लेखिका निधि ठाकुर ने 25 साल पहले अपने सपनों को पूरा करने के लिए सात समंदर पार जाने के लिए अपनी पहली उड़ान भरी थी। उन्हें पता था कि आगे क्या चुनौतियां आने वाली हैं। लेकिन वह उनके लिए पूरी तरह तैयार थीं। वह विदेशी धरती पर अपने लिए नई जिंदगी बनाना चाहती थीं। निधि याद करती हैं कि एक वक्त था जब भारत में फोन पर बात करने के लिए 5 डॉलर का स्क्रैच कार्ड खरीदना होता था, जिससे सिर्फ 20 मिनट ही बात हो पाती थी। ऐसे में उन्हें बहुत खालीपन महसूस होता था। ये खालीपन उन्हें संस्कृति और नई पहचान के करीब ले गया। जब उन्हें एहसास हुआ कि उनके अनुभव काफी अनोखे थे, तब उन्होंने इसे एक किताब का रूप दिया। यह ऐसी किताब थी जो पूरे अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की आवाज बन गई। निधि ने न्यू इंडिया अब्रॉड के साथ स्पेशल इंटरव्यू में प्रवासी भारतीयों, नई पहचान, लेखन और सशक्तिकरण के अपने सफर पर खुलकर बात की।
अपने परिवार, शुरुआती वर्षों, परवरिश और लेखन के प्रति रुझान के बारे में कुछ बताइए।
निधि ने कहा कि मैं देहरादून में पली बढ़ी हूं। स्कूली शिक्षा वहीं से हुईं। छोटी उम्र से ही साहित्य और पढ़ाई की खूबसूरत दुनिया से मेरा परिचय हो गया। भले ही घर में ज्यादा किताबें नहीं थीं लेकिन मेरी गायिका मां कला की कद्रदान थीं। उन्होंने व्यक्तित्व को आकार दिया। मैंने कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं ली, फिर भी छोटी उम्र में ही लेखन शुरू कर दिया। मुझे जब भी मुझे समय मिलता, मैं कविताओं और जर्नल लिखती। मैं स्कूल की मैगजीन की संपादक थी।
निधि ने आगे बताया कि कॉलेज में अर्थशास्त्र उनका मुख्य विषय था। अंग्रेजी साहित्य से ज्यादा सरोकार नहीं था। फिर भी मैंने उसे चुना। मैं पत्रकार बनना चाहती थी। इकनोमिक्स पढ़ते हुए मैंने कई अखबारों और मैगजीनों में लेख लिखे। इनमें फिक्शन और नॉन फिक्शन दोनों तरह के लेख और कहानियां थीं। जेएनयू से इकनोमिक्स में पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद मैं 1999 में शिकागो यूनिवर्सिटी से पोस्ट डॉक्टरेट और एरिजोना यूनिवर्सिटी से पीएचडी के लिए अमेरिका आ गई। अभी मैं न्यूजर्सी में पति और बच्चों के साथ रहती हूं। मैं माता-पिता, लेखक, अर्थशास्त्री और सामुदायिक स्वयंसेवक की भूमिका में खुश हूं।
द्विभाषी लेखन होने के नाते आपको अपने लेखन के लिए प्रेरणा कहां से मिलती है? आप उन्हे कैसे आकार देती हैं?
निधि ने बताया कि मैंने दोनों भाषाओं में लेखन किया है। अपनी अपनी रचनात्मक प्रक्रिया के बारे में बताते हुए उन्होंने कहा कि मुझे इसकी प्रेरणा अंदर से मिलती है। मुझे इसकी बाहर तलाश नहीं करनी पड़ती। मेरी कहानियां शायद काल्पनिक हैं लेकिन गहराई से एक वास्तविकता से जुड़ी हुई हैं। मेरी कहानियों रचनात्मक होती हैं, साथ ही उनमें कल्पनाओं और वास्तविक दुनिया के अनुभवों की झलक होती है। रचनात्मक लेखन के साथ समस्या यह है कि कहानी का अंत अज्ञात होता है। मैं सिर्फ कथा, पात्रों, दृश्यों आदि पर फोकस करती हूं, यह जाने बिना कि यह कहां तक ले जाएगा। इसलिए मेरी कहानियां पूर्व निर्धारित अंत के बजाय अंतर्ज्ञान से मोड़ लेती हैं।
लेखन ने आपके व्यक्तिगत विकास को कैसे प्रभावित किया है? आप लेखन में विविधता का सामंजस्य कैसे बनाती हैं?
मेरा अधिकतर प्रारंभिक लेखन मेरे उस समय के परिवेश के आसपास केंद्रित था। उससे मुझे अपने आसपास की दुनिया को समझने में मदद मिली, मेरे विचारों और भावनाओं को स्पष्टता मिली। परिवर्तन ने मुझे चीजों को सटीकता के साथ देखने में सक्षम बनाया। खासकर विदेशी धरती पर आने और एक अप्रवासी के रूप में यहां फिट होने की कोशिश ने मुझे एक वैश्विक समुदाय का हिस्सा बना दिया है। मैं अलग अलग विषयों और अलग अलग शैलियों में लिखती हूं, लेकिन यह कभी जानबूझकर नहीं होता। मैं ऐसे विषयों को चुनती हूं, जिनके प्रति मेरा स्वाभाविक झुकाव है। जैसे कि अपशिष्ट प्रबंधन। एक मध्यवर्गीय परिवार में पली बढ़ी होने के नाते हम जानते हैं कि चीजों को कैसे फिर से इस्तेमाल करने लायक बनाया जाए। इसी तरह लिंग जैसे अन्य विषय हैं। मेरे परिवार में मां और बहनों के बीच पिता इकलौते पुरुष थे। फिर भी उन्होंने बेटियों का सपोर्ट करने के लिए सभी रूढ़ियों को तोड़ा, मानदंडों को चुनौती दी। इससे मुझे लैंगिक संवेदनशीलता की गहरी समझ मिली।
साहित्य में प्रतिनिधित्व का क्या महत्व है, खासकर आज की वैश्वीकृत और परस्पर दुनिया में?
साहित्य हमें अपने अतीत और वर्तमान को आकार देने वाले कारकों पर आत्मनिरीक्षण करने के लिए प्रोत्साहित करता है। जब हम विविध पृष्ठभूमि वाले लोगों द्वारा लिखे साहित्य को पढ़ते हैं और उससे जुड़ते हैं तो हम न केवल उनकी दुनिया में प्रवेश करते हैं बल्कि यह भी समझते हैं कि हम दुनिया को कैसे देखते हैं। हम सवाल करते हैं। हम चीजों को परखते हैं। प्रतिबिंबित करते हैं और अंततः बदलते हैं। सलमान रुश्दी, अमृता प्रीतम, खालिद हुसैनी, एमी टैन, प्रेम चंद जैसे कुछ नाम हैं, जो आपको विराम देते हैं और सोचने पर विवश करते हैं। कोई भी परिदृश्य धीरे-धीरे विकसित होता है। मुझे इस गतिशील समाज का हिस्सा बनने का सौभाग्य मिला एक आप्रवासी के रूप में, अश्वेत महिला के रूप में, एक मां के रूप में। मैं चीजों और संवेदनाओं पर बात कर सकती हूं और मुझे यह पसंद है।
आपकी नवीनतम कृति 'When She Married Dr Patekar' है। आपको इसका विचार कैसे आया? ये प्रवासियों के अनुभव से कैसे जुड़ा है?
मेरा अमेरिका आना 1999 में हुआ था। सैन फ्रांसिस्को या न्यूयॉर्क के उलट एरिज़ोना में रहना काफी अलग था। ऐसे में अमेरिका में भारतीय कैसे दिखते हैं और रहते हैं, इसकी कल्पना ही की जा सकती थी। भारत में घर पर बात करना काफी महंगा था। ऐसे में मेरा अकेलापन मुझे अपनी संस्कृति और पहचान के करीब लेकर आया। ग्रैजुएशन करने के बाद मैं दूसरे शहर में चली गई। लेकिन शादी के बाद मैंने कई और डायस्पोरा देखे। उन्हें देखकर मुझे एहसास हुआ कि मेरे अनुभव कितने सार्वभौमिक थे। मुझे ऐसी हर उल्लेखनीय यात्रा के पीछे की विस्मयकारी ताकत महसूस हुई। मैंने उसी को अपनी कहानियों में पिरोया। मेरी कहानियां अप्रवासी अनुभव और मानव अस्तित्व के विविध आयामों की झलक पेश करती है।
आपकी कई कहानियां विदेशी धरती पर महिलाओं की मजबूत नायक वाली छवि और उनके विभिन्न पहलुओं को दिखाती हैं। आप प्रवासी महिलाओं के प्रतिनिधित्व और सशक्तिकरण को किस तरह देखती हैं?
मैं जानबूझकर महिलाओं की कहानियां नहीं लिखती। फिर भी मेरे अधिकांश नायक महिलाएं बन जाती हैं। कुछ ट्रिगर करता है और मुझे लिखने के लिए प्रेरित करता है। मेरी नई किताब की शीर्षक कहानी 'जब शी मैरिड डॉ पाटेकर' एक प्रसिद्ध बॉलीवुड अदाकारा के वास्तविक जीवन से प्रेरित है। इसी तरह एक अन्य कहानी में एक चाचा के हाथों बचपन का दुरुपयोग एक आप्रवासी मां के लिए 'परिवार' शब्द की परिभाषा को आकार देता है, जो अपनी बेटी को सशक्त और मजबूत बनाना चाहती है। किताबों में आप्रवासियों की अलग अलग यात्राओं का वर्णन है। उनमें केंद्रीय पात्रों के रूप में महिलाएं भी हैं, पुरुष भी हैं।
आप अपने काम को प्रवासियों के अनुभवों और साहित्य में सांस्कृतिक प्रतिनिधित्व के विस्तृत नजरिए से कैसे देखती हैं?
मुझे लगता है कि मेरी किताब भारतीय-अमेरिकी प्रवासियों की कहानियों को अच्छे से दिखाती हैं। यह मुख्य रूप से ऐसे लोगों से जुड़ी हैं जो अनजान क्षेत्रों में फिट होने, नए जीवन बनाने और अपनी पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। मेरी कहानी में महिला नायकों की अलग-अलग यात्राएं हैं। विवाह, उम्र और मानसिक स्वास्थ्य की कहानियां हैं। इनमें से हर कहानी में हिंदी भाषा का पुट है। यह काफी स्वाभाविक भी है क्योंकि मैं एक द्विभाषी लेखक हूं। इसलिए जब प्रवासी इन्हें पढ़ते हैं तो वे खुद को इनसे जुड़ा पाते हैं।
Comments
Start the conversation
Become a member of New India Abroad to start commenting.
Sign Up Now
Already have an account? Login