भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) एक और महत्वाकांक्षी अभियान के लिए तैयार है। इसरो इस सप्ताह के अंत में अपने रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल (आरएलवी) पुष्पक के द्वितीय चरण का परीक्षण करने जा रहा है। पुष्पक (आरएलवी-टीडी) के पहले सफल अभियान के बाद इसरो ने अब दूसरे चरण का परीक्षण करने का फैसला किया है।
इसरो स्पेसफ्लाइट के एक्स हैंडल से संकेत मिलता है कि इस बहुप्रतीक्षित पुष्पक (आरएलवी-टीडी) के लेक्स -02 दूसरे लैंडिंग का परीक्षण आने वाले दिनों में कर्नाटक में किया जाने वाला है। भारत ने वर्ष 2035 तक भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने का लक्ष्य रखा है। इसी लक्ष्य को हासिल करने को वह पूरी तरह रीयूजेबल प्रक्षेपण यान तैयार करने के लिए जरूरी प्रौद्योगिकी तैयार कर रहा है। इस मिशन का उद्देश्य सबके लिए कम लागत में अंतरिक्ष तक पहुंच संभव बनाकर खोज के एक नए युग की शुरुआत करना है।
The second landing experiment LEX-02 of Pushpak/RLV-TD is now expected to take place this week!!
— ISRO Spaceflight (@ISROSpaceflight) March 19, 2024
In LEX-01, RLV-TD was aligned with the runway when it was dropped from the Chinook. But this time, Chinook will take a detour & RLV will have to make turns to align itself. #ISRO pic.twitter.com/lcVXHmBjot
खबरों के मुताबिक, पिछली बार इसरो ने आरएलवी-टीडी के परीक्षण के लिए चिनूक हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया था। लेकिन इस बार इसरो बिल्कुल नई तकनीक का प्रयोग करने जा रहा ै। इस बार चिनूक को अपने तय रास्ते से अलग उड़ाया जाएगा ताकि आरएलवी खुद अपनी उड़ान भर सके और आवश्यक टर्न लेते हुए रनवे के साथ अपने आपको एडजस्ट कर सके।
प्रक्रियाओं के विपरीत, जहां चिनूक हेलीकॉप्टर ने रिलीज से पहले आरएलवी-टीडी को रनवे के साथ संरेखित किया था, आगामी परीक्षण के लिए एक नया दृष्टिकोण अपनाया जाएगा। इस बार, चिनूक अपने सामान्य पाठ्यक्रम से विचलित हो जाएगा, जिससे आरएलवी को स्वायत्त रूप से नेविगेट करने और रणनीतिक मोड़ों को निष्पादित करके रनवे के साथ खुद को संरेखित करने की आवश्यकता होगी।
इस लैंडिंग परीक्षण का उद्देश्य फिर से प्रयोग करने लायक लॉन्च व्हीकल को तैयार करना है। अगर भारत इसमें कामयाब होता है तो अंतरिक्ष में भविष्य के वैज्ञानिक एवं खोजी अभियानों में इससे काफी मदद मिलेगी। इससे इनोवेशन के एक नए युग का आगाज कहा जा सकता है। पंखों वाली प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल हाइपरसोनिक उड़ानों, अपने आप लैंडिंग की क्षमता रखने वाले विमानों और क्रूज फ्लाइटों में किया जा सकेगा।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को हाल ही में विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर की यात्रा के दौरान इसरो के चीफ एस. सोमनाथ ने इस बारे में विस्तृत जानकारी दी थी। इसरो के आरएलवी स्पेसक्राफ्ट के डिजाइन को 2012 में ही नेशनल रिव्यू कमिटी से मंजूरी मिल गई थी। इसके बाद इसका शुरुआती प्रोटोटाइप बनाया गया और उसे आरएलवी-टीवी नाम दिया गया।
आरएलवी को तैयार करने के लिए नेशनल एयरोस्पेस लैब और डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) ने मिलकर काम किया है। दोनों के प्रयासों और एडवांस सुपरकंप्यूटर के प्रयोग से हीट रेसिस्टेंट मटीरियल तैयार करने में सफलता मिली है। इसके बाद 2016 में आरएलवी का पहला उड़ान परीक्षण किया गया था। इस दौरान धरती के वातावरण में इसकी फिर से एंट्री की क्षमता को परखा गया था।
पुष्पक आरएलवी के विकास में महत्वपूर्ण पड़ाव 2 अप्रैल 2023 को उस वक्त आया, जब इसके ऑटोनोमस लैंडिंग मिशन के परीक्षण में कामयाबी मिली। इस परीक्षण से साबित हुआ कि यान ने अंतरिक्ष से धरती के वातावरण में फिर से एंट्री की क्षमता हासिल कर ली है। ये परीक्षण इसलिए भी खास था क्योंकि इस लैंडिंग के दौरान मानवीय हस्तक्षेप की आवश्यकता नहीं पड़ी थी और यान ने खुद ही हाई स्पीड से सटीक लैंडिंग को अंजाम दिया था।
रीयूजेबल लॉन्च व्हीकल ऐसा स्पेसक्राफ्ट है, जो अंतरिक्ष मिशनों की एक परिवर्तनकारी ताकत साबित हो सकती है। इससे लॉन्चिंग का खर्च 80 फीसदी तक कम हो सकता है। इससे भविष्य के अंतरिक्ष अभियानों की सूरत ही बदल जाएगा।
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