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पाकिस्तान : अब जनता के लिए खुला है सारागढ़ी मेमोरियल पार्क

डॉ. गुरिंदरपाल सिंह जोसन का कहना है कि मिशन पूरा हो गया क्योंकि सारागढ़ी पार्क अब पर्यटकों के लिए खुला है।

इंग्लैंड के वॉल्वरहैम्प्टन में सारागढ़ी की लड़ाई की 127वीं वर्षगांठ के जश्न में ब्रिटिश और सिख सेना के अधिकारी। / Prabhjot Singh

सारागढ़ी फाउंडेशन के अध्यक्ष डॉ गुरिंदरपाल सिंह जोसन कहते हैं कि हमारा मिशन पूरा हो गया है। अब पर्यटक सारागढ़ी के युद्धक्षेत्र में बनाए गए पार्क में घूम सकते हैं। यह जनता के लिए खुला है। बकौल डॉ. जोसन 8 जुलाई, 2019 को फाउंडेशन ने सारागढ़ी में 'निशान साहिब' फहराया। ब्रिटिश, अमेरिकी, कनाडाई और भारतीय सेना की मदद और पाकिस्तान सरकार के समर्थन से हम यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त और प्रकाशित आठ सबसे ऐतिहासिक लड़ाइयों में से एक की भावना को पुनः प्राप्त करने में सक्षम हुए हैं।  
 
खैबर पख्तून क्षेत्र के हंगू में एक गुरुद्वारा भी बनाया गया है, जहां 12 सितंबर, 1897 को लड़ाई लड़ी गई थी। डॉ. जोसन प्रेम नगर के बारे में बात करते हैं जो सारागढ़ी की तलहटी में एक घिरा हुआ इलाका है। वहां हिंदू, सिख और ईसाई परिवार रहते हैं। संयोग से भारतीयों और अमेरिकियों को पख्तून क्षेत्र की इस बेल्ट में जाने की मनाही है। इसे तालिबान की बेल्ट माना जाता है। डॉ. जोसन का कहना है कि वह कई बार हंगू घाटी गए हैं, जहां सारागढ़ी की लड़ाई लड़ी गई थी। स्थानीय लोगों की मदद से मैं 'पिरामिड' सहित कुछ ऐतिहासिक स्थलों को पुनर्जीवित करने में कामयाब रहा, जहां वीर सिख सैनिकों का अंतिम संस्कार किया गया था। 1901 में अंग्रेजों द्वारा कार्यक्रम स्थल पर एक 'मीनार' (टावर) बनाई गई थी, जिस पर सभी 21 सैनिकों के नाम अंकित थे। मगर रखरखाव के अभाव में वह मीनार खंडहर में तब्दील हो गई थी। 

हम युद्ध के नायकों के नाम के साथ मीनार को फिर से बनाने में सफल रहे हैं। हमारे प्रयासों और कार्यों के कारण ऐतिहासिक युद्धक्षेत्र अब बाड़ से घिरा और संरक्षित है। हंगू में गुरुद्वारे की शुरुआत के साथ ऐतिहासिक युद्धक्षेत्र को फिर से देखने का हमारा पहला मिशन पूरा हो गया है।

डॉ. गुरिंदरपाल सिंह जोसन वॉल्वरहैम्प्टन मेमोरियल में हवलदार ईशर सिंह की प्रतिमा की सफाई करते हुए। / Prabhjot Singh

डॉ. जोसन ने 1987 में अमृतसर में सारागढ़ी फाउंडेशन की स्थापना की। अब दुनिया की 56 दीर्घाओं में सभी 21 सिख सैनिकों के चित्र हैं। सारागढ़ी के महायुद्ध की 127वीं वर्षगांठ 12 सितंबर (गुरुवार) को है। 12 सितंबर, 1897 को उत्तर पश्चिम सीमांत प्रांत के तिराह क्षेत्र में, जो उस समय ब्रिटिश भारत का हिस्सा था, लड़ाई हुई। 21 सिख सैनिकों ने हजारों पठानों के खिलाफ अपना आखिरी मोर्चा बनाया।

जब ब्रिटिश संसद ने लड़ाई के बारे में सुना तो उसके सदस्य सारागढ़ी के रक्षकों का अभिनंदन करने के लिए एकजुट हो गए। इन लोगों की वीरता की कहानी महारानी विक्टोरिया के सामने भी रखी गयी। इस विवरण को दुनिया भर में विस्मय और प्रशंसा के साथ स्वीकार किया गया।

सभी 21 सैनिकों को इंडियन ऑर्डर ऑफ मेरिट (मरणोपरांत) से सम्मानित किया गया। यह भारतीय सैनिकों के लिए लागू सर्वोच्च वीरता पुरस्कार था। इसे विक्टोरिया क्रॉस के समकक्ष माना जाता था। पंजाब में यह लड़ाई स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल है और हरियाणा भी ऐसा कर सकता है।

डॉ. जोसन हाल ही में यूके में थे, जहां 127वीं वर्षगांठ समारोह में मिडलैंड्स में गुरुद्वारा वेडनसफील्ड में श्री अखंड पाठ साहिब का आयोजन किया गया था। गुरुद्वारे के सामने एक स्मारक बना हुआ है जिसमें हवलदार ईशर सिंह की मूर्ति है। ईशर ने सिख सैनिकों का नेतृत्व किया था। ब्रिटिश सेना की सिख रेजिमेंट द्वारा एक औपचारिक बैंड और मार्च ने इस कार्यक्रम को जीवंत बनाया। 

वॉल्वरहैम्प्टन में ब्रिटिश सेना के सिख अधिकारियों द्वारा एक औपचारिक मार्चपास्ट। / Prabhjot Singh

डॉ. जोसन बताते हैं कि नवंबर में आदमपुर के पास डुमांडा गांव में सारागढ़ी स्टेडियम का उद्घाटन किया जाएगा। सरे स्थित सारागढ़ी फाउंडेशन के सह-अध्यक्ष, जे. मिन्हास, डुमांडा से हैं। सारागढ़ी के दो नायक - गुरमुख सिंह और जीवन सिंह - उनके गांव के थे। इस साल जून में सरे में सारागढ़ी युद्ध की स्मारक दीर्घाओं में से एक का उद्घाटन किया गया था।
 
स्टेडियम में अंतरराष्ट्रीय स्तर के फुटबॉल, बास्केटबॉल और वॉलीबॉल खेल के मैदान होंगे। स्टेडियम में अत्याधुनिक जिम्नेजियम हॉल होगा जिसका गेट पाकिस्तान के सारागढ़ी किले की प्रतिकृति होगा।

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