अमेरिका में भारत के राजदूत तरनजीत सिंह संधू 35 साल के लंबे करियर के बाद जनवरी के अंत में सरकारी सेवा से रिटायर हो सकते हैं। रिपोर्ट्स में यह दावा करते हुए बताया गया है कि इसी के साथ वाशिंगटन डीसी में बतौर राजदूत उनका कार्यकाल पूरा हो जाएगा।
1988 बैच के भारतीय विदेश सेवा के अधिकारी तरणजीत संधू ने 2020 की शुरुआत में वॉशिंगटन डीसी में राजदूत के रूप में अपनी पारी शुरू की थी। पहले डोनाल्ड ट्रम्प और फिर जो बाइडेन के नेतृत्व वाली सरकारों में उन्होंने यह जिम्मेदारी सफलतापूर्वक संभाली।
तरनजीत संधू 2013 से 2016 के बीच मिशन के उप प्रमुख के रूप में भी कार्य कर चुके हैं। उन्होंने विदेश मंत्री एस जयशंकर के अधीन भी सेवाएं दी हैं जो उस समय डीसी में राजदूत थे। संधू की अमेरिका में पहली पोस्टिंग 1998 में परमाणु परीक्षणों के मद्देनजर अमेरिकी कांग्रेस को संभालने वाले एक युवा राजनीतिक अधिकारी के रूप में हुई थी। उन्होंने न्यूयॉर्क में संयुक्त राष्ट्र में भारतीय स्थायी मिशन में भी काम किया है।
संधू पिछले जनवरी में रिटायर होने वाले थे लेकिन भारत सरकार ने अमेरिका के साथ संबंधों के महत्व, प्रमुख वार्ताकारों से उनकी बातचीत और वाशिंगटन में राजनीतिक पकड़ को देखते हुए उन्हें एक साल का सेवा विस्तार दिया था। पिछला वर्ष भारत अमेरिका संबंधों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण था क्योंकि महत्वपूर्ण एवं उभरती प्रौद्योगिकियों (आईसीईटी) पर पहल की शुरूआत हुई थी और भारतीय प्रधानमंत्री ने वाशिंगटन की राजकीय यात्रा की थी। अमेरिका में संधू के कार्यकाल के दौरान कई चुनौतियां भी आईं, लेकिन उन्होंने सूझबूझ और समझदारी से सभी मामलों को संभाला।
संधू की पत्नी रीनत संधू नीदरलैंड में भारत की राजदूत हैं। उनकी जड़ें पंजाब की एक समृद्ध विरासत वाले परिवार से हैं। उनके दादा तेजा सिंह समुंद्री गुरुद्वारा सुधार आंदोलन के शुरुआती नेताओं में से थे। वह ऐसे एकमात्र गैर-गुरु हैं जिनकी स्मृति में स्वर्ण मंदिर में एक इमारत बनी हुई है। उनके पिता बिशन सिंह समुंद्री अमृतसर में गुरु नानक देव विश्वविद्यालय के पहले कुलपति थे।
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