पीरियड पावर्टी (महिलाओं में होने वाली माहवारी के मामले में गरीबी) एक महत्वपूर्ण किंतु छुपा हुआ वैश्विक स्वास्थ्य संकट है जो मासिक धर्म उत्पादों, शिक्षा और स्वच्छता सुविधाओं तक अपर्याप्त पहुंच को रेखांकित करता है और लाखों महिलाओं के लिए व्यापक स्तर पर अन्याय और असमानता का कारण बनता है। अपर्याप्त शिक्षा और बुनियादी ढांचे के साथ-साथ मासिक धर्म से जुड़ी वर्जनाएं इन मुद्दों को बढ़ावा देती हैं।
भारत में 2019-21 के बीच आयोजित राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार 15-24 वर्ष की आयु की केवल 64.4 प्रतिशत किशोरियां और महिलाएं सैनिटरी नैपकिन का उपयोग करती हैं जबकि शेष कपड़े या अन्य असुरक्षित तरीकों जैसे पुराने चिथड़े, प्लास्टिक, रेत या राख से अपनी मासिक धर्म संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करने के मजबूर हैं।
सर्वेक्षण के अनुसार भारत के कुछ सबसे गरीब राज्यों में गरीबी, स्वास्थ्य देखभाल की कमी और अपर्याप्त स्वच्छता सुविधाओं के चलते बिहार (59 प्रतिशत), मध्य प्रदेश (61 प्रतिशत) और मेघालय (65 प्रतिशत) में असुरक्षित मासिक धर्म सुरक्षा का उपयोग करने वाली महिलाओं का प्रतिशत काफी अधिक है।
मासिक धर्म उत्पादों की ज्यादा कीमत 'मासिक धर्म की गरीबी' का सबसे बड़ा कारण है। विशेष रूप से भारत में, जहां 70 प्रतिशत परिवार सैनिटरी पैड का खर्च नहीं उठा सकते। परिणामस्वरूप मासिक धर्म संबंधी उत्पादों को अक्सर आवश्यक खरीदारी से बाहर रखा जाता है। वित्तीय बाधाओं के कारण महिलाएं अन्य जरूरतों को प्राथमिकता देती हैं। यह वित्तीय बाधा सामाजिक कलंक के साथ मिलकर महिलाओं को अपनी मासिक धर्म स्वास्थ्य आवश्यकताओं को पूरा करने से रोकती है।
माहवारी के मामले में यह गरीबी लड़कियों की शिक्षा पर भी गंभीर प्रभाव डालती है। जाहिर तौर पर इसके चलते अनुपस्थिति, उच्च स्कूल छोड़ने की दर और कक्षा में भागीदारी कम हो जाती है। स्वच्छता उत्पादों तक पहुंच की कमी और अपर्याप्त सुविधाओं के कारण महत्वपूर्ण शैक्षणिक अंतराल पैदा होता है इससे जुड़ी वर्जनाएं और शर्मिंदगी लड़कियों के आत्म-सम्मान, मानसिक स्वास्थ्य और समग्र शैक्षणिक प्रदर्शन पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
व्हील्स ग्लोबल फाउंडेशन (पैन-आईआईटी पूर्व छात्रों का प्राथमिक गिविंग-बैक प्लेटफॉर्म) का लक्ष्य भारत में 800 मिलियन से अधिक ग्रामीण और वंचित लोगों को किफायती स्वास्थ्य देखभाल समाधान प्रदान करना है। इनमें से 48 प्रतिशत ग्रामीण महिलाएं हैं। अपने सामाजिक प्रभाव भागीदार NOBA GSR (बिहार स्थित नेतरहाट हाई-स्कूल ओल्ड बॉयज एसोसिएशन की एक गैर-लाभकारी शाखा) के सहयोग से संस्था ने 'संगिनी' के माध्यम से ग्रामीण भारत की लाखों युवा महिलाओं को माहवारी जरूरतें पूरी करने के लिए कदम बढ़ाया है।
संगिनी ने एक अभिनव सैनिटरी पैड डिस्पेंसर मॉडल पेश किया है जो जागरूकता, उपलब्धता और सामर्थ्य पर जोर देते हुए सस्ती दरों पर गुणवत्ता वाले पैड की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। यह अभियान प्रारंभ में बिहार और झारखंड में लॉन्च किया गया क्यों वहां सैनिटरी नैपकिन का उपयोग सबसे कम है। इस परियोजना में स्थापना स्थलों का चयन करने और सेटअप का समर्थन करने के लिए स्थानीय स्वयंसेवकों को शामिल किया गया है।
चयनित निर्माता मशीनों को गुणवत्तापूर्ण पैड की आपूर्ति करता है जबकि NOBA GSR वितरण, विपणन और लॉजिस्टिक्स का काम संभालता है। प्रत्येक पैड की कीमत 2 रुपये है जो 10 रुपये के बाजार मूल्य से काफी कम है। इससे यह मॉडल मात्र 450 डॉलर में परोपकारी समर्थन द्वारा प्रारंभिक सेटअप लागत के साथ आत्मनिर्भर बन जाता है।
(इस लेख में व्यक्त विचार और राय लेखक के अपने हैं। जरूरी नहीं कि वे न्यू इंडिया अब्रॉड की आधिकारिक नीति या स्थिति को दर्शाते हों)
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