अमेरिका में भारतवंशियों ने हर मोर्चे पर अपनी ताकत और प्रतिभा का लोहा साबित किया है। सियासत से लेकर शासन-प्रशासन, समाज और शिक्षण जगत में भारतीय मूल के लोगों का डंका बज रहा है। अमेरिका में 2023 तक भारतीय-अमेरिकी समुदाय की संख्या बढ़कर 50 लाख तक जा पहुंची है। कई रिपोर्ट बताती हैं कि भारतीय-अमेरिकी समुदाय अब अमेरिका में सबसे प्रभावशाली समुदाय में से एक है। यह समुदाय न केवल अमेरिकी अर्थतंत्र को मजबूत कर रहा है बल्कि भारत में बसे अपने लोगों और परिजनों को भी आर्थिक ताकत दे रहा है। अमेरिका के सियासी संसार और सत्ता-प्रतिष्ठान में स्थानीय से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक भारतीयों का असर है। यह भी गौरवशाली बात है कि भारतीय-अमेरिकी न केवल अमेरिका में बल्कि विश्व परिदृश्य पर अपनी कामयाबी की इबारत लिख रहे हैं।
लेकिन इस उजली तस्वीर का एक धुंधला और निराशाजनक पहलू भी है जो बीच-बीच में आने वाली खबरों के माध्यम से सामने आता रहता है। पहले पराई और फिर अपनाई हुई धरती पर कुछ भारतीय ही भारतीयों के 'दुश्मन' बने हुए हैं और दुर्भाग्य से शोषण का सबब भी। वॉशिंगटन से एक खबर है कि अमेरिका में एक भारतवंशी दंपती को 135 और 87 महीने (11.2 और 7.2 वर्ष) की कैद की सजा सुनाई गई है। इसलिए क्योंकि 31 साल के हरमनप्रीत और उनकी 43 वर्षीय तलाकशुदा पत्नी कुलबीर अपने एक रिश्तेदार को पढ़ाने के बहाने अमेरिका लाये और उससे 3 साल तक पेट्रोल पंप और जनरल स्टोर पर जबरन मजदूरी कराई। खुलासा हुआ है कि दंपती झांसा देकर अपने रिश्तेदार को अमेरिका लाये और यहां आते ही पीड़ित के आव्रजन दस्तावेज छीन लिये। क्रूरता यह भी रही कि मजदूरी कराने के लिए रिश्तेदर को जान से मारने की धमकी भी दी।
इस तरह का यह पहला और अकेला मामला नहीं है। खास तौर से उत्तर भारतीय राज्य पंजाब से इस तरह की खबरें आती रही हैं कि उनका कोई रिश्तेदार किसी बहाने से उन्हे अमेरिका ( यह भी सत्य है कि इस तरह की घटनाएं दूसरे देशों से भी आती हैं) ले आया और यहां उसे घरेलू नौकर या नौकरानी के रूप में इस्तेमाल करने लगा। कुछ लोग जो किसी तरह 'अपनों' के इस चंगुल से बचकर वापस अपने देश पहुंचे तो उन्होंने आपबीती सुनाकर दुस्वप्न उजागर किया। महिलाओं से जुड़े कई मामले शारीरिक श्रम से लेकर शारीरिक शोषण तक जाते हैं।
अपनों से मिलने वाले दुख और प्रताड़ना का एक क्षेत्र कार्यस्थल पर दमन और भेदभाव है। कुछ रिपोरर्ट्स और सर्वे बताते हैं कि कार्यस्थल पर भारतीयों या प्रवासियों का शोषण करने वाले उनके अपने ही देश के लोग हैं। प्रत्यक्ष तौर पर यह तस्वीर घृणा अपराधों से अलग है लेकिन परोक्ष रूप से उसी दायरे में आती है या आना चाहिए। इसलिए क्योंकि घृणा अपराध तो स्पष्ट होता है, त्वरित प्रतिक्रिया का हिस्सा होता है या कहीं अधिकार-वंचना के रोष के रूप में सामने आता है लेकिन अपनों द्वारा दिया गया दंश स्वार्थ, थूर्तता और विश्वासघात का क्रूर पहलू खोलकर रख देता है।
अब एक बार फिर उसी गौरवशाली तस्वीर का रुख करते हैं। खबरें बताती हैं कि भारतीय मूल के सीईओ 16 फॉर्च्यून 500 कंपनियों के प्रमुख हैं। ये 'भारतीय नायक' सामूहिक रूप से 27 लाख अमेरिकियों को रोजगार देते हैं और लगभग एक ट्रिलियन का राजस्व जुटाते हैं। अलबत्ता भारतवंशियों की 'दूसरी तस्वीर' इसी रोजगार का पैसा बचाने के लिए अपनों को 'शिकार' बनाने वाली शर्मनाक प्रवृत्ति का परिचायक है।
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