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मि. बाइडेन, फैसला लेने का वक्त आ गया है

आगामी राष्ट्रपति चुनाव में बाइडेन के विकल्पों पर चर्चा तेज हो चुकी है। डेमोक्रेटिक पार्टी की अंतिम पसंद चाहे कोई हो, लेकिन एक बात तय है कि अमेरिकी राजनीति में बाइडेन का अब कोई भविष्य नहीं है। ऐसे में कमला हैरिस एक मजबूत संभावित उम्मीदवार हो सकती हैं।

राष्ट्रपति बाइडेन के लिए पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट किसी आपदा से कम नहीं रही। / X @POTUS

नवंबर में होने वाले राष्ट्रपति चुनावों के लिए अपने उम्मीदवार को लेकर डेमोक्रेटिक पार्टी पिछले दो हफ्तों से बहुत बैचेन है। वजह बिल्कुल साफ है। मौजूदा राष्ट्रपति के लिए पहली प्रेसिडेंशियल डिबेट किसी आपदा से कम नहीं थी। इस पर सभी एकमत हैं। इसके बावजूद जब यह सवाल उठता है कि 2024 की रेस में पार्टी का प्रतिनिधित्व कौन करेगा तो स्थिति बहुत साफ नहीं है। 

यह एक लोकतांत्रिक दुविधा की स्थिति है। वाशिंगटन और उसके बाहर सत्ता के गलियारों में बाइडेन के विकल्पों पर चर्चा हो रही है। यदि कोई विकल्प चुनना है तो जल्दी चुनना होगा। डेमोक्रेट्स के लिए समय हाथ से फिसलता जा रहा है। संभावित उम्मीदवारों में कमला हैरिस कई अन्य प्रत्याशियों के मुकाबले काफी मजबूत दिखाई देती हैं। आइए जानते हैं, क्यों?

उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की एक महिला होने के नाते देश की महिला मतदाताओं के बीच बहुत अपील है। इसके अलावा, अफ्रीकी-अमेरिकी पिता और भारतीय-अमेरिकी मां की बेटी होने की उनकी पृष्ठभूमि अफ्रीकी-अमेरिकी और एशियाई-अमेरिकी मतदाताओं से भी जोड़ती है। इन तीन श्रेणियों के मतदाता दशकों से डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रति वफादार रहे हैं। लेकिन इस चुनाव में किसी को भी पारंपरिक निष्ठा को हल्के में नहीं लेना चाहिए। 

अगर डेमोक्रेटिक उम्मीदवार कोई श्वेत व्यक्ति बनता है तो इन सभी श्रेणियों के मतदाताओं को निराशा होगी, यह तय है। किसी भी प्रमुख श्रेणी को इन चुनावों में निराश करना आत्मघाती हो सकता है। 

महिला वोटरों को लंबे समय से इंतजार है कि ओवल ऑफिस में कोई महिला बैठे। 2008 की तरह किसी अश्वेत नेता को मैदान में उतारना आगामी चुनाव में मतदाताओं खासकर महिलाओं को लुभाने का एक अच्छा तरीका हो सकता है। ट्रम्प के इनर सर्कल में भी कई लोग कमला हैरिस को एक मजबूत प्रतिद्वंद्वी मानते हैं। हालिया पोल्स उनके इस डर की पुष्टि करते हैं।

कमला हैरिस के पक्ष में एक और वजह यह है कि उन्हें व्हाइट हाउस के कामकाज का भी अनुभव है। बाइडेन ने उन्हें उनकी क्षमताओं को देखते हुए ही वीपी जैसे अहम पद के लिए चुना है और यह जिम्मेदारी दी है कि अगर उन्हें कुछ होता है तो वह देश का कुशल नेतृत्व करने में सक्षम होंगी। हैरिस ने लगभग 4 वर्षों तक दुनिया भर के नेताओं से संपर्क किया है, चर्चाएं की हैं। राष्ट्रपति बाइडेन की विदेश नीति की प्राथमिकताएं खासतौर से चीन, इज़राइल और भारत को लेकर रुख उनके लिए अनजान नहीं हैं। वह अभी तक पार्टी के फ्रिंज एलिमेंट्स को दबाव बनाने से रोकने में सफल रही हैं। इसके अलावा, वह अपने काम से काम रखने और जहरीले प्रगतिशील एजेंडे से दूर रहने में भी सक्षम रही हैं। ये निर्दलीय उम्मीदवारों के बीच मजबूत समर्थन हासिल करने की अच्छी वजह बन सकती हैं। 

डिबेट में नाकामी के बाद अमेरिकी जनता राष्ट्रपति बाइडेन की सेहत को लेकर कुछ ज्यादा ही चिंतित हो गई है, विशेष रूप से दुनिया के सबसे ताकतवर मुल्क का नेतृत्व करने की उनकी मानसिक क्षमता के बारे में। पहले कुछ लोगों को संदेह था, लेकिन अब ये सभी के जेहन में बैठ गया है। रही सही कसर हाल ही में यूक्रेन के राष्ट्रपति ज़ेलेंस्की का राष्ट्रपति पुतिन के रूप में परिचय देकर पूरी कर दी है। 

पार्टी की अंतिम पसंद चाहे कोई हो, लेकिन एक बात तय है कि अमेरिकी राजनीति में राष्ट्रपति बाइडेन का कोई भविष्य नहीं है। उनकी लोकप्रियता में गिरावट पिछले साल एक महत्वहीन घटना के बाद से बढ़ने लगी थी। पिछले साल जून में कोलोराडो में अमेरिकी वायु सेना अकादमी में उद्घाटन समारोह के दौरान राष्ट्रपति बाइडेन फिसलकर फर्श पर गिर गए थे।

लेकिन एक ऐसे शख्स के लिए सत्ता छोड़ना आसान नहीं होगा जिसने अपने जीवन के अधिकांश समय जनता की सेवा में बिताया है। इस मामले में वह कुछ दशक पहले की एक घटना से प्रेरणा ले सकते हैं।

1986 में फिलीपींस के तानाशाह फर्डिनेंड मार्कोस घरेलू विद्रोह का सामना कर रहे थे। विपक्ष को लामबंद करने वाली एक करिश्माई महिला राजनेता कोराजोन एक्विनो एक शक्तिशाली लोकप्रिय नेता के रूप में उभरी थीं। देश में असंतोष काफी बढ़ गया तो मार्कोस ने मदद के लिए अमेरिका का रुख किया। राष्ट्रपति रीगन बढ़ती उम्र के एक ऐसे फिलिपिनो नेता को राहत देने के मूड में नहीं थे, जो पहले से ही अपने लोगों के बीच विश्वास खो चुका था। इसलिए राष्ट्रपति रीगन ने अपने मित्र सीनेटर पॉल लक्साल्ट के जरिए संदेश दिया। 

मार्कोस जो मनीला में राष्ट्रपति महल के बाहर जीवन की कल्पना नहीं कर सकते थे, दुखी हो गए। उन्हें उम्मीद थी कि देश में जनता के असंतोष को दबाने और अपनी ताकत बनाए रखने में अमेरिका उनकी मदद करेगा। हताशा के इस दौर में उन्हें सीनेटर लक्सल्ट का फोन आया। माना जाता है कि मार्कोस ने सीनेटर से पूछा था कि उन्हें क्या करना चाहिए। छोड़ें या बने रहें। सीनेटर ने कम शब्दों में अमेरिका का फैसला सुना दिया- Cut and cut cleanly. मुझे लगता है कि अब समय आ गया है। मार्कोस की यह सलाह समझदारी भरी थी। इसने रक्तपात और अनिश्चितता की आशंका को खत्म कर दिया। 

राष्ट्रपति बाइडेन के खिलाफ भी उनकी अपनी पार्टी के भीतर विद्रोह फैल रहा है। कई लोग सार्वजनिक तौर पर उनसे राष्ट्रपति पद की रेस से हटने के लिए कह चुके हैं। इनमें जॉर्ज क्लूनी जैसे उनके कुछ वफादार समर्थक शामिल हैं। कई लोग अकेले में अपनी हताशा फुसफुसाकर बता रहे हैं। राष्ट्रपति बाइडेन के लिए अभी कट एंड कट क्लीनली का यही सही समय हो सकता है। इसका समय आ चुका है।

(गोकुल कुन्नथ एक अर्थशास्त्री, राजनीतिक टिप्पणीकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता हैं। अटलांटा में रहते हुए वह कई हिंदू और भारतीय-अमेरिकी संगठनों के संस्थापक हैं। यहां व्यक्त किए गए विचार उनके अपने हैं और किसी संगठन का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।)

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