22 जनवरी, 2024 का दिन कई हलकों में एक ऐसे देश के धार्मिक, सांस्कृतिक, सभ्यतागत और राजनीतिक लोकाचार में मील के पत्थर के रूप में देखा जाएगा जिसने आजादी के बाद से कई उथल-पुथल देखी हैं। भारत के अयोध्या शहर में श्रीराम का जो अभिषेक हुआ उसमें निस्संदेह रूप से बहुत धूमधाम थी। भव्यता थी। समाज के एक बड़े वर्ग ने इसे आत्मज्ञान के उस क्षण के रूप में देखा जो लंबे समय से प्रतीक्षित था। लेकिन कुछ लोगों ने इस पूरे प्रकरण को इसलिए तिरस्कार की दृष्टि से देखा क्योंकि यह धर्म और राजनीति का एक जहरीला मिश्रण है जो धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्रों में नहीं होना चाहिए।
अयोध्या में जो कुछ हुआ उसे भारत के सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में जो कहा था उसे अंतिम रूप देने के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। बल्कि इसे इस संदर्भ में देखा जाना चाहिए कि पिछले कुछ समय से इस देश में क्या हो रहा है। सीमाओँ से दूर भी भारत को हमेशा रामायण और महाभारत जैसे महान महाकाव्यों के संदर्भ में देखा और समझाया गया है। वर्ष 1980 के दशक में बड़े होने पर किसी ने रामानंद सागर और बीआर चोपड़ा के महान महाकाव्य-दृश्यों को न देखा हो, ऐसा नहीं हो सकता। पहले हिंदी में और बाद में कई अन्य भाषाओं में रामायण और महाभारत को डब किया गया। इन दो उत्कृष्ट कृतियों के बाद भी कोई विश्वासी आत्मा जागृत नहीं होगी, यह भरोसा करना कठिन है।
रामलला की मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा के समय जो कुछ हुआ उसे देखते हुए इसे राजनीति कहकर खारिज करना सहज होगा। राजनीति से घिरी दुनिया में यह सोचना बेतुका है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक पल के लिए भी इसके निहितार्थों पर गौर नहीं किया होगा। लेकिन समारोह के बाद मोदी के भाषण में सब कुछ था। धर्म, पुनरुत्थानवाद, अर्थशास्त्र, प्रौद्योगिकी और सबसे ऊपर संस्कृति और सभ्यता। और पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों के लिए ताज महल के साथ अयोध्या को जोड़ने दिलचस्प रहा।
मोदी की अयोध्या यात्रा वाया केरल और तमिलनाडु हुई। दक्षिण भारत के इन राज्यों में भगवान राम को समर्पित कई मंदिर हैं या ऐसे स्थल हैं जो उनसे प्रेरणा लेते हैं। माना जाता है कि अयोध्या में विशेष अंतरराष्ट्रीय आमंत्रित लोगों को लगभग 50 देशों में भी भेजा गया था। इनमें इस्लामी आस्था को मानने वाले लोग भी शामिल थे। इसके अलावा राम मंदिर लाखों भारतीय प्रवासियों के लिए भी एक विशेष आकर्षण था। प्रवासियों ने इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों में भाग लिया। कई लोग तो ऐसे थे जिन्होंने भारत को देखा भी नहीं पर फिर भी वे अपने टेलीविजन और सेल फोन पर जो कुछ भी सुनते और देखते रहे उससे रोमांचित थे।
सच तो यह भी है कि एक विशाल आयोजन बिना किसी अप्रिय घटना के संपन्न हो गया। यह अपने आप में उस सद्भाव का प्रमाण है जो आम तौर पर विभिन्न धर्मों के बीच रहता है। निश्चित रूप से हर धर्म और राजनीतिक दल में विघ्नसंतोषी होते हैं लेकिन एक बड़े परिप्रेक्ष्य और प्रकरण में उन तत्वों की बातों पर ध्यान देना बेकार ही है। उम्मीद है कि अयोध्या में अंतिम क्षण तक चलने वाली यह प्रक्रिया हिंदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों और अन्य धर्मों के बीच एक प्रकार के आत्मनिरीक्षण को प्रेरित करेगी। अतीत के गौरव या अन्याय का राग अलापने से नफरत की आग भड़कती है। आगे बढ़ने का रास्ता खत्म हो जाता है।
Comments
Start the conversation
Become a member of New India Abroad to start commenting.
Sign Up Now
Already have an account? Login