वर्ष 1980 के दशक की एक प्रवृत्ति ने समकालीन भारतीय अर्थव्यवस्था में वापसी की है। हाल के आंकड़ों के बाद महिला भागीदारी में वृद्धि की तुलना में पुरुष श्रम भागीदारी में गिरावट देखी गई है। 1980 के दशक की इसी तरह की प्रवृत्ति ने 2024 में वापसी की है।
इसे श्रम का नारीकरण भी कहा जा सकता है। वर्तमान श्रम परिदृश्य में पुरुष भागीदारी में गिरावट और महिला भागीदारी में वृद्धि दिख रही है जो 1980 के दशक में देखी गई प्रवृत्ति को प्रतिबिंबित करती है। उस समय जब भारत हरित क्रांति और बैंकों के राष्ट्रीयकरण के नतीजों से जूझ रहा था ग्रामीण गरीबों और गैर-कृषि श्रमिकों ने अनौपचारिक बेरोजगारी की ओर रुख किया।
80 के दशक में बैंकों के राष्ट्रीयकरण और हरित क्रांति ने ग्रामीण अभिजात वर्ग और शहरी मध्यम वर्ग को प्रमुखता से आगे बढ़ाया। इससे गैर-कृषि क्षेत्र के श्रमिकों और गरीब किसानों की अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में कदमताल भी हुई।
फिर जैसे-जैसे अनौपचारिक क्षेत्र प्रमुखता से बढ़ा तो भारतीय श्रम बाजार में महिलाकरण की प्रवृत्ति बढ़ी। यानी श्रम क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ने लगी और पुरुष कार्यबल की भागीदारी में कमी देखी गई। अनौपचारिक क्षेत्र एक महिला के लिए आकर्षक था क्योंकि तब स्त्री घर और प्रति घंटा मजदूरी के बीच संघर्ष करती थी। इससे उन्हें अपनी मर्जी से कुछ राहत चुनने और तुलनात्मक रूप से लचीला कार्यक्रम अपनाने की आजादी मिली।
वर्तमान डेटा से पता चला है कि महिलाओं की भागीदारी 2022 में 27.98 प्रतिशत से बढ़कर 2023 में 37 प्रतिशत हो गई। यह वृद्धि पुरुष भागीदारी में वृद्धि से अधिक है जो केवल कुछ अंक ही बढ़ी है।
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