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अमेरिका का सावन

सावन का पहला सोमवार था। मंदिर में सोमवार की वजह से भीड़ थी। एकदम अंतिम पंक्ति में खड़े होने की जगह मिली। भोले बाबा फूल- बेलपत्र, चंदन-भभूत से सजे-धजे आज कुछ अलग लग रहे थे।

तपस्या चौबे

मेरा नाम तपस्या चौबे है। मैं यहां फ्लोरिडा स्टेट में रहती हूं। अमेरिका के कई स्टेट में रहने का अवसर मिला लेकिन इस स्टेट में आ कर लगा जैसे भारत के किसी राज्य में आ गए। समय के साथ आप अपनी मिट्टी से जितना दूर होते हैं, जड़े उतनी ही गहरी धंसती जाती हैं। सपनों की दुनिया में रहने वालों की मेहनतकश जिंदगी के साथ यहां कई क़िस्से-कहानियां चलती रहती हैं। एक संस्मरण यहां लिख रही हूं, उम्मीद है आप सबका प्यार मिलेगा। 

वह, फ्रीदा कालो के देश से थी। बालों में गुथे रंग-बिरंगे रिबन देख कर एक बार को लगा जैसे वह सामने पड़ी कलर पैलेट के रंगों को ख़ुद पर फेर रही हो… हमने एक दूसरे को देखा अभिवादन स्वरूप मुस्कुराए। आगे बढ़ने से पहले उसकी नज़र मेरी पावों पर थी और मेरी उसकी पेंटिंग पर। हम कुछ कहते कि इससे पहले आरती की धुन मेरी कानों में पड़ी और मैं तेज कदमों से मंदिर की सीढ़ियां चढ़ने लगी…।

सावन का पहला सोमवार था। मंदिर में सोमवार की वजह से भीड़ थी। एकदम अंतिम पंक्ति में खड़े होने की जगह मिली। भोले बाबा फूल- बेलपत्र, चंदन-भभूत से सजे-धजे आज कुछ अलग लग रहे थे। मेरा मन हो आया, “ओह! काश आज मां यहां होतीं” निश्चित ही भाव विभीर हो जातीं। 
 

मंदिर की परिक्रमा करते हुए हमने देखा, बादल घिर आए थें। यहां रोज़ दिन के तीसरे पहर से बारिश शुरू होती है। काली घटा बरस कर साफ़ दमकती हुई वापस छा जाती है। मानो जैसे नाना प्रकार के उबटन लगा कर खूब नहाई हो। खिली-खिली, चमकती-दमकती सारे आमसान में छा गई हो। मन इन घटाओं को निहारते नहीं थकता…।

हम जल्दी सीढ़ियों से नीचे उतर रहे थे। आशंका थी कि बरखा रानी पार्किंग तक पहुंचते-पहुंचते बरस ना जाए कि किसी ने हेलो कहा। वह मंदिर की अंतिम सीढ़ी पर बैठी मुस्कुरा रही थी। हेलो, कह कर मैं आगे बढ़ने ही वाली थी कि उसने फिर टोका- आपके पैर, उसपर लगे रंग और आपके पायल की संगीत ने मुझे यहां रोक कर रखा है। मैं झेंप गई। एक लड़की इतने प्रेम से दूसरी लड़की की तारीफ़ करे, झेंप तो होगी ही। अगर किसी लड़के ने इसी लहज़े में यह बात की होती तो मेरे पैरों का रंग मेरे मुख पर चढ़ आता। 
मैंने मुस्कुरा कर धन्यवाद कहा। मंदिर की बनाई उसकी पेंटिंग को देखने की इच्छा ज़ाहिर की। इसी बीच मालूम हुआ कि वह आर्ट स्टूडेंट है। किसी प्रॉजेक्ट के तहत इस मंदिर को चुना है उसने। साथ ही वह फ्रीदा को अपना आदर्श मानती है और उन्हीं के देश, मैक्सिको से है। पेंटिंग उसने सच में सुंदर बनाई थी। 

भारतीय मंदिर की पेंटिंग में बड़ा डिटेलिंग होता है। उसने मंदिर के किनारे पर बने एक-एक फूल, मोर, गाय आदि चीज़ों को बड़े ध्यान और संयम से उकेरा था। ख़ैर इसी बीच बूंदा-बांदी शुरू हो गई। साथी पहले ही बच्चों को लेकर पार्किंग की तरफ़ जा चुके थे। अंधेरा भी घिर आया था। मैंने चलने की अनुमति मांगी कि उसने फिर टोका- काश बारिश ना होती, रात ना घिरती, कुछ वक्त आप रुक पाती तो आपके पैरों को उकेरती इन सीढ़ियों से उतरते। 

मैं हंस पड़ी। कोई पुरुष होता तो वह सवाल कर बैठता मेरी हंसी पर। लेकिन वह नारी थी। स्त्री मन को समझना जानती थी शायद इसलिए उसने कुछ पूछा नहीं। मुस्कुरा कर कहा, ऑर्टिस्ट और उसके ख्वाब। मैंने कहा- आप एक काम करें, तस्वीर ले लें। वापस जाकर मन में फिर भी इच्छा हुई कि इन पैरों की तस्वीर बनानी है तो देख कर बना सकती हैं। वैसे इनमें कुछ अलग या ख़ास नहीं। भारत में महिलाओं का इस तरह पैरों पर रंग लगाना, गहने-ज़ेवर पहना आम है। ख़ास कर त्योहारों पर तो और। यह एक आम भारतीय महिला के पैर हैं और आपकी सुंदर कलात्मक दृष्टि। वह खुश हो गई। उसने एक-दो तस्वीरें ली और विदा के साथ मैं चल पड़ी, ख़ाली पैर अपनी यात्रा पर…... 

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