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पूर्व राजदूत ने कहा- आज की जटिल दुनिया में खतरनाक है अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता

श्रीनिवासन ने कहा कि भारत को आज शांतिवादी राष्ट्र के रूप में नहीं बल्कि एक महत्वाकांक्षी विश्व शक्ति के रूप में देखा जाता है। भारत ने स्वयं ताशकंद और अन्य से सबक सीखा है कि मध्यस्थता एक दोधारी हथियार है।

चर्चा के दौरान पूर्व राजदूत टीपी श्रीनिवासन (दाएं)। / GOPIO

भारतीय मूल के लोगों के वैश्विक संगठन (GOPIO), न्यूयॉर्क चैप्टर, भारतीय प्रवासी केंद्र और भारतीय अमेरिकी केरल केंद्र की ओर से 'स्वतंत्रता के बाद से शांतिदूत के रूप में भारत की भूमिका' शीर्षक से एक वार्ता का आयोजन किया गया। भारत की स्वतंत्रता की 77वीं वर्षगांठ मनाने के लिए केरल केंद्र के डॉ. थॉमस अब्राहम लाइब्रेरी हॉल में इस वार्ता का आयोजन किया गया। वार्ता में पूर्व राजदूत टीपी श्रीनिवासन की प्रस्तुति के बाद कई संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले सामुदायिक नेताओं ने एक रोचक चर्चा में भाग लिया।

कार्यक्रम की शुरुआत केरल केंद्र के सचिव राजू थॉमस के स्वागत से हुई। सत्र की अध्यक्षता करते हुए GOPIO के चेयरमैन डॉ. थॉमस अब्राहम ने पिछले 35 वर्षों में संगठव की उपलब्धियों पर बात की और कहा कि प्रवासी समुदाय को राजनीतिक मुख्यधारा में लाने का इसका प्रारंभिक लक्ष्य हासिल कर लिया गया है।
 
इस मौके पर पूर्व राजदूत श्रीनिवासन ने कहा कि 21वीं सदी की जटिल दुनिया में और एक परिभाषित वैश्विक व्यवस्था की अनुपस्थिति में संघर्षों को समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय मध्यस्थता बेहद खतरनाक थी। भारत दुनिया में शांति के दूत के रूप में उभरा था और इसने पंचशील के सिद्धांतों के आधार पर और गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व करके दूर देशों में भी शांति स्थापित करने में भूमिका निभाई। 

बकौल श्रीनिवासन भारत ने संयुक्त राष्ट्र की उपनिवेशीकरण विरोधी और निरस्त्रीकरण पहल का नेतृत्व किया और विवादों को निपटाने और युद्ध को रोकने के वैश्विक प्रयासों का हिस्सा था। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में भारत अनजाने में पाकिस्तान और चीन के साथ संघर्ष में एक पक्ष बन गया और उसे अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए युद्ध लड़ना पड़ा। इसके अलावा भारत को एनपीटी, सीटीबीटी आदि से बाहर रहना पड़ा और अंततः एक परमाणु हथियार संपन्न राष्ट्र बन गया। श्रीनिवासन ने कहा कि भारत को आज शांतिवादी राष्ट्र के रूप में नहीं बल्कि एक महत्वाकांक्षी विश्व शक्ति के रूप में देखा जाता है।

दो सबसे गंभीर संघर्षों, रूस-यूक्रेन युद्ध और इज़राइल-फिलिस्तीन युद्ध में भारत को मध्यस्थ बनाने की मांग उठती रही है। यह तथ्य कि भारत के सभी विरोधियों के साथ अच्छे संबंध हैं, भारत को शांति वार्ता करने का अवसर देता प्रतीत होता है। लेकिन ये युद्ध 20वीं शताब्दी के युद्धों से स्पष्ट रूप से भिन्न हैं। इसलिए क्योंकि प्रत्येक पक्ष एक नई वैश्विक व्यवस्था के संदर्भ में निर्णायक जीत के लिए लड़ रहा है। भारत ने स्वयं ताशकंद और अन्य से सबक सीखा है कि मध्यस्थता एक दोधारी हथियार है।

इसी रोशनी में पूर्व राजदूत ने कहा कि हम स्पष्ट रूप से द्विपक्षीय संवाद के माध्यम से संघर्षों के समाधान में विश्वास करते हैं और भारत बातचीत के रास्ते को खुला रखकर यही हासिल करने की कोशिश कर रहा है। 

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