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बांग्लादेशी हिंदुओं पर अत्याचार और अमेरिकी "वोक" कल्चर की चुप्पी

हाल ही में वोक एक्टिविस्टों ने अमेरिका में फिलिस्तीन समर्थक आंदोलन को पूरे दिल से समर्थन दिया था। हालांकि यही वोक कल्चर मुस्लिम समुदाय के कुछ तत्वों द्वारा बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचारों के मामले में चुप्पी साधे बैठा है।

बांग्लादेश में हाल ही में हिंदुओं पर अत्याचार की अनगिनत वारदातें हुई हैं। / REUTERS/Mohammad Ponir Hossain/File Photo

देशज शब्द "वोक" अब अमेरिका में सामाजिक अन्याय खासकर जाति, लिंग और पहचान से संबंधित भेदभाव के प्रति जागरूकता का पर्याय बन चुका है। सिस्टम के शिकार लोगों की आवाज से उपजे वोक मूवमेंट ने ब्लैक लाइव्स मैटर, एलजीबीटीक्यू+ अधिकारों और नारीवाद जैसे महत्वपूर्ण आंदोलनों को आकार दिया है। इसकी वजह से अमेरिका के सिविक लैंडस्केप में काफी सुधार हुआ है। 

हाल ही में वोक मूवमेंट का एक रूप शहरी युवाओं के अमेरिका में फिलिस्तीन समर्थक आंदोलन को पूरे दिल से समर्थन में देखने को मिला था। हालांकि यही वोक कल्चर मुस्लिम समुदाय के कुछ तत्वों द्वारा बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचारों पर चुप्पी साध लेता है। इस चुप्पी के पीछे के कारण जटिल हैं, जिनमें भू-राजनीतिक संबंधी विषयों पर मुख्यधारा के मीडिया की चुप्पी, वोक लीडर्स की चयनात्मक सक्रियता और शर्मिंदगी की संस्कृति को गिना जा सकता है।

बांग्लादेशी हिंदुओं की दुर्दशा की अमेरिकन वोक कल्चर द्वारा अनदेखी का एक प्रमुख कारण इसकी मीडिया कवरेज की कमी है। पश्चिमी मीडिया उन मुद्दों पर फोकस करता है जो उसके रणनीतिक हितों के साथ मेल खाते हैं। ऐसे में अत्याचार का शिकार एक बांग्लादेशी अल्पसंख्यक समूह जिसके पास अमेरिका में जोरदार और राजनीतिक रूप से मजबूत समर्थक नहीं हैं, उसे मीडिया में पर्याप्त ध्यान नहीं मिल पाता है। 

मुख्यधारा की मीडिया तो उन्हें नजरअंदाज करती ही है, इसके अलावा बांग्लादेशी हिंदुओं को यूट्यूब, इंस्टाग्राम और टिक-टॉक के सॉफिस्टिकेटेड कंटेंट क्रिएटर्स का सपोर्ट भी नहीं मिल पाता, जिनकी कुछ सेकंड्स की रील आधुनिक वोक युवाओं के लिए दुनियावी घटनाओं से रूबरू होने का प्रमुख साधन हैं। मीडिया के आंख मूंदने का एक और संभावित और कहीं ज्यादा भयावह कारण ताकतवर हितों के चलते प्रेस की धार को कुंद करना भी हो सकता है। 

बांग्लादेश की अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना ने स्पष्ट रूप से अमेरिका की सरकारी एजेंसियों पर सत्ता परिवर्तन करवाने और एक ऐसी सरकार लाने का आरोप लगाया था जो सेंट मार्टिन द्वीप पर उसे हवाई अड्डा बनाने की अनुमति दे सके। शेख हसीना ने कहा था, "मैं सत्ता में रह सकती थी अगर मैंने सेंट मार्टिन द्वीप की संप्रभुता को सरेंडर कर दिया होता और अमेरिका को बंगाल की खाड़ी पर हावी होने की अनुमति दे दी होती। 

बांग्लादेश की अवामी लीग की वित्त व योजना मामलों की उप-समिति के सदस्य स्क्वाड्रन लीडर (सेवानिवृत्त) सदरुल अहमद खान ने हाल ही में संडे गार्डियन को दिए एक इंटरव्यू में आरोप लगाया था कि म्यांमार के कुकी चिन प्रांत, बांग्लादेश के चट्टोग्राम पहाड़ी इलाके और भारत के मिजोरम को मिलाकर भविष्य में एक ईसाई देश तैयार हो सकता है। अमेरिका के निहित दल इसके लिए प्रयास कर रहे हैं। 

प्रेस कवरेज की कमी के अलावा वोक मूवमेंट के भीतर अपनी पसंद के मामलों पर ही सक्रियता दिखने की प्रवृत्ति भी बांग्लादेशी हिंदुओं की दुर्दशा से मुंह फेरने की एक बड़ी वजह हो सकती है। यह प्रवृत्ति अक्सर पहचान की राजनीति में निहित होती है। इसमें अमेरिकी समाज को प्रभावित करने वाले मामलों पर अधिक ध्यान दिया जाता है। अमेरिका में वोक मूवमेंट का फोकस नस्ल, लिंग और यौन संबंधी मुद्दों पर अधिक रहा है। इसकी वजह से ऐसे अंतरराष्ट्रीय मुद्दे जो इन पहचानों से सीधे संबंध नहीं रखते, उन्हें अक्सर अनदेखा कर दिया जाता है। इसी का नतीजा है कि बांग्लादेशी हिंदुओं के उत्पीड़न जैसे मुद्दे इस वोक कल्चर में उतनी मजबूती से प्रतिध्वनित नहीं होते, जितना कि फिलिस्तीन संघर्ष। फिलिस्तीन मामले को लेकर सोशल मीडिया पर खासतौर से नरेटिव तैयार किया गया। यही वजह रही कि वोक मूवमेंट ने इसे प्रमुख मुद्दे की तरह उठाया। 

धार्मिक उत्पीड़न खासकर ऐसा अत्याचार जिसमें मुसलमानों को अपराधियों के रूप में दर्शाया जाए, मुद्दे को और भी जटिल बना देता है। अमेरिकी वोक कल्चर मुस्लिम समुदायों की रक्षा के प्रति मुखर रहा है, खासकर इस्लामोफोबिया और आतंक के खिलाफ वैश्विक युद्ध के संदर्भ में। दुनिया के कई हिस्सों में मुसलमानों से व्यापक भेदभाव और हिंसा को देखते हुए यह समर्थन महत्वपूर्ण है। हालांकि यह पैरोकारी कभी-कभी उन मामलों को उठाने से भी परहेज पैदा कर देती है जिनमें मुसलमानों को अन्य धार्मिक समूहों के खिलाफ हिंसा के दोषी की तरह देखा जाता है। इस्लामोफोबिक होने का ठप्पा या फिर मुसलमानों के प्रति नकारात्मक धारणा रखने की छवि बनने का डर भी बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचारों को लेकर चुप्पी की वजह हो सकती है। 

इन सबके अलावा हिंदू समाज में शर्मिंदगी की संस्कृति भी निजी अत्याचारों खासकर यौन उत्पीड़न के प्रति चुप्पी साधने को मजबूर कर देती है। यौन हिंसा पीड़ित और उनके परिवारों को समाज में बदनामी और बहिष्कार का डर सताता है जिसकी वजह से वे पारिवारिक सम्मान और सामाजिक प्रतिष्ठा बनाए रखने के लिए चुप्पी की चादर ओढ़ने को प्राथमिकता देते हैं। चुप्पी की यह पीढ़ीगत परंपरा इस डर से प्रेरित है कि ऐसी घटनाओं के बारे में सार्वजनिक रूप से बोलने से परिवार की इज्जत मिट्टी में मिल जाएगी। इसी वजह से दुर्व्यवहार की कहानियों को साझा करने की हिचक अत्याचारों को और व्यापक बना देती हैं। बांग्लादेशी हिंदुओं पर यौन हमले और लंबे समय तक कश्मीरी हिंदुओं पर अत्याचार इसके उदाहरण हैं। यही कारण है कि पश्चिमी मीडिया भी इन्हें दमदारी से नहीं उठा पाता। 

बांग्लादेश में हिंदुओं पर अत्याचारों के खिलाफ अमेरिकी वोक कल्चर की चुप्पी वैश्विक मानवाधिकारों की सीमाओं और चुनौतियों को उजागर करती है। वोक मूवमेंट से अमेरिका में नस्ल, लिंग और पहचान संबंधी मुद्दों के समाधान में भले ही महत्वपूर्ण मदद मिली है, लेकिन अंतरराष्ट्रीय मामलों में उसकी चयनात्मक सक्रियता और विशेष नरेटिव बनने का डर फर्क पैदा कर देता है। मीडिया कवरेज की कमी, वोक मूवमेंट के लीडर्स का चयनात्मक पूर्वाग्रह और हिंदुओं की पीड़ित होने के बावजूद उसके खिलाफ आवाज न उठाने की संस्कृति, ये सभी इसे बढ़ावा देते हैं। 

इन समस्याओं के समाधान के लिए एक व्यापक और समावेशी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। एक ऐसा दृष्टिकोण जो मानवाधिकारों के लिए खुलकर आवाज उठा सके, जो दुनिया भर में संघर्षों की परस्पर संबद्धता को पहचान सके और विभिन्न संदर्भों में धार्मिक व जातीय हिंसा की जटिलताओं को स्वीकार कर सके। ऐसा करके अमेरिकी वोक एक्टिविस्ट एक अधिक व्यापक और प्रभावी वैश्विक मानवाधिकार आंदोलन में योगदान कर सकते हैं।


 

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