प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कानून के शासन के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दोहराई है। संदर्भ खालिस्तान समर्थक, अलगाववादी गुरपतवंत सिंह पन्नू का है। भारत के प्रधानमंत्री ने स्पष्ट रूप से कहा है कि गुरपतवंत सिंह पन्नू मुद्दे पर किसी भी जानकारी का सावधानीपूर्वक अध्ययन किया जाएगा। साथ ही पीएम मोदी ने इस धारणा को खारिज कर दिया है कि इस प्रकरण के कारण भारत-अमेरिका संबंध प्रभावित हो रहे हैं। प्रधानमंत्री ने एक साक्षात्कार में कहा कि अगर कोई हमें कोई जानकारी देता है तो हम निश्चित रूप से उस पर गौर करेंगे। अगर हमारे किसी नागरिक ने कुछ भी अच्छा या बुरा किया है तो हम उस पर गौर करने के लिए तैयार हैं। हमारी प्रतिबद्धता कानून के शासन के प्रति है। भले ही आधिकारिक तौर पर नई दिल्ली और वाशिंगटन ने इस मामले पर परिपक्व और पेशेवर तरीके से विचार किया हो लेकिन पन्नू प्रकरण एक महीने से सुर्खियों में है। इस प्रकरण में भारत के आलोचकों ने 'अतिरंजित' मूल्य-आधारित संबंधों की सीमाओं के बारे में बहस करने का अवसर नहीं गंवाया। और फिर ऐसे लोग भी थे जो उस बदनाम पंक्ति को दोहरा रहे थे 'मैंने तो तुमसे कहा था' ताकि वाशिंगटन द्वारा भारत पर पलटवार किया जा सके। पीएम मोदी ने यह कहकर आलोचकों को चुप करा दिया कि सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग हमारी साझेदारी का एक प्रमुख घटक रहा है और मुझे नहीं लगता है कि कुछ घटनाओं को दोनों देशों के राजनयिक संबंधों से जोड़ना उचित है। इस प्रकरण को लेकर बाइडन प्रशासन के रवैये को लेकर अभी भी भारत में बेचैनी का माहौल है। आशंकाएं पूरी तरह से गलत भी नहीं हैं। पन्नू सिख फॉर जस्टिस का एक सामान्य हिमायती है। इस संगठन को वर्ष 2019 में भारत ने 'गैर कानूनी' करार दिया था और अगले ही वर्ष पन्नू को 'व्यक्तिगत आतंकवादी' के रूप में सूचीबद्ध कर दिया गया था। सितंबर से ही भारत किसी न किसी मसले पर अंतरराष्ट्रीय सुर्खियों में है। सबसे पहले इस जून में वैंकूवर में हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में आधिकारिक मिलीभगत के कनाडाई प्रधान मंत्री के आरोपों से और फिर नवंबर में संयुक्त राज्य अमेरिका के न्याय विभाग ने पन्नू को मारने की 'साजिश' में एक भारतीय नागरिक और एक अन्य अज्ञात कथित भारतीय सरकारी अधिकारी को दोषी ठहराया। लेकिन कनाडाई और अमेरिकी मामलों के बीच का अंतर भी खत्म नहीं हुआ है। यह आरोप बनाम एक विशिष्ट अभियोग था जिसे न्यूयॉर्क शहर की अदालत में खोला गया था। भारत सरकार ने कनाडाई आरोपों को 'बेतुका' और 'प्रेरित' कहकर खारिज कर दिया लेकिन साथ ही इसकी जांच के लिए 18 नवंबर को एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया। जैसा कि अमेरिका कह रहा था। 9/11 के बाद संयुक्त राज्य अमेरिका ने आतंकवाद और आतंकवादियों पर कई कायदे-कानून तय किये हैं लेकिन यह सुनिश्चित करने में सावधानी बरतनी चाहिए कि वह अपने स्वयं के निर्देशों का पालन करे। ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिका में भारत-विरोधी तत्वों को अपनी इच्छानुसार कुछ भी करने की खुली छूट है। भारतीय राजनयिकों को धमकाना, दूतावास और वाणिज्य दूतावास की संपत्तियों को नष्ट करना, वाणिज्यिक एयरलाइनों को उड़ाने की धमकी देना और इनाम रखना...इत्यादि। कुछ पश्चिमी क्षेत्रों में इससे भी बुरी बात यह है कि 'लोकतंत्र' होने के नाते अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के आधार पर हाथ बंधे हुए हैं!
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