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अपदस्थ बांग्लादेशी नेता भारत के लिए बन गई हैं कूटनीतिक सिरदर्द!

शेख हसीना का कठोर कार्यकाल पिछले महीने समाप्त हो गया जब अधिकारों के हनन और विपक्षी कार्रवाई के 15 साल बाद प्रदर्शनकारियों ने ढाका में उनके महल पर कब्जा कर लिया।

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 84 वर्षीय नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली बांग्लादेशी सरकार को समर्थन देने का वादा किया है। / Reuters/Mohammad Ponir Hossain

भारत में शरणागत बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना अपने मेजबान के लिए कूटनीतिक सिरदर्दी का सबब बन गई हैं। ऐसा निश्लेषकों का मानना है। छात्रों के नेतृत्व वाली क्रांति के दौरान पूर्व प्रधानमंत्री को अपना पद और देश छोड़कर भागना पड़ा था। शेख हसीना का कठोर कार्यकाल पिछले महीने समाप्त हो गया जब अधिकारों के हनन और विपक्षी कार्रवाई के 15 साल बाद प्रदर्शनकारियों ने ढाका में उनके महल पर कब्जा कर लिया। 

विद्रोह का नेतृत्व करने वाले बांग्लादेशी छात्र हसीना की भारत से वापसी की मांग कर रहे हैं ताकि विद्रोह के दौरान प्रदर्शनकारियों की हत्या के लिए उन पर मुकदमा चलाया जाए। लेकिन 76 वर्षीय बुजुर्ग को वापस भेजने से दक्षिण एशिया में अपने अन्य पड़ोसियों के साथ भारत की स्थिति कमजोर होने का खतरा है, जहां वह चीन के साथ प्रभाव के लिए भीषण लड़ाई लड़ रहा है।

संघर्ष समाधान थिंक-टैंक इंटरनेशनल क्राइसिस ग्रुप के थॉमस कीन का कहना है कि भारत स्पष्ट रूप से हसीना को बांग्लादेश वापस प्रत्यर्पित नहीं करना चाहेगा। कीन कहते हैं कि ऐसा करने पर इस क्षेत्र के अन्य नेताओं को जो नई दिल्ली के करीबी हैं, गलत संदेश जाएगा। संदेश यह जाएगा कि भारत आपकी रक्षा नहीं करेगा।

अच्छे रिश्तों की चाह
नई दिल्ली ने पिछले साल मालदीव में अपने पसंदीदा राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार को एक प्रतिद्वंद्वी से हारते देखा। उसने रणनीतिक रूप से अहम विलासितापूर्ण पर्यटन के द्वार तुरंत बीजिंग के लिए खोल दिये। हसीना के पतन से भारत ने क्षेत्र में अपना सबसे करीबी सहयोगी को खो दिया है। 

जो लोग बांग्लादेश में हसीना के शासन में पीड़ित थे वे उनकी सरकार द्वारा किए गए अत्याचार के लिए खुले तौर पर भारत के प्रति शत्रुतापूर्ण रुख रखते हैं। वह शत्रुता हिंदू-राष्ट्रवादी भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा छेड़ी गई और बांग्लादेश के कार्यवाहक प्रशासन की ओर निर्देशित मेगाफोन कूटनीति के माध्यम से सुलग गई है।

मोदी ने 84 वर्षीय नोबेल शांति पुरस्कार विजेता मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली और हसीना की जगह लेने वाली सरकार को समर्थन देने का वादा किया है। लेकिन मोदी, जिन्होंने हिंदू आस्था की वकालत को अपने कार्यकाल का मुख्य मुद्दा बनाया है, ने बार-बार यूनुस के प्रशासन से बांग्लादेश के हिंदू धार्मिक अल्पसंख्यकों की रक्षा करने का आग्रह किया है।

निरंकुश को आश्रय 
अविश्वास का माहौल ऐसा है कि जब अगस्त में दोनों देशों में भयानक बाढ़ आई तो कुछ बांग्लादेशियों ने इसके परिणामस्वरूप हुई मौतों के लिए भारत को दोषी ठहराया। बांग्लादेश की अंतरिम सरकार ने सार्वजनिक रूप से नई दिल्ली के साथ हसीना के भारत में शरण लेने का मुद्दा नहीं उठाया है। हसीना का अंतिम आधिकारिक ठिकाना राजधानी दिल्ली के पास एक सैन्य हवाई अड्डा बताया जाता है। लेकिन ढाका ने हसीना का राजनयिक पासपोर्ट रद्द कर दिया है जिससे उन्हें आगे की यात्रा करने में दिक्कत होगी। 

भारत और बांग्लादेश के बीच एक द्विपक्षीय प्रत्यर्पण संधि है। उस पर पहली बार 2013 में हस्ताक्षर किए गए थे। यह संधि आपराधिक मुकदमे का सामना करने के लिए हसीना को वापसी करने की बात कहती है। 

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