भारत में जन्मे अमेरिकी भौतिक विज्ञानी व परोपकारी मणि भौमिक ने भारतीय वैज्ञानिक जेसी बोस के काम का सम्मान करने के लिए एक मिलियन अमेरिकी डॉलर का दान दिया है। जेसी बोस के वायरलेस टेलीग्राफी पर काम को पश्चिम जगत द्वारा लंबे समय तक नजरअंदाज किया गया था। 2025 से होनहार युवा वैज्ञानिकों को पदक और सम्मान राशि प्रदान की जाएगी।
वैज्ञानिक और आविष्कारक जगदीश चंद्र बोस (जेसी बोस) को पहचान और सराहना देर से मिली। बोस ने ही वायरलेस टेलीग्राफी के लिए डिटेक्टर का आविष्कार किया था। इतालवी आविष्कारक और इंजीनियर जी मार्कोनी ने पहले ट्रांस-अटलांटिक रेडियो टेलीग्राफी के ऐतिहासिक प्रदर्शन के लिए इसका इस्तेमाल किया और उन्हें भौतिकी में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
मगर मार्कोनी ने बोस का उल्लेख नहीं किया। किंतु सच यह है कि बोस के आविष्कार के बिना मार्कोनी को मान्यता और प्रशंसा नहीं मिल सकती थी। ऐसे में बोस का महत्वपूर्ण योगदान छिपा रहा। बोस को श्रेय देने में विफलता ने बोस के काम से परिचित भारत के वैज्ञानिकों को लंबे समय तक परेशान किया।
बोस के बहुमूल्य योगदान को सार्वजनिक रूप से स्वीकार करने का प्रयास तब शुरू हुआ जब न्यूयॉर्क शहर में स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एंड इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियर्स (IEEE) ने कोलकाता में प्रेसीडेंसी कॉलेज, जो अब एक विश्वविद्यालय है, में एक स्मारक पट्टिका लगाई, जहां बोस ने आविष्कार किया था।
बंगाल में जन्मे मणि भौमिक लॉस एंजिलिस में रहते हैं। उनके पास कई पेटेंट हैं और वे काफी अमीर हैं। वह लेजर तकनीक के आविष्कारक हैं जिसने लेसिक नेत्र शल्य चिकित्सा का मार्ग प्रशस्त किया। भौमिक का कहना है कि उन्हें लगता है कि उनका प्रभुत्व उन सभी चीजों का वापसी का एक तरीका है जो उन्होंने अपने शिक्षक और गुरु सत्येन्द्र नाथ बोस, जो जेसी बोस के छात्र थे, से प्राप्त की थीं।
IEEE अध्यक्ष और सीईओ सैफुर रहमान 12 जनवरी को यूएस कैपिटल के रेबर्न भवन में आयोजित होने वाले कांग्रेस के स्वागत समारोह में प्रतिष्ठित जेसी बोस मेडल की स्थापना की घोषणा करेंगे। इस पदक को आधिकारिक तौर पर वायरलेस संचार में IEEE जगदीश चंद्र बोस पदक के रूप में जाना जाएगा। पहला पुरस्कार 2025 में दिया जाएगा।
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