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दक्षिण भारतीय अमेरिकी गोलू के साथ मनाते हैं नवरात्रि, इस बार भी धूम

बे एरिया में समर्पित माता-पिता अपने बच्चों के व्यस्त कार्यक्रम के बीच से घर पर नवरात्रि उत्सव आयोजित करने के लिए समय निकालते हैं। वर्ष के गोलू प्रदर्शन के लिए थीम तैयार करने के लिए महीनों से योजना चलती है।

जया रूपनगुंटा शाम को गोलू डिस्प्ले में बैठी हुई नवरात्रि की देवी के लिए दीप जलाते हुए। / Ritu Marwah

नवरात्रि के दस दिनों में देवी जीवंत हो जाती हैं। दक्षिण भारतीय अमेरिकी परिवार 3, 5 या 9 स्तरों वाले अथवा सीढ़ियों के आसन स्थापित करते हैं और उन पर गुड़िया या मूर्तियां रखते हैं। इन्हे सामूहिक रूप से 'गोलू' कहा जाता है।

गीता 10 साल की उम्र में अपने माता-पिता के साथ बे एरिया चली गई थ। तब से वहीं रह रही हैं और अपने दो लड़कों का पालन-पोषण कर रही हैं। वे कहती हैं कि अमावस्या के पहले दिन गोलू की स्थापना की जाती है। 

बकौल गीता- मुझे याद है कि नवरात्रि के दिनों में, भारत में, यह एक खुला घर था। पड़ोसी हर शाम दीपक जलाते थे और प्रार्थना करते थे। बच्चे गुड़ियों को देखने और मिठाई लेने के लिए घर-घर जाया करते थे। कभी-कभी उस घर की महिला बदले में गीत या भजन की फरमाइश कर देती थी। देवी घर में प्रवेश करती थीं और 10 दिनों तक उनका वहां वास रहता था। यह उनका निजी रिश्ता है। ईश्वरीय उपस्थिति वास्तविक है। मुझे लगता है कि हम इसे अपने बच्चों के साथ मेलजोल बढ़ाने और अपनी संस्कृति को साझा करने के एक अवसर के रूप में देखते हैं।

बे एरिया में समर्पित माता-पिता अपने बच्चों के व्यस्त कार्यक्रम के बीच से घर पर नवरात्रि उत्सव आयोजित करने के लिए समय निकालते हैं। वर्ष के गोलू प्रदर्शन के लिए थीम तैयार करने के लिए महीनों से योजना चलती है।

इस वर्ष जया रूपनगुंटा के परिवार ने अपने गोलू की थीम के रूप में 'तिरुपति मंदिर' को चुना है। रूपनगुंटा कहती हैं कि मैं अपने बच्चों को बताना चाहती हूं कि तिरूपति का मंदिर इतना महत्वपूर्ण क्यों है और यह जिस स्थान पर है उसके पीछे की कहानी क्या है। 

बच्चे रंगीन गोलू या मूर्तियों और हरेक गुड़िया के पीछे की कहानी से आकर्षित होते हैं। जीवन में बहुत पहले ही बच्चों को संस्कृति से परिचित कराया जाता है और परंपराएं उन तक पहुंचाई जाती हैं। रूपनगुंटा के परिवार के दादा ने बताया था कि ऑडियो विजुअल सहायता लोगों को जानकारी बनाए रखने में मदद करती है।

राम के पास दोस्तों और परिवारों द्वारा गोलू से मिलने के लिए आमंत्रित किए जाने की सुखद यादें हैं। वे बताते हैं कि हमें सुंदल (भुने हुए चने) मिलते थे। चने का नाश्ता उनके बचपन की प्रमुख स्मृति थी। प्रत्येक घर में सरसों के बीज, करी पत्ते, हींग, लाल मिर्च और अदरक के साथ पिसा हुआ नारियल, उबली हुई दाल की सब्जी बनाने की अपनी विधि होती थी। जब देवी भ्रमण करती हैं तो प्याज का उपयोग नहीं किया जाता। 

कभी-कभी थीम एक रंग या एक ही भगवान पर आधारित होती है। उदाहरण के लिए शिव। इंडिश क्रिएशंस के मालिक का कहना है कि हम गोलू सजावट बेच रहे हैं जिसे मालिक खुद बनाता है और पूरे अमेरिका में भेजता है। 

दोस्त और परिवार एक-दूसरे के घर खाना खाने जाते हैं। बच्चों को कर्नाटक संगीत या भजन गाते हुए सुनते हैं और गोलू प्रदर्शन की प्रशंसा करते हैं। प्रत्येक परिवार बारी-बारी से गोलू संध्या की मेजबानी करता है और यह सुनिश्चित करता है कि सभी दोस्तों को सांस्कृतिक पक्ष दिखाने का मौका मिले।

गुड़िया और समुदाय के प्रदर्शन पर मेफील्ड की सीएमओ कामिनी रमानी लिखती हैं- बॉम्बे में एक दक्षिण भारतीय परिवार में पले-बढ़े होने के कारण नवरात्रि का मतलब गोलू को रखना, गुड़ियों और मूर्तियों के उत्सव के प्रदर्शन को सीढ़ियों में व्यवस्थित करना था। गोलू रखने के सांस्कृतिक कारण कहानी कहने, समुदाय, रचनात्मकता, शिक्षा और परंपरा के उत्सव के साथ गहराई से जुड़े हुए हैं।

रूपनगुंटा परिवार ने हमेशा अपने गोलू के माध्यम से और अपनी यात्रा के जरिये साझा सीख की कहानियां बताई हैं। वे बताती हैं कि जिस वर्ष हम ग्रीस गए उस वर्ष परिवार ने घर के एक कोने में प्राचीन सभ्यताओं की झांकी लगाई। एक अन्य वर्ष प्राचीन एशिया के महलों का निर्माण हुआ।

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