऐसा संभव हुआ था। लेकिन केंद्र, राज्य और स्थानीय सरकारों में इस तरह के प्रस्ताव और घोषणाएं आज और व्यापक रूप ले चुकी हैं। व्हाइट हाउस, कैपिटल हिल और कई स्थानीय एवं राज्य स्तरीय अदालतों में समारोहों के आयोजन के अलावा देश के कई जिलों में स्कूली छुट्टी भी होती है।

ये प्रस्ताव, समारोह और छुट्टियां न सिर्फ आम लोगों को दिवाली और व्यापक भारतीय व हिंदू अमेरिकी समुदायों से परिचित कराती हैं बल्कि डायस्पोरा को सभी स्तरों और न्यायालयों पर सरकारी अधिकारियों से जुड़ने के लिए प्रोत्साहित भी करती हैं।

इन सबके अलावा अमेरिका में दिवाली मार्केटिंग का एक अच्छा जरिया भी बन चुका है। पॉप कल्चर, खान-पान, बच्चों की किताबें, खिलौने आदि में इसकी छाप देखने को मिलती है। कई युवा भारतीय और हिंदू अमेरिकी माता-पिता खासकर दूसरी पीढ़ी के लोग इसके प्रति काफी दिलचस्पी दिखाते हैं। ये लोग इस त्योहार के जरिए अपनी मूल रीति-रिवाजों को अमेरिकी तरीके से अपने बच्चों में पोषित कर रहे हैं।

इस साल दिवाली हैलोवीन कुछ दिनों के अंतराल पर आए हैं। इसकी वजह से और भी ज्यादा रचनात्मक और मजेदार तरीके सामने आए हैं। उदाहरण के लिए भारतीय-अमेरिकी सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर और कंपनियां अनूठे विचारों के साथ आए सामने हैं। मिठाई बांटने से लेकर बच्चों की फ्यूजन ड्रेस तक में दिवाली और हैलोवीन का मेल नजर आ रहा है।

भारतीय प्रवासी किस तरह अपने सबसे पसंदीदा त्योहार का जश्न मनाते हैं, ये अलग बात है लेकिन एक बात तय है कि दिवाली ने अमेरिकी संस्कृति पर अपनी छाप छोड़ी है और ये छाप आने वाले वक्त में और गहरी होने वाली है। समय के साथ इस त्योहार का जश्न साल-दर-साल अधिक जीवंत, रंगीन और मजेदार हो रहा है। अब इसने अमेरिकी समाज में अपनी सही जगह बना ली है।

(लेखक समीर कालरा हिंदू अमेरिकन फाउंडेशन के मैनेजिंग डायरेक्टर (पॉलिसी एंड प्रोग्राम्स) हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी विचार हैं।)
 

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