दुनिया के कई बड़े देशों की इकोनोमी इस वक्त डांवाडोल है। संकट के इस समय में भी भारत की अर्थव्यवस्था एक चमकता सितारा बनी हुई है। हालांकि भविष्य की आर्थिक स्थितिऔर ग्रोथ की इस रफ्तार के बने रहने को लेकर सवाल उठते रहते हैं। हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से भी इसी तरह के सवाल किए गए थे।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) के वर्ल्ड इकोनोमिक आउटलुक से संबंधित एक हालिया प्रेस ब्रीफिंग में भारत की आर्थिक नीतियों और इसकी ग्रोथ को प्रभावित करने वाले पहलुओं को लेकर सवाल उठाए गए। भारत के वृद्धि अनुमान, रोजगार की स्थिति और सतत वृद्धि की चुनौतियों पर नीतिगत सिफारिशों को लेकर चिंता भी जताई गई।
आईएमएफ के कम्युनिकेशंस विभाग के जोस लुइस डी हारो ने प्रेस ब्रीफिंग में भारत की वृद्धि दर के अनुमानों से जुड़े सवालों का नेतृत्व किया। पूछा कि भारत की आर्थिक वृद्धि दर पिछले दो वर्षों में 6.8 प्रतिशत और 6.5 प्रतिशत रही है। इसे देखते हुए भारत के लिए क्या नीतिगत सिफारिश होनी चाहिए खासकर बेरोजगारी और मुद्रास्फीति की स्थिति के मद्देनजर।
आईएमएफ के अनुसंधान विभाग के निदेशक पियरे-ओलिवियर गौरींचस ने भारत को वैश्विक अर्थव्यवस्था में मजबूत प्रदर्शन करने वाले देशों में से एक के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने कहा कि वित्तीय वर्ष 2023 से 2024 के लिए ग्रोथ प्रोजेक्शन में 0.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान है।
आईएमएफ अनुसंधान विभाग के डिवीजन चीफ डैनियल लेह ने विदेशी निवेश नीतियों में हालिया उदारीकरण का जिक्र करते हुए कहा कि यह नीति विदेशी निवेश को उदार बनाएगी, निर्यात को बढ़ावा देगी और नौकरियों व श्रम बल की भागीदारी बढ़ाएगी। ऐसे में भारत को लेकर आउटलुक बहुत मजबूत और संतुलित जोखिम वाला आउटलुक है।
गौरींचस ने वैश्विक अर्थव्यवस्था के सामने मौजूद चुनौतियों का जिक्र करते हुए कहा कि ग्लोबल ग्रोथ रेट 2023 में 3.2 प्रतिशत था। इसके प्रमुख खिलाड़ी अमेरिका और चीन थे। अनुमान है कि 2024 और 2025 में भी यही रफ्तार बनी रहेगी।
आईएमएफ ने आगाह किया कि सकारात्मक आउटलुक के बावजूद ढिलाई को लेकर सावधानी बरतनी होगी। भू-राजनीतिक तनावों ने भविष्य की आर्थिक स्थिरता के लिए खतरा पैदा कर दिया है। इसके अलावा जलवायु परिवर्तन के प्रभाव भी बढ़ रहे हैं।
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