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भारत में फिर मोदी सरकार, दुनिया में बजा डंका

भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी वैश्विक नेता की छवि अर्जित कर चुके हैं और देश में लगातार तीसरी बार सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं।

भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री नियुक्त करते हुए सरकार बनाने का न्योता दिया। / X@rashtrapatibhvn

भारत में भारतीय जनता पार्टी अपने सर्वमान्य नेता नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एक बार फिर और लगातार तीसरी बार सरकार बनाने जा रही है। मगर इस बार अपने दम पर नहीं, सहयोगी दलों के सहारे। मगर आनंद के इस अवसर में मोदी, भाजपा और पार्टी के विशाल समर्थक वर्ग को एक ऐसा मलाल है जिसने जीत की खुशी और सरकार बनाने के उत्साह को परोक्ष रूप से गायब कर दिया है। जिस प्रचंड जीत के मंसूबे साधे गये थे और मीडिया में माहौल बनाया गया था उसकी हवा 4 जून को मतगणना की शुरुआत के साथ ही निकल गई थी। किंतु जीत तो जीत ही है। लिहाजा भारत में मोदी एक ऐतिहासिक उपलब्धि की बराबरी करते हुए सरकार बनाने की तैयारी में हैं। यह भी सच है कि भले ही इस जीत पर दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी में कुछ कसक हो मगर विश्वभर में मोदी का डंका बज रहा है। 

मोदी को वैश्विक नेता मानकर अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, फ्रांस, इटली और इजराइल ने बधाई दी है। चीन ने भी दी है। भारत सरकार से कदमताल की गति बढ़ाने की बात कही है। भारत के पड़ोसी श्रीलंका, बांग्लादेश, नेपाल और मालदीव से भी बधाई आई है। इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने तो मोदी को हिंदी में लिखकर बधाई भेजी है। लिखा है- मैं भारत के साथ दोस्ती और नई ऊंचाइयों पर जाने के लिए उत्सुक हूं। यूक्रेन के राष्ट्रपति जेलेंस्की ने अपने बधाई संदेश में कहा है कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के नेता के साथ काम करना सौभाग्यशाली होगा। वहीं, इटली की प्रधानमंत्री  जॉर्जिया मेलोनी ने बधाई देते हुए कहा कि हम दोनों देशों की दोस्ती मजबूत करने के लिए मिलकर काम करेंगे। तमाम बधाइयों का स्वर-संदेश कमोबेश ऐसा ही है। लगभग सब में परस्पर रिश्तों की प्रगाढ़ता पर जोर है। खबरों में दावा है कि करीब 75 देशों से मोदी के लिए जीत की बधाई आई है। 

यह सही है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में चुनावी जीत और सरकार बनाने की तैयारियों के बावजूद सत्ताधारी पार्टी और उसके नेतृत्व के लिए यह समय आत्ममंथन का है। इसलिए कि जिस ब्रांड और विचारधारा के रथ पर सवार होकर सत्ताधारी पार्टी ने चुनाव लड़ा था उसकी गति विपक्षी गठबंधन ने कुंद कर दी है। साथ ही सत्ताधारी पार्टी का यह भ्रम भी टूट गया है कि देश में अब उसके अवाला कोई नहीं है। सियासी विरोध तो भाजपा को समझ आ सकता है लेकिन जनता ने उससे किस बात का 'प्रतिशोध' लिया है, यह जानना-समझना सबसे अधिक पार्टी के नायक के लिए जरूरी है। 

बहरहाल, यह देश और पार्टी का आंतरिक मसला हो सकता है और है भी। लेकिन दुनिया के ताकतवर मुल्कों समेत शेष देश इसे मोदी की लगातार तीसरी जीत के तौर पर ही देख रहे हैं। इस जीत में मोदी के कद की बढ़त देखी जा रही है। वही बढ़त जिसने मोदी को वैश्विक नेता बना दिया है। ऐसे में भारत की विदेश नीति में कोई बड़ी तब्दीली होगी इसमें संदेह है। अलबत्ता गठबंधन सरकार की जो मजबूरियां होती हैं यदि वे आड़े नहीं आईं तो मोदी का कारवां चलता रहेगा। इस पर अभी से कुछ नहीं कहा जा सकता। जहां तक विपक्षी गठबंधन की बात है तो उसने अभी शांत रहकर देखने की योजना बनाई है।      

वैसे भारत के प्रधानमंत्री मोदी की पहचान कड़े फैसले लेने वाले नेता की है। उनका स्वभाव भी अड़चनों का आदि नहीं है। उनकी शासन शैली जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री थे तब भी वही थी जो बीते 10 वर्षों में बतौर प्रधानमंत्री देखने को मिली है। गठबंधन को वह कैसे संभालेंगे यह देखने वाली बात होगी। फिलहाल अधिक अटकलें लगाना ठीक नहीं क्योंकि बात 'मोदी है तो मुमकिन है' पर आकर ठहर जाती है।

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