भारतीय रुपया हाल ही में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया। इसकी वजह से देश के व्यापार घाटे का नुकसान भले ही बढ़ जाए, लेकिन इसने विदेशों में रहने वाले नागरिकों के लिए संभावित निवेश अवसर का अच्छा अवसर प्रदान किया है।
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 83.43 के रिकॉर्ड निचले स्तर पर बंद हुआ। गुरुवार को यह 83.34 था। भारतीय रुपये में इस गिरावट को हाल के व्यापार संतुलन के आंकड़ों से जोड़कर देखा जा सकता है।
फरवरी में व्यापार घाटा जनवरी के 17.49 बिलियन डॉलर से आगे बढ़कर 18.71 बिलियन डॉलर हो गया था। निर्यात में 11.89% की वृद्धि हुई जबकि आयात में 12% की वृद्धि दर्ज की गई।
अनिवासी भारतीयों (एनआरआई) ने रुपये के इस अवमूल्यन का फायदा उठाया। रुपये की गिरावट का मतलब होता है कि हर डॉलर पर ज्यादा रुपये। इसकी वजह से एनआरआई रेमिटेंस में ऐतिहासिक वृद्धि आई।
रेमिटेंस में ये बढ़ोतरी खासतौर से संयुक्त राज्य अमेरिका, संयुक्त अरब अमीरात और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों में देखी गई। विश्व बैंक के अनुमानों के अनुसार वर्ष 2023 में विदेश में बसे भारतीयों ने 125 बिलियन डॉलर की रकम भारत भेजी थी जो भारत के सकल घरेलू उत्पाद का 3.4% था।
विदेश में बसे निवेश के इच्छुक भारतीयों के लिए एनआरई और एफसीएनआर डिपॉजिट जैसे बैंक फिक्स्ड डिपॉजिट और रियल एस्टेट आकर्षक क्षेत्र हो सकते हैं। भारत में ब्याज की कम दरें, विदेशी मुद्राओं के मूल्य में वृद्धि आदि को देखें तो विदेश में बसे भारतीयों के लिए निवेश काफी आकर्षक हो जाता है।
भारतीय रिज़र्व बैंक ने रेमिटेंस को नियंत्रित करने वाले नियमों को सरल बनाया है। उदारीकृत प्रेषण योजना (एलएसआर) जैसी स्कीमें लॉन्च की हैं। इससे एनआरआई द्वारा भारत में निवेश को और बढ़ावा मिला है।
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