संयुक्त राष्ट्र महासभा में भारी मतदान में इजरायल से गाजा में अपनी गतिविधियां तुरंत बंद करने का आह्वान इस बात का सबसे बड़ा संकेत है कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय का धैर्य जवाब दे चुका है। भारत सहित 153 देशों का एक गैर-बाध्यकारी प्रस्ताव के पीछे एकजुट होना यहूदी राज्य और उसके मुख्य समर्थक संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए एक संकेत है कि बहुसंख्य विश्व समुदाय शक्ति के अंधाधुंध इस्तेमाल को चुपचाप बर्दाश्त नहीं कर सकता। राष्ट्रीय हित के उद्देश्यों को प्राप्त करने के नाम पर संघर्षों में विनाश शायद ही कभी देखा जाता है। महासभा में फिलिस्तीनी लोगों के लिए समर्थन तब आया जब वाशिंगटन ने इसी तरह के उपाय पर सुरक्षा परिषद में अपना अपेक्षित वीटो दिया जिसमें अन्य बातों के अलावा इस बात पर जोर दिया गया कि सदस्य देश इस वास्तविकता से दूर हैं कि इजरायली चिंताओं को भी समझना होगा। व्यावहारिक रूप से कहें तो बाइडन प्रशासन गाजा पट्टी में चल रही घटनाओं के प्रति आंखें मूंदे नहीं रह सकता। वहां लगभग 19,000 लोग मारे गए हैं। माना जाता है कि कई लोग मलबे में दबे हैं और हजारों घायल हुए हैं। चिकित्सा सुविधाओं के अभाव में उन्हें अपनी पीड़ा के साथ असुरक्षित छोड़ दिया गया है। इजराइल में बेंजामिन नेतन्याहू सरकार बार-बार यह कहते हुए सख्त रुख अख्तियार कर रही है कि जब तक हमास का सफाया नहीं हो जाता तब तक ऑपरेशन बंद नहीं किए जाएंगे। सैन्य और राजनीतिक रूप से यह सब इतनी आसानी से होने वाला नहीं है क्योंकि यहूदी राज्य को युद्ध के मोर्चे पर गंभीर उलटफेर का सामना करना पड़ा है और यह भी अहसास हुआ है कि हमास के लिए समर्थन शायद बढ़ रहा है और वर्तमान फिलिस्तीनी प्राधिकरण दयनीय स्तर पर है। राष्ट्रपति जो बाइडन को यह महसूस हो रहा है कि उनके अपने ही बहुतेरे लोग उसके एक करीबी सहयोगी की हठधर्मिता और वाशिंगटन द्वारा कुछ सख्त बातचीत करने में असमर्थता से भयभीत हैं। गाजा में जो तबाही हुई है उसने बाइडन के पुन: चुनाव अभियान को राजनीतिक रूप से नुकसान पहुंचाया है। न केवल अरब अमेरिकी बल्कि स्वतंत्र और युवा मतदाता तेजी से डेमोक्रेट्स से दूर जा रहे हैं क्योंकि चल रही घटनाओं के प्रति संवेदनहीनता बार-बार झलक रही है। 7 अक्टूबर को इजराइल पर हुए आतंकी हमले से दुनिया गुस्से में थी क्योंकि हमास ने लगभग 1400 इजराइली नागरिकों और सैन्य कर्मियों को मार डाला था और अन्य 240 को बंधक बना लिया था। लेकिन यहूदी राज्य के व्यवस्थित और क्रूर प्रतिशोध ने अंतरराष्ट्रीय कानून और अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी कानून के सभी मानदंडों को हवा में उड़ा दिया है। यह प्रतिशोध एक अविश्वास के रूप में सामने आया क्योंकि फिलिस्तीनियों को भोजन, पानी, ईंधन और चिकित्सा जैसी बुनियादी सुविधाओं के बिना लगातार भागना पड़ रहा है। अमन की खातिर संयुक्त राष्ट्र महासभा का संदेश इससे अधिक जोरदार नहीं हो सकता। अब यह इजरायल के प्रमुख सहयोगी यानी अमेरिका पर छोड़ दिया गया है कि वह आक्रोश को समाप्त करने के लिए सशक्त कदम उठाए। तेल अवीव और वाशिंगटन दोनों को यह अहसास होना चाहिए कि हमास से मुकाबला करना सुरंगों को समुद्र के पानी से भरने से कहीं अधिक परिष्कृत है। इसके लिए एक संवेदनशील राजनीतिक कदमताल की आवश्यकता है और इसकी शुरुआत तत्काल युद्धविराम से होनी चाहिए।
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