अंतरराष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी आयोग (USCIRF) ने भारत के संशोधित नागरिकता कानून (CAA) के क्रियान्वयन को लेकर चिंता जाहिर की है। इस कानून का मकसद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के ऐसे अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करना है, जो मजहबी तौर पर प्रताड़ित होकर 2014 से पहले भारत में आकर रह रहे हैं। USCIRF कमिश्नर स्टीफन स्नेक ने इसे 'समस्याग्रस्त' करार देते हुए दावा किया कि इसमें स्पष्ट तौर पर मुसलमानों को बाहर रखा गया है।
बता दें कि भारत हमेशा से USCIRF से इस तरह की बयानबाजी से दूर रहने और भारत, इसकी बहुलता, इसके लोकतांत्रिक मूल्यों और संवैधानिक तंत्र की बेहतर समझ विकसित करने की बात करता रहा है। भारत ने गलत तरीके से तथ्य प्रस्तुत करने के लिए USCIRF की बार-बार आलोचना की है।
अब CAA को लेकर एक बार फिर USCIRF ने पहले की तरह वही रवैया अपनाया है। USCIRF कमिश्नर स्टीफन स्नेक का कहना है कि CAA कानून हिंदुओं, पारसियों, सिखों, बौद्धों, जैनियों और ईसाइयों को नागरिकता देने के लिए फास्ट-ट्रैक व्यवस्था प्रदान करता है, लेकिन कानून स्पष्ट रूप से मुसलमानों को बाहर रखता है।
स्टीफन का कहना है कि यदि कानून वास्तव में सताए गए मजहबी अल्पसंख्यकों की रक्षा के उद्देश्य से तैयार किया गया है, तो इसमें रोहिंग्या मुसलमान, पाकिस्तान के अहमदिया मुसलमान या अफगानिस्तान के हजारा शिया शामिल होते। उनका कहना है कि किसी को भी धर्म या आस्था के आधार पर नागरिकता से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। स्टीफन ने कहा, USCIRF कांग्रेस के सदस्यों से अनुरोध करता है कि वे भारत में धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दों को सार्वजनिक रूप से उठाते रहें और सरकारी समकक्षों के साथ चर्चा में इस मसले को शामिल करें।
इससे पहले भारत में अमेरिकी राजदूत एरिक गार्सेटी ने भी CAA के कार्यान्वयन को लेकर चिंता व्यक्त की थी और कहा था कि अमेरिका स्थिति की निगरानी करेगा। उन्होंने कहा था कि धार्मिक स्वतंत्रता और समानता का सिद्धांत लोकतंत्र की आधारशिला है। भारत ने इन टिप्पणियों को खारिज किया था।
USCIRF एक स्वतंत्र इकाई है जिसे अमेरिकी संसद ने विदेशों में धार्मिक स्वतंत्रता पर निगरानी, विश्लेषण और रिपोर्ट करने के लिए स्थापित किया है। यह राष्ट्रपति, राज्य सचिव और कांग्रेस को विदेश नीति की सिफारिशें करता है जिसका उद्देश्य धार्मिक उत्पीड़न को रोकना और धर्म या विश्वास की स्वतंत्रता को बढ़ावा देना है। USCIRF की सिफारिशें मानने के लिए विदेश विभाग बाध्य नहीं होता है।
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