भारतीय-अमेरिकी सामाजिक कार्यकर्ता और पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित स्वदेश चटर्जी ने भारतीय-अमेरिकी समुदाय के राजनीतिक जागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। चटर्जी कहते हैं कि आज समुदाय के सदस्यों को संघीय और राज्य स्तर के कुछ सर्वोच्च कार्यालयों में निर्वाचित होते देखना 'पुरस्कृत' होने का अहसास कराता है।
न्यू इंडिया अब्रॉड के साथ एक विशेष इंटरव्यू में 76 वर्षीय डेमोक्रेट चटर्जी याद करते हैं कि कैसे समुदाय ने 80 के दशक से लेकर अब तक एक लंबा सफर तय किया है। यह राजनीतिक यात्रा आज कांग्रेस में पांच भारतीय-अमेरिकी, एक राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार और एक भारतीय मूल के उपराष्ट्रपति तक आ पहुंची है।
चटर्जी इंडियन अमेरिकन फोरम फॉर पॉलिटिकल एजुकेशन (IAFPE) के अध्यक्ष रहे हैं। IAFPE एक राष्ट्रव्यापी संगठन है जिसका लक्ष्य भारतीय-अमेरिकी समुदाय के सदस्यों की राजनीतिक भागीदारी को बढ़ावा देना और अमेरिका-भारत संबंधों में सुधार करना है। चटर्जी ने कहा कि यह आंदोलन वाशिंगटन डीसी में कांग्रेस सदस्यों के कार्यालयों में युवाओं के लिए इंटर्नशिप सुनिश्चित करने से शुरू हुआ।
बकौल चटर्जी जब भी हम किसी कांग्रेसी या सीनेटर के साथ फंड रेजिंग करते थे तो एक शर्त यह होती थी कि हम भारतीय मूल के एक हाई स्कूल के बच्चे और कॉलेज के बच्चे को आगे बढ़ाना चाहते हैं ताकि वे वाशिंगटन जाकर इंटर्न के रूप में काम कर सकें। इससे कांग्रेस के कर्मचारियों और खुद कांग्रेसियों को यह अंदाजा हो गया कि भारतीय छात्र कितने मेधावी हैं और वे कैसे घुल-मिल जाते हैं। यह भारत और भारतीय-अमेरिकियों के बारे में उनका प्रशिक्षण था। यह बहुत सफल रहा।
भारत-अमेरिका रिश्तों को लेकर चटर्जी कहते आए हैं कि यह सब एक दिन में नहीं हुआ है। यह एक धीमी प्रक्रिया थी और संबंधों को यहां तक लाने में खूब मेहनत की गई और आखिरकार इस मेहनत के नतीजे सामने आने लगे हैं।
चटर्जी बताते हैं कि जब हमने यह यात्रा शुरू की थी तो एक देश के रूप में भारत को सोवियत ब्लॉक के एक हिस्से के रूप में देखा जाता था। एक ऐसा देश जो अत्यधिक गरीबी से ग्रस्त था और एक ऐसा देश जिसे मैनेज किया जाना था, न कि उसके साथ भागीदारी की जानी थी। भारत वाशिंगटन के रडार में कहीं भी नहीं था। जब मैंने IAFPE के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में पदभार संभाला तो मेरी एकमात्र प्राथमिकता इस धारणा को तोड़ना और दोनों देशों को करीब लाना था।
चटर्जी याद करते हैं कि जब मैंने फोरम के अध्यक्ष का पद संभाला तो मैंने कहा कि हमारा एक ही एजेंडा है। और वह एजेंडा है अमेरिका-भारत संबंध। और कुछ नहीं। आव्रजन कोई मुद्दा नहीं और न ही भेदभाव कोई मसला। इसलिए क्योंकि अगर अमेरिकी-भारतीय संबंध अच्छे होंगे तो बाकी सब ठीक हो जाएगा।
राजनीतिक कार्यालयों के लिए स्पर्धा कर रहे भारतीय-अमेरिकियों के वर्तमान लोगों के बारे में एक सवाल के जवाब में चटर्जी ने इस बात पर जोर दिया कि भारतीय-अमेरिकियों की पहली पीढ़ी के विपरीत युवा पीढ़ी में समुदाय की मजबूत भावना का अभाव है और वह अक्सर पैसे के लिए समुदाय का शोषण करते हैं। उन्हे इस बात का अहसास होना चाहिए कि भारतीय-अमेरिकी समुदाय कोई ATM मशीन नहीं है।
वह बताते हैं कि उनके पास अक्सर ऐसे लोगों के फोन आते हैं जो चुनाव लड़ना चाहते हैं, जीतना चाहते हैं और पद हासिल करना चाहते हैं। लेकिन सब कुछ पैसों की खातिर। इन दिनों वे ऐसा इसलिए सोचते हैं क्योंकि कोई भारतीय-अमेरिकी राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, कांग्रेसी या सीनेटर है। लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे अमेरिका-भारत संबंधों या समुदाय के संबंधों को प्राथमिकता देते हैं।
हालांकि निर्वाचित भारतीय-अमेरिकी अपने मतदाताओं के प्रति जवाबदेह हैं लेकिन उन पर अपनी पैतृक मातृभूमि और समग्र रूप से भारतीय-अमेरिकी समुदाय का प्रतिनिधित्व करने का भी भारी बोझ है।
देश भर में कार्यालय चाहने वाले भारतीय-अमेरिकियों को चटर्जी एक ही संदेश देते हैं कि अपनी जड़ों को नहीं भूलना चाहिए। समुदाय की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए क्योंकि समुदाय ही आपको वह बनाता है जो आप हैं।
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