नोबेल पुरस्कार विजेता वेंकी रामकृष्णन ने हाल ही में हार्वर्ड साइंस बुक टॉक में अपनी नई किताब 'व्हाई वी डाई: द न्यू साइंस ऑफ एजिंग एंड द क्वेस्ट फॉर इम्मोर्टैलिटी' प्रस्तुत की। रामकृष्णन ने राइबोसोम संरचना पर अपने शोध के लिए रसायन विज्ञान में 2009 का नोबेल पुरस्कार साझा किया था।
रामकृष्णन ने अपनी नई किताब में उम्र बढ़ने के गहन दार्शनिक और वैज्ञानिक पहलुओं के साथ-साथ विभिन्न प्रजातियों के बीच जीवन काल में व्यापक भिन्नता की जांच की है। मानव गरिमा और कल्याण के संरक्षण के महत्व पर जोर देते हुए रामकृष्णन ने इस किताब में तकनीकी प्रगति की संभावना के बारे में बात की है जो उम्र बढ़ने की प्रक्रिया को रोक सकती है या शिथिल कर सकती है।
हार्वर्ड में वेंकी ने कहा कि सवाल यह है कि इंसान रहते हुए क्या हम उम्र बढ़ने की प्रक्रियाओं से निपट सकते हैं और क्या हम इसे सुरक्षित और प्रभावी तरीके से कर सकते हैं। रामकृष्णन ने दीर्घायु की खोज और अन्य महत्वाकांक्षी वैज्ञानिक लक्ष्यों के बीच दार्शनिक समानता पर प्रकाश डाला है।
बकौल वेंकी ऐसा कोई भौतिक या रासायनिक कानून नहीं है जो कहता है कि हम अन्य आकाशगंगाओं या बाहरी अंतरिक्ष अथवा यहां तक कि मंगल ग्रह पर भी उपनिवेश नहीं बना सकते। मैं इसे उसी श्रेणी में रखूंगा और इसके लिए बड़ी सफलताओं की आवश्यकता होगी जो हमने अभी तक हासिल नहीं की हैं।
उम्र बढ़ने के अनुसंधान क्षेत्र में सरकारों और निजी कंपनियों ने पर्याप्त निवेश किया है। वर्ष 2027 तक एंटी-एजिंग उत्पादों का बाजार 93 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। रामकृष्णन की पुस्तक इन विकासों का एक व्यापक अवलोकन प्रदान करती है और मानव के भविष्य के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न उठाती है। यानी लंबी उम्र के बारे में।
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