भारतीय मूल के कांग्रेसमैन राजा कृष्णमूर्ति ने दो अन्य सांसदों ने सेंटर फॉर मेडिकेयर एंड मेडिकेड सर्विसेज (सीएमएस) से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया है कि वरिष्ठ नागरिकों की दवाओं पर योजनाओं और फार्मेसी बेनिफिट मैनेजर (पीबीएम) का हवाला देकर फार्मेसियों पर प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष पारिश्रमिक (डीआईआर) शुल्क न लगाया जाए।
कृष्णमूर्ति और प्रतिनिधि डोनाल्ड डेविस और विसेंट गोंजालेज जूनियर ने सीएमएस को लिखे पत्र में जोर देकर कहा कि इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट (आईआरए) की जरूरतों की पूर्ति का हवाला देकर देश की फार्मेसियों पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ नहीं डाला जाना चाहिए। आईआरए स्पष्ट कहता है कि तयशुदा दवाओं के लिए फार्मेसियों को अधिकतम उचित मूल्य (एमएफपी) से नीचे भरपाई की रकम नहीं दी जानी चाहिए।
सदस्यों ने चिंता जताते हुए कहा कि अगर इन दवाओं पर डीआईआर शुल्क लागू किया जाता है तो फार्मेसियों को एमएफपी से भी कम रीइंबर्समेंट दिया जा सकता है। उन्होंने कहा कि फार्मेसियों की प्रतिपूर्ति रकम उचित हो, लागत व मार्जिन को कवर करती हो और इसमें उचित पेशेवर वितरण शुल्क भी शामिल होना चाहिए। सांसदों का कहना है कि इस समय खुदरा फार्मेसियों को पीबीएम से जो फीस मिलती है, वह वितरण की वास्तविक लागत से भी काफी कम होती है।
सांसदों ने लेटर में कहा कि फार्मेसियों को पहले से ही मेडिकेयर पार्ट डी की वजह से कैश की कमी का सामना करना पड़ रहा है। नेशनल कम्युनिटी फार्मासिस्ट एसोसिएशन के एक हालिया सर्वे के अनुसार, उत्तरदाताओं में से 32 प्रतिशत का कहना था कि वे मेडिकेयर में कैश की कमी के कारण 2024 में अपनी दुकान बंद करने पर विचार कर रहे हैं।
सर्वेक्षण के अनुसार, 93 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने संकेत दिया कि यदि इस साल स्थिति ऐसी ही बनी रही तो अगले साल वे मेडिकेयर पार्ट डी से हट सकते हैं। अगर ऐसा होता है तो देश भर में रोगियों खासकर वरिष्ठ नागरिकों पर गंभीर असर पडे़गा। आधे से अधिक उत्तरदाताओं का कहना था कि मेडिकेयर पार्ट डी प्रेसक्रिप्शन उनके कुल कारोबार का 40 प्रतिशत या उससे भी अधिक होता है।
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