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बहस में शिकस्त के बावजूद बाइडेन के पक्ष में इसलिए खड़े हैं कई भारतीय-अमेरिकी संगठन

81 साल की आयु में राष्ट्रपति बाइडेन की मानसिक और शारीरिक फिटनेस आलोचकों और समर्थकों दोनों के लिए चिंता का विषय रही है। बहस समाप्त होते ही बाइडेन से 'सही काम करने' के लिए पद से हटने के आह्वान शुरू हो गए और तब से जारी हैं।

हरिनी कृष्णन (बीच में) बाइडेन के लिए साउथ एशियन संगठन की राष्ट्रीय निदेशक हैं। बाइडेन-हैरिस के फिर से चुनाव अभियान के लिए जुटी हैं। / Courtesy Photo

राष्ट्रपति चुनाव के लिए 27 जून को ट्रम्प के साथ हुई एक बहस में शिकस्त के बावजूद कई भारतीय-अमेरिकी संगठन राष्ट्रपति बाइडेन का साथ देने का वादा कर रहे हैं, भले ही उन पर पद से हटने का दबाव बढ़ रहा हो। 27 जून के बाद से डेमोक्रेट्स बहुत सोच-विचार में डूबे हुए हैं। इसकी वजह ये है कि बाइडेन ने बहस के मंच पर अस्थिर प्रदर्शन किया था। यह डोनाल्ड ट्रम्प के आत्मविश्वास से भरे प्रदर्शन के बिल्कुल विपरीत था। बाइडेन शब्दों के लिए जूझते रहे, कई बार वाक्य के बीच में ही उनके विचार भटक जाते थे।

वह अक्सर असंगत रूप से बातचीत छोड़ देते थे। वह ट्रम्प द्वारा किए गए आधारहीन हमलों और झूठों को खारिज करने में विफल रहे। उन्होंने शुरुआत से ही आक्रामक रवैया अपनाया और अटलांटा, जॉर्जिया में CNN द्वारा आयोजित 90 मिनट की बहस के दौरान उसे बनाए रखा।

81 साल की आयु में राष्ट्रपति बाइडेन की मानसिक और शारीरिक फिटनेस आलोचकों और समर्थकों दोनों के लिए चिंता का विषय रही है। बहस समाप्त होते ही बाइडेन से 'सही काम करने' के लिए पद से हटने के आह्वान शुरू हो गए और तब से जारी हैं। उपराष्ट्रपति कमला हैरिस सहित कई नाम सामने आए हैं। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अगर पहली अश्वेत और दक्षिण एशियाई अमेरिकी महिला उपराष्ट्रपति को नजरअंदाज किया जाता है तो डेमोक्रेट्स के लिए यह दृश्य खराब होगा।

हरिनी कृष्णन बाइडेन के लिए साउथ एशियन संगठन की राष्ट्रीय निदेशक हैं। उन्होंने न्यू इंडिया अब्रॉड को बताया कि 'संगठन बाइडेन का दृढ़ता से समर्थन करता है। उनकी एक बहस खराब रही। यह ठीक है कि वे उम्रदराज हैं और बहस में उनका प्रदर्शन खराब था। लेकिन इससे पिछले साढ़े तीन साल में प्राप्त ऐतिहासिक उपलब्धियों को कम नहीं किया जा सकता है, जिससे हमारे समुदायों को लाभ हुआ है।'

कृष्णन DNC की सदस्य भी हैं। उन्होंने कहा कि 'बाइडेन ने इतिहास में सबसे विविध प्रशासन बनाया है जिसमें अब तक सबसे अधिक दक्षिण एशियाई मूल के लोग हैं। उनकी जगह पर एक धोखेबाज, एक दोषी अपराधी, और एक लगातार झूठ बोलने वाले को चुनना, जिसकी योजनाएं हमारे लोकतंत्र को तहस-नहस करने की धमकी देती हैं, एक सही विकल्प नहीं है।

एक अलग मामले में ट्रम्प को सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से बहुत लाभ हुआ। इसमें यह तय किया गया था कि राष्ट्रपति अपने कार्यकाल के दौरान की गई किसी भी कार्रवाई के लिए मुकदमे से सुरक्षित हैं। इस फैसले के मद्देनजर न्यायाधीश जुआन मर्चन ने न्यूयॉर्क में hush money मामले की सुनवाई की। उन्होंने ट्रम्प की सजा सुनाने की सुनवाई को कम से कम सितंबर तक के लिए स्थगित कर दिया है। पूर्व राष्ट्रपति को पहले 11 जुलाई को सजा सुनाई जानी थी।

पिछले अप्रैल में साउथ एशियन फॉर अमेरिका की टीम द्वारा शुरू की गई 'साउथ एशियन फॉर बाइडेन' ने 10 राज्यों में स्वयंसेवकों के साथ तेजी से काम करना शुरू कर दिया है। कृष्णन के अनुसार, संगठन वर्तमान में 6 प्रमुख राज्यों में टीमों का निर्माण कर रहा है और सितंबर के अंत तक सभी राज्यों में टीम तैयार हो जाने की उम्मीद है।

वहीं, AAPI विक्ट्री फंड के सह-संस्थापक शेखर नरसिम्हन ने भी घोषणा की है कि वे बाइडेन के सपोर्ट में मजबूती से खड़े हैं। नरसिम्हन ने कहा कि 'बाइडेन को बेहतर बहस की तैयारी करने वाली टीम की जरूरत है। पार्टी को लोगों को याद दिलाने के लिए तुरंत काम करना चाहिए कि ट्रम्प कितने भयानक थे और हैं।'

बाइडेन-हैरिस के लिए ऑनलाइन ग्रुप इंडियन अमेरिकन्स के प्रशासक मुकेश अडवाणी ने एक अलग रुख अपनाया। उन्होंने कहा कि 'मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं यह कहूंगा, लेकिन मैं बाइडेन से विनम्रतापूर्वक पद से हटने और कमला को टिकट के शीर्ष पर लाने के आह्वान में शामिल हो रहा हूं।हैरिस ब्लैक महिला हैं, जो अभी भी नस्लवादी समाज में उनका एकमात्र दोष है। लेकिन वह इसे दूर कर सकती हैं। मुझे माफ करना, लेकिन बाइडेन जीत नहीं पाएंगे।'

 

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