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'लाल लहर' में 'नीलकमल'

भारतीय मूल के लोग अमेरिकी आबादी का मात्र एक प्रतिशत हैं लेकिन इनका सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव इस संख्या से कहीं ज्यादा है।

इस बार प्रतिनिधि सभा में भारतीय कांग्रेसियों की संख्या पांच से बढ़कर छह हो गई है। / CANVA
भारतीय लोगों और भारतीय-अमेरिकी समुदाय को राष्ट्रपति चुनाव में भारतवंशी कमला हैरिस की शिकस्त का मलाल तो जरूर है, और रहेगा, मगर राष्ट्रीय राजनीति की दृष्टि से एक सुखद अनुभूति अवश्य है। कि प्रतिनिधि सभा में भारतीय मूल के सदस्यों की संख्या पांच से बढ़कर छह हो गई है। अहम यह भी है कि पदधारी पांचों कांग्रेसी फिर से चुनाव जीते हैं और सुहास सुब्रमण्यम ने पूर्वी तट से पहला चुनाव जीतकर इतिहास रचा है। अमी बेरा ने छठा कार्यकाल जीता तो राजा कृष्णमूर्ति, रो खन्ना और प्रमिला जयपाल चौथा कार्यकाल हासिल करने में कामयाब रहे। श्री थानेदार दूसरी बात विजेता बने। सभी कांग्रेसी डेमोक्रेटिक पार्टी से हैं। यानी 'लाल लहर' में 'नीलकमल' तरह। इसके साथ ही जिला और राज्य स्तर पर भी भारतीय-अमेरिकी समुदाय के कई नेताओं ने जीत का परचम लहराया है। इस जीत से अमेरिका की राजनीति और समाज में भारतवंशियों के बढ़ते दबदबे पर एक बार फिर मुहर लगी है। बेरा का छठा कार्यकाल साबित करता है कि भारतवंशियों की जड़ें अमेरिकी सियासत में किस कदर गहरा रही हैं।

इस चुनाव के बाद भी हम पाते हैं कि अमेरिका में बसे और यहां के सामाजिक, राजनीतिक परिदृश्य में सक्रिय भारतीय मूल के लोग हर क्षेत्र में क्रमिक रूप से निरंतर आगे बढ़ रहे हैं। बेशक, क्रमिक रूप से लगातार आगे बढ़ना एक ठोस आधारशिला का प्रमाण है। इस ठोस आधारशिला में संपूर्ण अमेरिकी समाज का वह विश्वास निहित है जो भारतीयों ने कड़ी मेहनत के दम पर अर्जित किया है। यह सही है कि अमेरिका में भारतीय प्रवासियों की संख्या बढ़ रही है और भारतवंशी अमेरिका का सबसे बड़ा प्रवासी समुदाय हैं लेकिन शिक्षा, चिकित्सा, व्यवसाय, समाज और सियासत में भारतीय मूल के लोगों ने जिस निष्ठा के साथ काम किया है और 'अपनाई हुई धरती' को अपना मानकर श्रम किया है वही उनके विकास की निरंतरता का मूल है। इस निरंतरता के प्रति आश्वस्त हुआ जा सकता है।

जहां तक शीर्ष पद पर हैरिस की हार से उनके समर्थक और भारतीय मूल के मतदाता निराश हैं वहीं विजेता ट्रम्प की ऐतिहासिक जीत में भारतवंशियों के योगदान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। चुनाव से पहले अगर हैरिस के कारवां में भारतीय और दक्षिण एशियाई समर्थकों और संगठनों का हुजूम दिखाई दे रहा था तो ट्रम्प के अभियान में भी कई भारतवंशी लोग और संगठन पसीना बहा रहे थे। सिख फॉर ट्रंप संगठन से जुड़े मैरीलैंड के कारोबारी जसदीप जस्सी कहते हैं कि ट्रंप का आना न केवल अमेरिकी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है, बल्कि भारत के साथ संबंधों के लिए भी सकारात्मक है। वहीं, ट्रंप समर्थक हिंदूज फॉर अमेरिका फर्स्ट अगेन अभियान इस बात को लेकर आश्वस्त है कि ट्रम्प बेहतर राष्ट्रपति साबित होंगे। कार्नेगी एंडोमेंट के सर्वे का हवाला देते वाले इस अभियान का कहना है कि बीते कुछ सालों में ट्रम्प के लिए भारतीय-अमेरिकी और हिंदू-अमेरिकी नागरिकों का समर्थन बढ़ा है। पिछले सर्वे में दर्ज 27 प्रतिशत के मुकाबले अब 35 फीसदी हिंदू-अमेरिकी ट्रम्प का समर्थन करते हैं। यह सही है कि भारतीय मूल के लोग अमेरिकी आबादी का मात्र एक प्रतिशत हैं लेकिन इनका सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव इस संख्या से कहीं ज्यादा है। और हां, अमेरिका में जन्मे किंतु दक्षिण भारतीय मूल के 'जेन जी' डेमोक्रेटिक उम्मीदवार अश्विन रामास्वामी कम अंतर से चुनाव जरूर हार गये हैं पर लगता है कि अमेरिकी समाज को उनके और परिपक्व होने का इंतजार है। 

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