अंतरिक्ष के क्षेत्र में नित नई उड़ान भर रहा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अपने नए प्रोजेक्ट के लिए एलन मस्क की कंपनी स्पेसएक्स की मदद लेने का फैसला किया है। इसरो अपने भारी भरकम संचार उपग्रह जीसैट-20 को स्पेसएक्स के फाल्कन -9 रॉकेट के जरिए लॉन्च करने वाला है।
यह पहली बार होगा, जब इसरो स्पेसएक्स की मदद से अपना सैटलाइट छोड़ेगा। इस प्रक्षेपण के जरिए भारत सैटलाइट टेक्नोलोजी के एक नए युग में प्रवेश करेगा। इसरो और मस्क की कंपनी के बीच यह सहयोग अंतरिक्ष खोज की दिशा में एक महत्वपूर्ण साझेदारी का भी प्रतीक होगा।
भारत को मस्क की कंपनी की मदद इसलिए लेनी पड़ी है क्योंकि उसके पास 4,700 किलो वजनी GSAT-20 को लॉन्च करने लायक क्षमता नहीं है। इसरो का प्रमुख रॉकेट LVM3 फिलहाल अधिकतम चार टन क्षमता का सैटलाइट ही ले जा सकता है, जो GSAT-20 के वजन से 700 किलो कम है। इसका लॉन्च 2024 की दूसरी तिमाही में किया जा सकता है।
यह सैटलाइट भारत की तकनीकी तरक्की का प्रमाण है। इसका उद्देश्य कम लागत में का-का बैंड उच्च थ्रूपुट उपग्रह (एचटीएस) सेवाएं प्रदान करना है। इससे ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी, आईएफएमसी और सेलुलर बैकहॉल सेवाएं बेहतर हो सकेंगी। खासकर दूरदराज के इलाकों तक इनकी पहुंच संभव हो सकेगी।
भारत अब तक चार टन से अधिक के अपने सैटलाइट छोड़ने के लिए एरियनस्पेस के एरियन रॉकेटों पर निर्भर था, लेकिन अब उसने स्पेसएक्स की ओर रुख किया है।
भारत अपना खुद का सेमी-क्रायोजेनिक इंजन विकसित करने पर काम कर रहा है, जो चार टन से अधिक पेलोड ले जाने वाले रॉकेटों के लिए महत्वपूर्ण होगा।
उम्मीद की जा रही है कि भारत इसी साल अपने अर्ध-क्रायोजेनिक इंजन का परीक्षण कर सकता है। इसमें तरल ऑक्सीजन और केरोसिन के प्रणोदक संयोजन का उपयोग किया जाएगा। पिछले साल जुलाई में इसरो को सेमी-क्रायोजेनिक इंजन के शुरुआती परीक्षण में तकनीकी दिक्कतों का सामना करना पड़ा था।
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