नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। इसी के साथ माता रानी के आगमन का उत्साह मन को उल्लास से भर रहा है। ऐसे में कोलकाता की दुर्गा पूजा और हाल में वहां घटी वीभत्स घटना से मुझे दो क़िस्से याद आ रहे हैं। दोनों ही क़िस्से लगभग एक जैसे हैं, बस देश काल अलग रहा है।
एक तो ग्रीक कथा है और दूसरी भारत के पश्चिमी चंपारण की कहानी है। पश्चिमी चंपारण, बिहार का एक ज़िला है। ग्रीक कथा कुछ इस प्रकार है- मेड्युसा नाम की एक लड़की थी। वह बहुत रूपवान हुआ करती थी। वह ग्रीक देवी “एथेना” के मंदिर में पुजारन थी और वहीं पर रहती थी।
वह इतनी सुंदर थी कि मंदिर में आने वाले कई लोग तो उसे ही देखने आते थे। उसकी सुंदरता का बखान करते ना थकते। उसके बालों को वे एथेना देवी के बालों से भी सुंदर कहते। मेड्युसा के रूप की ख्याति पोसाइडन तक भी पहुंच गई जो कि इस कथा के अनुसार एथेना देवी का प्रेमी और समुद्र का देवता था।
पोसाइडन ने जब मेड्युसा को देखा तो उस पर मोहित हो गया। मेड्युसा की पोसाइडन में कोई रुचि नहीं थी। वह कुंवारी रहकर एथेना के मंदिर की पुजारन बनी रहना चाहती थी। एक दिन पोसाइडन शाम को मौका पाकर मेड्युसा की तरफ़ बढ़ा। ऐसे में बचने के लिए मेड्युसा मंदिर में भागी। उसने मदद के लिए एथेना देवी से गुहार लगाई। लेकिन कोई मदद नहीं मिली।
बलात्कार के बाद जब पोसाइडन जा चुका था, तब देवी एथेना वहां आईं। मंदिर में दुष्कर्म की सजा के रूप में उन्होंने बिना पूरी बात जाने ही मेड्युसा को ही शाप दे दिया कि वह आजीवन अकेली रहेगी। उसके जिस सुंदर बालों पर लोग रीझते हैं, वह भी सांप बन जायेंगे। इसके बाद जैसे ही देवी को पूरी बात पता चली और अपनी गलती का अहसास हुआ तो उन्होंने मेड्युसा को यह वरदान भी दिया कि जो भी उसकी आंखों में ग़लत दृष्टि से देखेगा, वह पत्थर का हो जायेगा।
अब पश्चिमी चंपारण का क़िस्से भी जान लीजिए। इस ज़िले के सहोदरा नामक जगह पर एक ग़रीब लड़की रहती थी। वह बहुत सुंदर थी। गांव में उसकी सुंदरता के क़िस्से चर्चित थे। एक दिन वह बकरी चराने निकली तो गांव की सीमा के पार कुछ लड़कों ने उसे घेर लिया।
लड़की ने उन लोगों से काफ़ी विनती की लेकिन वो मानने को तैयार ना थे। ऐसे में लड़की ने मां दुर्गा से प्रार्थना की कि हे मां मेरी रक्षा करें। मां दुर्गा ने उसकी रक्षा स्वरूप उसे उसी क्षण पत्थर का बना दिया और पूजित होने का वरदान दिया। तब से आज तक उस लड़की की पूजा माता सहोदरा के रूप में होती है। इस मंदिर की ख़ास बात यह है कि यहां पुजारन भी महिलाएं ही होती हैं। यहां के एक ख़ास समुदाय “थारु” की ही महिलाएं ही पुजारिन चुनी जाती हैं।
इन दोनों क़िस्सों को याद करके मैं सोचती हूं कि देवी ने पीड़िता को ही सजा क्यों दी? क्या देवी मां उस समय महिषासुर जैसा न्याय नहीं कर सकती थीं? कई सवालों के जबाब सुलझे-अनसुलझे यूं ही भटकते रहते हैं। फिर भी अगर आप बिहार जाएं और चंपारण जाने का मौक़ा मिले तो सहोदरा माई के दर्शन ज़रूर करके आएं।
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