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चलो इंडियाः वॉशिंगटन डीसी स्थित भारतीय दूतावास में बिखरे देसी संस्कृति के रंग

भारतीय दूतावास में मिशन उप प्रमुख श्रीप्रिया रंगनाथन ने कहा कि भारतीय साहित्य, कविताओं और संगीत का बहुत बड़ा हिस्सा तमिल, मलयालम और संस्कृत से निकला है। अपनी समृद्ध संगीत परंपरा को पश्चिमी संगीत से जोड़कर हमने अपने ज्ञान और परंपराओं को दुनिया भर में पहुंचाया है।

वॉशिंगटन डीसी में चलो इंडिया कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कृष्णमूर्ति कणिकेश्वरन और श्रीप्रिया रंगनाथन। / साभार सोशल मीडिया

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में कश्मीर से चलो इंडिया ग्लोबल डायस्पोरा अभियान की शुरुआत की। वॉशिंगटन डीसी में भारतीय दूतावास की तरफ से इसके स्क्रीनिंग समारोह का आयोजन किया गया। इस दौरान जाने माने वक्ताओं ने पीएम मोदी की इस पहल के महत्व पर जोर दिया। 

पीएम मोदी के इस अभियान की लॉन्चिंग का दुनिया भर में विभिन्न भारतीय दूतावासों द्वारा राजनयिकों और प्रवासी समुदाय के सदस्यों की उपस्थिति में प्रसारण किया गया था। वॉशिंगटन डीसी में आयोजित कार्यक्रम में भारतीय दूतावास में मिशन उप प्रमुख श्रीप्रिया रंगनाथन ने भारत की समृद्ध संस्कृति पर प्रकाश डालते हुए भारतीय भाषाओं और भारतीय साहित्य पर चर्चा की। 

संयुक्त राज्य अमेरिका में भारत के राजनयिक मिशन की प्रतिनिधि रंगनाथन ने कहा कि हम जानते हैं कि तमिल, मलयालम और संस्कृत प्राचीन भारतीय भाषाएं हैं। भारतीय साहित्य, कविताएं और संगीत का बहुत बड़ा हिस्सा इन इन भाषाओं में है। तमिल भाषा ने हमें क्लासिक महाकाव्य और कविताएं प्रदान की हैं। उन्होंने आगे कहा कि अपनी समृद्ध संगीत परंपरा को पश्चिमी संगीत परंपराओं से जोड़कर हमने अपने ज्ञान और परंपराओं को दुनिया भर में पहुंचाया है।

ओहियो के सिनसिनाटी में रहने वाले भारतीय मूल के अमेरिकी संगीतकार, विद्वान, संगीतकार, लेखक एवं संगीत शिक्षक कृष्णमूर्ति कणिकेश्वरन ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। उन्हें अक्सर चेन्नई से "जादुई संगीतकार" के रूप में संबोधित किया जाता है। कार्यक्रम में उनकी डॉक्यूमेंट्री 'शांति- ए जर्नी ऑफ पीस' की स्क्रीनिंग भी की गई। 
इस वृत्तचित्र में भारतीय और पश्चिमी वाद्ययंत्रों, नर्तकों के अलावा मल्टीमीडिया का भी बेहद खूबसूरती से प्रयोग किया गया है। शांति ने भारतीय गायकों, मार्टिन लूथर किंग कोरल और युनाइडेट नेशंस एसोसिएशन इंटरनेशनल कोइर का भी इस्तेमाल किया है। 
  
डॉक्यूमेंट्री पर टिप्पणी करते हुए रंगनाथन ने कहा कि डॉ. कणिकेश्वरन जो काम कर रहे हैं, वह अमूल्य है। उन्होंने फ्यूजन के जरिए हमारी संगीत परंपरा की समृद्धि को पश्चिमी संगीत परंपराओं की समृद्धि से जोड़कर अपनी ज्ञान एवं परंपराओं को दुनिया भर के दर्शकों तक पहुंचाया है।

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