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मिथुन चक्रवर्ती : जमीन से पहुंचे आसमान... क्योंकि किस्मत रही मेहरबान

74 वर्षीय पद्म भूषण पुरस्कार विजेता जब बंगाली फिल्म श्रीमान बनाम श्रीमती की शूटिंग में गए थे तब पता चला कि उन्हें 2024 के लिए दादा साहब फाल्के लाइफटाइम पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह भारत में सिनेमा का शीर्ष सम्मान है। खबर सुनकर मिथुन की आंखों में सहज ही आंसू आ गये।

दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित भारतीय अभिनेता मिथुन चक्रवर्ती / Wikipedia
  • रोशमिला भट्टाचार्य

मैंने उनसे पिछले साल दिसंबर में बात की थी। सुमन घोष की बंगाली फिल्म काबुलीवाला की रिलीज से ठीक पहले। उसमें वह रवीन्द्र टैगोर की कहानी के इस रूपांतरण में रहमत की मुख्य भूमिका निभाते हैं। कोलकाता में अफगान व्यापारी की दोस्ती एक लेखक की बेटी मिनी से होती है, जो उसे उस युवा बेटी की याद दिलाती है जिसे उसने उस ऋण को चुकाने के लिए छोड़ दिया था जो उसने तब लिया था जब वह बीमार पड़ गई थी। दादा, जैसा कि उन्हें फिल्म जगत में प्यार से बुलाया जाता है, उस समय अपनी बेटी के साथ अमेरिका में थे, जो अभिनय और फिल्म निर्माण की पढ़ाई कर रही थी। उन्होंने भावनात्मक रूप से स्वीकार किया कि अगर दिशानी दूर चली गई तो उनकी पत्नी योगिता बाली और वह दोनों मर जाएंगे। यह हैं मिथुन चक्रवर्ती। एक साधारण पारिवारिक व्यक्ति जिन्होंने हमेशा अपनी अभूतपूर्व सफलता का श्रेय नसीब को दिया। उनका कहना है कि ऐसे कई अभिनेता हैं जो कड़ी मेहनत करते हैं और उतने ही प्रतिभाशाली हैं, लेकिन जब तक भाग्य आपका साथ नहीं देता... कुछ भी नहीं होता। चाहे वह अच्छी भूमिका हो या शानदार प्रदर्शन। 

माता-पिता बसंत कुमार और शांति रानी चक्रवर्ती ने अपने बेटे का नाम गौरंगा (जो बाद में मिथुन हो गया) रखा था। जन्म 16 जून 1950 को हुआ था। फुटबॉल के जुनून के साथ सिटी ऑफ जॉय में बड़े हुए, स्कॉटिश चर्च कॉलेज से रसायन विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की और उस समय बंगाल के कई प्रभावशाली युवाओं की तरह नक्सल आंदोलन से जुड़ गये। वह रवि रंजन उर्फ ​​भा की तरह एक विद्रोही नेता बन सकते थे, जिनसे उन्होंने दोस्ती की थी। लेकिन बीच में भाई की एक दुर्घटना में मौत हो गई। मिथुन भी आंदोलन छोड़कर घर लौट आये। हालांकि साथियों ने उनको भगोड़ा कहा। लेकिन नक्सली संबंधों के कारण उनको पुलिस लंबे समय तक सताती रही। इसी से मुक्ति के लिए मिथुन पुणे चले गये, फिल्म और टेलीविजन संस्थान (FTII) में दाखिला ले लिया। 

1973 में एक दीक्षांत समारोह के दौरान मृणाल सेन ने उन्हें संस्थान में देखा था। छरहरे बदन और चमकती मुस्कान वाला वह लंबा लड़का उनकी स्मृति में बना रहा। हालांकि उन्हें उसका नाम याद नहीं था। कुछ साल बाद जब वह अपनी 1977 की फिल्म मृगया में आदिवासी तीरंदाज घिनुआ की भूमिका के लिए एक अभिनेता की तलाश कर रहे थे तो सेन ने सिनेमैटोग्राफर केके महाजन को उसी लड़के का पता लगाने का संदेश भेजा। तब मिथुन FTII से स्वर्ण पदक के साथ स्नातक कर चुके थे और ऋषि कपूर और अमिताभ बच्चन के साथ उनकी फिल्मों में बहुत छोटे रोल कर लिए थे। मगर वे रोल अंजान किस्म के थे। खैर, मिथुन को मृगया मिली और इस फिल्म ने सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार जीता और मिथुन को सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पहला राष्ट्रीय पुरस्कार भी दिलाया।

हालांकि, प्रतिष्ठित राष्ट्रीय सम्मान ने बॉलीवुड के स्वप्न व्यापारियों को प्रभावित नहीं किया। वे तो उत्तर भारत के गोरी चमड़ी वाले लड़कों के पक्षधर थे लिहाजा मिथुन का सांवला आकर्षण उन्हें पसंद नहीं आया। इसके अलावा, सेन की आर्ट हाउस फिल्म में उन्हें नंगे बदन, सिर्फ एक धोती पहने हुए देखने के बाद, उन्हें यकीन नहीं हुआ कि वह सूट-बूट वाला लुक अपना सकते हैं। इसलिए 1977 में शशि कपूर-संजीव कुमार-विद्या सिन्हा अभिनीत फिल्म 'मुक्ति' में एक स्टेज कलाकार के रूप में एक छोटी सी भूमिका को छोड़कर, मिथुन दो साल तक बेरोजगार रहे। वह मंच पर डांस करके जीवित रहे। मुंबई की झुग्गी बस्ती में एक खोली में रहे और वास्तव में बुरे दिनों में उन्होंने आत्महत्या के बारे में भी सोचा। 

फिर 1979 में अमीर-लड़का-गरीब-लड़की की प्रेम कहानी 'तराना' ने उन्हें मुख्यधारा में ला दिया। लेकिन इसके बाद बॉक्स-ऑफिस पर असफलताओं की सुनामी आई और हो सकता है कि उनका करियर खत्म हो गया हो। लेकिन जैसा कि कहा जाता है नियति बहादुरों का साथ देती है। 10 दिसंबर, 1982 को बी.सुभाष की पहली फिल्म डिस्को डांसर रिलीज हुई और उसने धूम मचाते हुए एक बार फिर मिथुन का सितारा बुलंद कर दिया। खुद को एल्विस प्रेस्ली का प्रशंसक बताने वाले मिथुन स्वीकार करते हैं कि फिल्म में उनका नृत्य आंशिक रूप से प्रेस्ली से प्रेरित था, हालांकि स्टेप्स उनके अपने थे। डिस्को डांसर के बाद लोग उन्हे 'पेल्विक प्रेस्ली', 'देसी माइकल जैक्सन' और 'डिस्को किंग' तक कहने लगे। 

74 वर्षीय पद्म भूषण पुरस्कार विजेता जब बंगाली फिल्म श्रीमान बनाम श्रीमती की शूटिंग में गए थे तब पता चला कि उन्हें 2024 के लिए दादा साहब फाल्के लाइफटाइम पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। यह भारत में सिनेमा का शीर्ष सम्मान है। खबर सुनकर मिथुन की आंखों में सहज ही आंसू आ गये। और दादा के ही शब्दों में- मैं कोलकाता की गलियों से आया हूं। मैं फुटपाथों से उठा हूं। ऐसी जगह का एक लड़का इतना सम्मान जीत रहा है...मैं इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था। मैं बेहद खुश हूं। मैं इसे अपने परिवार और दुनिया भर में अपने प्रशंसकों को समर्पित करता हूं।

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