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मनोज बाजपेयी : एक 'आम' आदमी ...जो सिनेमा और दर्शकों के लिए है खास

मैं एक अभिनेता के रूप में पूरी तरह से एक्सपोज नहीं हुआ हूं। निर्देशकों को अधिक मेहनत करनी होगी और बहुत अधिक जोखिम उठाना होगा। बहुत अधिक कल्पनाशक्ति रखनी होगी। मैं चाहता हूं कि लोग मुझे भूमिका के साथ चुनौती दें।

फिल्म जोरम के एक दृश्य में मनोज बाजपेयी / Image : X@manoj bajpayee

मनोज बाजपेयी यानी एक ऐसा अभिनेता जो अपनी अदाकारी से सबको बांध लेता है। उनकी शुरुआत भले ही दूरदर्शन से हुई लेकिन अब मनोज बाजपेयी एक स्पष्ट सोच के साथ स्क्रिप्ट चुनते हैं। कुछ अपने प्रशंसकों के लिए, कुछ धर्नाजन के लिए और कुछ पुरस्कारों के लिए। उन्होंने बहुत कुछ कमाया है और अपने ढेर सारे प्रशंसक पैदा किये हैं। सिनेमा से जुड़े कई पहलुओं पर मनोज बाजपेयी से बातचीत....

जोरम में हताश पिता की मार्मिक व्याख्या हमेशा की तरह प्रभावशाली थी, लेकिन इस तरह का किरदार निभाना कितना चुनौतीपूर्ण रहा?
निर्देशक देवाशीष मखीजा 2016 में एक स्क्रिप्ट के साथ मुझसे मिले थे। हमने इसके बारे में बात की थी और हम इसमें सुधार करते रहे। वह मुझे पिछली कहानी के बारे में नोट्स भेजा करते थे। मैं आसानी से किरदार में घुस सकता था क्योंकि मेरे पास नोट्स थे लेकिन इसके लिए बहुत अधिक अलगाव की भी आवश्यकता थी! दरअसल, मैं मानता हूं कि अभिनय 24 घंटे का काम है। लेकिन किसी भी तरह मुझे कामकाजी जीवन और निजी जीवन में संतुलन तो कायम करना ही है। निर्देशक जो चाहता है अगर आपने वैसा ही उतार दिया तो समझो लड़ाई जीत ली। यही खुशी है। 

हर बार जब आप एक गहन भूमिका निभाते हैं तो आश्चर्य होता है कि आप इसे इतनी पूर्णता के साथ कैसे कर पाते हैं?
मेरा आंतरिक पक्ष मेरे बाहरी पक्ष को निर्देशित करता है। मैं उसे ऐसा करने देता हूं। कोई भी किरदार मुझे प्रभावित करता है लेकिन जब मैं रात में अकेला होता हूं या जब मैं नहा रहा होता हूं तो मैं रिहर्सल करने और अपनी भूमिकाओं के बारे में सोचने की कोशिश करता हूं। मगर जब मैं अपने परिवार के साथ होता हूं तो अपना समय पूरी तरह से उन्हें देता हूं।

ऐसे गंभीर चरित्रों से बाहर निकलना भी कठिन होता है, कैसे करते हैं आप?
मेरी कोशिश तो यही रहती है कि जल्द से जल्द चरित्र से बाहर निकल जाऊं। एकमात्र किरदार जिसने मुझे परेशान किया वह गली गुलियां था। यह इतना गहन चरित्र था कि इसने मुझे पूरी तरह से बर्बाद कर दिया। यह आसान नहीं था। इसने मुझे मानसिक रूप से बीमार बना दिया। अगर मैं पूरी तरह से ईमानदारी से कहूं तो मैं अब भी उस किरदार से पूरी तरह बाहर नहीं आया हूं। वह अब भी मुझे परेशान करता है। 

आप हर निर्देशक के लिए आम आदमी का चेहरा और आवाज हैं। कैसा लगता है यह अहसास?
इसका मतलब है कि उन्हें भरोसा है कि मैं एक आम आदमी की बारीकियों को अच्छी तरह से पर्दे पर उतारूंगा। वे मुझमें एक आम आदमी देखते हैं, यह बड़ी तारीफ है।

आम आदमी का प्रतिनिधित्व करने की उस बड़ी ज़िम्मेदारी के बावजूद आपने बागी 3 और सत्यमेव जयते जैसी व्यावसायिक फिल्में भी पूरी सहजता से साइन की हैं?
उस तरह की फिल्में करना भी जरूरी है। उन फिल्मों को मैं व्यावसायिक विश्वसनीयता के लिए करता हूं। वे सुपरहिट फिल्में हैं। हरेक सोनचिरैया, गली गुलियां, अलीगढ, रुख और भोंसले के लिए मुझे एक बागी 3 बनानी है ताकि बाजार में मेरी उपस्थिति बनी रहे। मुझे हर हफ्ते व्यावसायिक फिल्मों की पेशकश आती है लेकिन मैं उन्हें साइन नहीं करता क्योंकि मैं पूरी तरह से केवल व्यावसायिक फिल्मों में शामिल नहीं होना चाहता और मैं वह काम कर रहा हूं जिसमें मुझे आनंद आता है। आज वेब सीरीज भी एक प्लेटफॉर्म के रूप में उपलब्ध है। अभिनेताओं के लिए यह बहुत अच्छा समय है।

परिवार के बारे में बताएं, आपकी पत्नी (शबाना रजा यानी ​​नेहा) एक अच्छी अभिनेत्री हैं, क्या आप साथ में फिल्में बनाने की योजना नहीं बनाते हैं?
हां, वह एक शानदार अभिनेत्री हैं लेकिन हमें साथ में भूमिकाएं नहीं मिलीं। फिलहाल वह घर पर रहकर खुश हैं। वह एक अच्छी कुक भी हैं। मनोरंजन का हमारा विचार फिल्में देखना और ड्राइव पर जाना है। अब हमारे घर पर एक मिनी थिएटर है इसलिए हम उस पर एक साथ फिल्में देखते हैं।

क्या आपको लगता है कि आपकी प्रतिभा को उसका हक मिल गया?
नहीं, मैं एक अभिनेता के रूप में पूरी तरह से एक्सपोज नहीं हुआ हूं। निर्देशकों को अधिक मेहनत करनी होगी और बहुत अधिक जोखिम उठाना होगा। बहुत अधिक कल्पनाशक्ति रखनी होगी। मैं चाहता हूं कि लोग मुझे भूमिका के साथ चुनौती दें।

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